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ज़िंदगी…बिखरी सी

निर्मल कुमार पीरिया
इंदौर (मध्य प्रदेश)

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मेरी बंदगी हैं तेरे ही वास्ते, चाहें हमने तुझसे कहा नही,
उस सजदे में बस तू ही था, जिसे तूने कभी नवाजा नही…

मेरी ज़िंदगी का हर इक सफा, तेरे रंग से हैं सजा हुआ,
ये बात कुछ हैं अलग मगर, कभीं तूने उसको छुआ नही…

हैं चिराग़-ए-ज़िंदगी जल रहे, अरमा हुए हैं धुँआ धुँआ,
बहकी हवाओं से कह दो जरा, अभी घर हुआ रौशन नही…

ये बहार-ए-गुलशन और् ये गुल, मेरे वास्ते थी नही कभी,
वो खिला भी तो हैं उस दरख़्त,आंधियों में रहा जो थमा नही…

तोहमत लगी हैं ये हम पे कि, कभी आसमा को नही छुआ,
परवाज मन कि हैं जाने क्या, थे पंख जिसको नसीब नही…

हर बात तूने ही थी कही, हर बार दिल ने तेरी ही सुनी,
अब मन की तू भी ले सुन जरा, रहें ख़ुद से कोई गिला नही…

परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया
शिक्षा : बी.एस. एम्.ए
सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि.
निवासी : इंदौर, (म.प्र.)
शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं


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