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लेखनी रहती हरदम

विनोद सिंह गुर्जर
महू (इंदौर)

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करीब लेखनी रहती हरदम
पर लिखने दे तब ना।
आंखों से ओझल सूरत हो,
नव दिखने दे तब ना।।…

सुंदर शब्दों को सेक रहा हूं,
पर सिकने दे तब ना।।…

करीब लेखनी रहती हरदम
पर लिखने दे तब ना।।. .

दो कौड़ी के भाव सृजन है,
पर बिकने दे तब ना।।…

करीब लेखनी रहती हरदम
पर लिखने दे तब ना।

मैं मिट जाऊं उसकी हसरत,
पर मिटने दे तब ना।।…

करीब लेखनी रहती हरदम
पर लिखने दे तब ना।।…

मैं कंचन होता लोहे से,
पर पिटने दे तब ना।।..

करीब लेखनी रहती हरदम
पर लिखने दे तब ना।।…

मैं मंचों पर गीत बेचता,
पर रटने दे तब ना।।…

करीब लेखनी रहती हरदम
पर लिखने दे तब ना।।..

.

परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यकारिणी सदस्य हैं एवं पत्र-पत्रिकाओं के अलावा इंदौर आकाशवाणी केन्द्र से कई बार प्रसारण, कवि सम्मेलन में भी सहभागिता रही है।
सम्मान – हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिंदी रक्षक २०२० सम्मान


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