Sunday, November 24राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

उधार जिंदगी………

उधार जिंदगी………

========================================

रचयिता : दिलीप कुमार पाठक

मैं हार जाता हूँ अक्सर,फिर भी जीता हूँ
भूला नहीं हूँ अक्सर कभी – कभी पीता हूँ
तेरी जीत मेरी हार नहीं, फिर भी रोता हूँ
परिहास करे ज़िंदगी मेरा, इसलिए जीता हूँ……

खनकते नगमें जिंदगी, ऐसे बजा रही है
अर्थी में लिटाने मुझको ऐसे सजा रही है
मिलना चाहे मुझसे, खुद को मिला रही है
परमदशा को आतुर ऐसे मिलवा रही है……….

अपारिहार्य है सबको नितांत नहीं है, मिटना
पंचत्तत्व में सबको नित मिलना ही मिलना
मुझमें क्या अनोखा है, तेरा है, ताना – बाना
सैलाब, उमड़ में मिला ले करवा मेरा नज़राना…..

डर नहीं था जिद थी, तुझसे नहीं मिलेंगे
भूले गए थे किरदार नहीं हैं हम नहीं जलेंगे
माया में उलझे थे, माया लोक नहीं तजेंगे
समझ में सब है आया हँस कर हम जलेंग
……………………… ..हँस कर हम जलेंगे
…………………………… प्राण हम तजेंगे

 

लेखक परिचय :- दिलीप कुमार पाठक
शैक्षणिक योग्यता :- स्नातक, बायोलॉजी, चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय सतना
वर्तमान में :- रेनसा विश्वविद्यालय में पत्रकारिता के विद्यार्थी

आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर कॉल करके सूचित अवश्य करें … और अपनी खबरें, लेख, कविताएं पढ़ें अपने मोबाइल पर या गूगल पर www.hindirakshak.com सर्च करें…🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा जरुर कीजिये और खबरों के लिए पढते रहे hindirakshak.com  कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने मोबाइल पर प्राप्त करने हेतु हिंदी रक्षक के ब्राडकॉस्टिंग सेवा से जुड़ने के लिए अपने मोबाइल पर पहले हमारा नम्बर ९८२७३ ६०३६० सेव के लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें सेंड करें…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *