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जीवन प्रयोजन

ओमप्रकाश सिंह
चंपारण (बिहार)

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जीवन का प्रयोजन क्या है?
यह क्यों है मानव शरीर,
जीवन में जन्म से दुख है,
मृत्यु दुख-
प्रिय सी संयोग बियोग दुख है।

यह जगत दुख है फिर भी प्राणी इस दुख मंदिर को-
ढोता इसे फेंकता नहीं इसकी विनाश की कल्पना से-
सिहर, कांप उठता है फिर नवीन कल्पना करता है!
सृष्टि की प्रारंभ से इस गूढ़ रहस्य को-
जानने समझने यत्न किया है!

करते अभी जा रहे हैं इसमें ज्ञान विज्ञान अभी लगाहै!
फिर भी सूर्य उदित होते हैं शशि कलाये में घटती बढ़ती है!
महासागर गरजता है आंधी फुफकारती है!
तुसारापात हमें ढंढा करता है, आपत जलाता हैं!

यह खेल गजब है जीवन का-
यह खेल नियति क्यों खेलता है?
उसकी गहरी वंदना में-उसे क्या रस मिलता है?
फिर उसे बंधनों में जकडने में क्या आनंद मिलता है?
प्राणियों के करुण क्रंदन से
उसका मन नहीं पसीजता है!

शून्यवाद से लेकर अब तक मानव चिंतन जारी है-
जन्म मृत्यु की प्रपंच से वंचित रहने की-
मनीषियों ने कल्पना की-
तथाकथित योग साधक भी मरते रहें-
जीवन प्रयोजन स्वातं: सुखाय तक सीमित रहा!

जरा, व्याधि और मृत्यु से महानिर्वाण पद बतलाया!
अहिंसा अलीपसा, करुणा का मंत्र,
आखिरकार तथागत की आत्मज्ञान ने समझाया!
पूरे सृष्टि में सम्यक ज्ञान फैलाया !

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परिचय :-  ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा)
ग्राम – गंगापीपर
जिला –पूर्वी चंपारण (बिहार)
सम्मान – हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० सम्मान


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