Sunday, November 24राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

छोड़ चली

रचयिता : विनोद सिंह गुर्जर

==========================================

छोड़ चली

मित्रो, आज में जो रचना सुना रहा हूँ। वह कभी रचना का सत्य हुआ करता था। …जीवन में जो सोचते है वो होता नहीं।…कुछ लोग दुख देने के लिये ही आते हैै।। देखें विरह घड़ी …आँख से रिसते आंसू कागज पर उकेरने की कोशिश।।…रागिनी को समर्पित।।

मेरे मन की हरियाली पर पतझड़ छोड़ चली।
अधखिले फूल उम्मीदों के तू तोड़
चली ।।….

हम जिधर गए तुमको वहीं पर याद किया ।
जाने कितनों से मैंने प्रिय विवाद लिया ।
फिर क्यों तू ताजमहल चाहत का फोड चली ।।..
अध खिले फूल उम्मीदों के तू तोड़ चली ।।…

हमने ना गौरव माना अपनी हस्ती का।
माँझी तुम्हें बनाया अपनी कश्ती का ।
फिर क्यों तू बीच भंवर में मुख को मोड़ चली ।।..
अध खिले फूल उम्मीदों के तू तोड़ चली ।।…

तुम जो कहते जीवन अर्पण कर देता मैं ।
तेरी खुशियों का स्वयं वरण कर लेता में ।
फिर क्यों तू अनजाने संग बंधन जोड़ चली ।।…
अधखिले फूल उम्मीदों के तू तोड़ चली।।…
मेरे मन की हरियाली पर पत्थर छोड़ चली ।।….

परिचय :-   विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यकारिणी सदस्य हैं एवं पत्र-पत्रिकाओं के अलावा इंदौर आकाशवाणी केन्द्र से कई बार प्रसारण, कवि सम्मेलन में भी सहभागिता रही है।

आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी रचनाएँ प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर कॉल करके सूचित अवश्य करें … और अपनी रचनाएँ पढ़ें अपने मोबाइल पर या गूगल पर www.hindirakshak.com सर्च करें…🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो SHARE जरुर कीजिये और खबरों के लिए पढते रहे hindirakshak.com  रचनाएँ अपने मोबाइल पर प्राप्त करने हेतु हिंदी रक्षक के ब्राडकॉस्टिंग सेवा से जुड़ने के लिए अपने मोबाइल पर पहले हमारा नम्बर ९८२७३ ६०३६० सेव के लें फिर उस पर अपना नाम और प्लीज़ ऐड मी लिखकर हमें सेंड करें…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *