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छोड़ चली

रचयिता : विनोद सिंह गुर्जर

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छोड़ चली

मित्रो, आज में जो रचना सुना रहा हूँ। वह कभी रचना का सत्य हुआ करता था। …जीवन में जो सोचते है वो होता नहीं।…कुछ लोग दुख देने के लिये ही आते हैै।। देखें विरह घड़ी …आँख से रिसते आंसू कागज पर उकेरने की कोशिश।।…रागिनी को समर्पित।।

मेरे मन की हरियाली पर पतझड़ छोड़ चली।
अधखिले फूल उम्मीदों के तू तोड़
चली ।।….

हम जिधर गए तुमको वहीं पर याद किया ।
जाने कितनों से मैंने प्रिय विवाद लिया ।
फिर क्यों तू ताजमहल चाहत का फोड चली ।।..
अध खिले फूल उम्मीदों के तू तोड़ चली ।।…

हमने ना गौरव माना अपनी हस्ती का।
माँझी तुम्हें बनाया अपनी कश्ती का ।
फिर क्यों तू बीच भंवर में मुख को मोड़ चली ।।..
अध खिले फूल उम्मीदों के तू तोड़ चली ।।…

तुम जो कहते जीवन अर्पण कर देता मैं ।
तेरी खुशियों का स्वयं वरण कर लेता में ।
फिर क्यों तू अनजाने संग बंधन जोड़ चली ।।…
अधखिले फूल उम्मीदों के तू तोड़ चली।।…
मेरे मन की हरियाली पर पत्थर छोड़ चली ।।….

परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यकारिणी सदस्य हैं एवं पत्र-पत्रिकाओं के अलावा इंदौर आकाशवाणी केन्द्र से कई बार प्रसारण, कवि सम्मेलन में भी सहभागिता रही है।

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