
कीर्ति सिंह गौड़
इंदौर (मध्य प्रदेश)
********************
जब लड़ते थे झगड़ते थे,
बात बात पर यारों से अकड़ते थे।
सहेली की गुड़ियों की शादी में,
जब सज-धज कर जाते थे
और दावत भी उड़ाते थे।
तब माँ का ये कहना
कुछ रास नहीं आता था,
कि जल्दी आना।
अभी तो घर से निकले ही कहाँ थे,
कि माँ का ये फ़रमान सुनाना।
शाम के वक़्त का इन्तज़ार,
जब मिलेंगे यार
और खेलेंगे बेशुमार।
बड़ों की दुनियाँ से दूर,
अपनी ही मस्ती में चूर।
खेलने का वक़्त ख़त्म होने पर,
माँ का बुलावा आना और कहना।
अगर वक़्त का ख़याल नहीं तो,
घर मत आना अपने
दोस्त के घर ही सो जाना।
नज़दीक आता इम्तिहान का
वक़्त और बढ़ती बेचैनी,
किसी का पास तो
किसी का फेल हो जाना।
होली के रंगों की ख़रीदारी लिए,
साथ में बाज़ार जाना।
छत पर संक्रांति की
पतंग साथ उड़ाना।
जन्मदिन पर मावे का केक,
और ढेर सारी भेंट
और न जाने क्या क्या।
वो ‘लड़का’ मैं ‘लड़की’
इस इल्म से बहुत दूर,
हम सब एक होते थे।
ऐ खुदा एक ख़्वाहिश
पूरी करने का मौक़ा गर दे,
तो मुझे मेरे बचपन का घर दे।
और मेरी दुनियाँ
फिर खुशियों से भर दे।
और मेरी दुनियाँ
फिर ख़ुशियों से भर दे।
निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻
आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा अवश्य कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉 hindi rakshak manch 👈… राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें…🙏🏻.