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ज़िंदगी… “अनछुए लम्हें”

निर्मल कुमार पीरिया
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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अधखुले लबों में छूपी,
अनकही, कहानियां,
हर्फ़ों को हैं, तरस रही,
अनजानी, मजबूरियां…
कहने को तो, हैं बहूत,
लब, लरज जाते मगर,
ढल नही पाते, शब्दों में,
बह जाते, पाती पे मगर…
बिखरें, भीगे, उन हर्फ़ों को,
क्यो ना, मोती सा, सहेज ले,
खो ना जाये, पाती भीगीं,
उसे वक्त से, समेट ले…
बैठ, मिल हम, उन पलों को,
ख़ुद में, क्यो ना, टटोल ले,
अनछुए, लम्हों को, क्यो ना,
आओ फिर, उकेर ले…
उत्कीर्ण करे, दास्तां नई,
अधर पँखुरी, जरा खोल दो,
उर छुपे, भावों को फिर,
सहज, प्रेम स्याही, से घोल दो…
धर दो, अधरों को, अधर पर,
शब्द, सांसो में, घुल जाएंगे,
लब लरज़ते, गर, कह ना पाये,
धड़कनो से, लिख हम जाएंगे…
सत्य सँग, वो सुंदर भी होगा
वही भावों की, गँगा बहेगी,
सहेजेंगे, प्रतीति जटा में,
चेतना, “निर्मल” शिव सी होंगी…
होगी ना कोई, दास्तां अधूरी,
स्वरुप इसका, पूर्ण होगा,
आदि से अंनत तक, रचें,
तभी, ग्रँथ ये, सम्पूर्ण होगा…

परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया
शिक्षा : बी.एस. एम्.ए
सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि.
निवासी : इंदौर, (म.प्र.)
शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं


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