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अध्यापक से मिली सीख

होशियार सिंह यादव
महेंद्रगढ़ हरियाणा

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चंचल मन घूम रहे थे, नहीं कोई था डर,
पढऩे जात स्कूल में, आते शाम को घर,
रूखी सूखी चटनी छाछ, भोजन था प्यारा,
थैला उठाकर जाते थे, पास स्कूल हमारा।

शिक्षक मेरा शिव कुमार, बहुत कड़क था,
लेख देख-देख डंडे मारता, जब भड़कता,
पीट पीटकर कर दे लाल, डर लगता था,
कोई शिकायत लेकर जाए, उसे घड़ता था।

बहुत डर लगता पर, एक मजबूरी सामने,
गरीबी हालात घर की, कागज कहां मिले,
लेखनी कैसे चला पाऊं, हाथ मेरे बंधे थे,
पर शिक्षक के व्यवहार, नहीं शिकवे गिले।

उनकी एक ही शिक्षा, अपना लेख सुधारों,
दस सफा लिखो राज के, ना समय गंवाओ,
कलम, दवात, होल्डर, सभी को रखना पास,
सुंदर लेख लिखकर, कक्षा पूरी को हँसाओ।

शिक्षक आकर रोज कहे, लेख और सुधारो,
मैं कहता गुरुजी डर लगता, डंडा मत मारो,
फिर भी ५-७ मार डंडे के,पड़ पड़ वो पड़ते,
बहुत उदास रहते देख, मन घुटता था हमारो।

सोचा अब तो बचना मुश्किल, करेंगे प्रयास,
घर पर खूब अभ्यास करे, फिर जागी आश,
करत-करत अभ्यास से, जड़मति हुई सुजान,
बार-बार लिखते रहे, बुरा लेख हुआ नाश।

देख लेख में सुधार, शिक्षक ने मारे कम डंडे,
बढ़ गया उत्साह मेरा, सोचा गाड़ दूंगा झंडे,
लेख में हुआ ओर सुधार, मन हा गया खुश,
कुछ और कम हुई पिटाई, मन का मिटा दुख।

फिर तो लेख गया सुधरता, जी सा ही आया,
शिक्षक ने एक रोज मुझे, हँसकर ही बुलाया,
कहा शाबास करो मेहनत, आगे तुम्हें बढऩा,
मन लगाकर करना काम, कुछ ज्यादा पढऩा।

मन हो गया खुश फिर तो, सुधरता गया लेख,
नजरों में दोस्तों के आया, दोस्त बन थे अनेक,
आखिरकार लेख हुआ सुंदर, नाम अति कमाया,
हर शिक्षक ने देख लेख, फिर मुझे गले लगाया।

एक दिन प्रार्थना सभा में, मेरा नाम ही पुकारा,
सुंदर लेख शृंखला में, ऊपर मिला नाम हमारा,
बड़ी ईनाम मिली मुझको, नहीं पीछे मुड़ देखा,
समझा अब तो बदल गई, मेरी भाग्य की रेखा।

वो दिन है उसके बाद, लेख जिसने भी है देखा,
वाह वाह! मुंह से निकला, पाठ ये नया सीखा,
एक के बाद एक बड़ी डिग्री, आखिरकार पाई,
एक दिन उस गुरु की मुझे तो, याद बड़ी आई,

पता किया गांवों से तो, शिक्षक का पता लगा,
प्यारे हो चुके प्रभु के वो, उसकी ही थी रजा,
बहुत दर्द हुआ दिल को, अच्छा लगा शिक्षक,
उसकी देन रही मुझ पर, नहीं रहे हम भिक्षक।

खूब ऊंचाइयां अब छू चुका, भूला नही पाता,
याद करूं शिक्षक की तो मेरा, दिल भर आता,
नमन आज शिक्षक दिवस पर, रहे स्वर्ग में वास,
करते रहना वहां पर भी, बुराइयों का तुम नाश।

लेख सुधारो, लेख सुधारो, आता है मुझको याद,
प्रभु वो शिक्षक फिर जन्म मिले, करते फरियाद,
नमन आज उनको, गुरु को, रहेंगे मेरे दिल सदा,
यादें उन दिनों की, गुरुओं की, नहीं करूंगा जुदा।

लेख सुधरा खूब, पढ़ाई कर ली खूब, नाम अच्छा,
अब तो दिन बुढ़ापे के आने लगे, प्रभु ही सच्चा,
भगवान शिक्षक को भेजता धरा पर देकर है ज्ञान,
सारे जग में शिक्षक सा नहीं, धरा पर है पहचान।

परिचय :- होशियार सिंह यादव
जन्म : कनीना, जिला महेंद्रगढ़, हरियाणा
पिता : स्व. श्री जयनारायण (कवि) एवं गोपालक देहांत १९८९
मां : स्व. मिश्री देवी गृहणि देहांत २०१६
निवासी : महेंद्रगढ़ हरियाणा
शिक्षा : पीएच. डी. (जारी) एम. एससी (बायो एवं आईटी), एम.ए. (हिंदी, अंग्रेजी एवं राजनीति शास्त्र), एमसीए, एम. एड., पीजी डिप्लोमा इन कंप्यूटर, पी जी डिप्लोमा इन जर्नलिज्म एवं मास कम्यूनिकेशन, पी जी डिप्लोमा इन गांधियन स्टडिज, गोल्ड मेडलिस्ट पंजाब वि.वि.।
रचनाएं : अब तक विभिन्न विषयों पर २४ पुस्तकें प्रकाशित। राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में शोधपत्र प्रकाशित, विभिन्न पत्र एवं पत्रिकाओं में कहानी, लेख, मुक्तक, क्षणिकाएं, प्रेरक प्रसंग, कविताएं प्रकाशित होती रहती हैं।
हरियाणा साहित्य अकादमी से अनुमोदित पुस्तकों में : आवाज, बाल कहानियां, उपयोगी पेड़ पौधे, शिक्षा एक गहना
व्यवसाय : लेखक, पत्रकार एवं शिक्षण कार्य में श्रेष्ठता।
सम्मान : हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड भिवानी द्वारा कहानी लेखन में प्रथम पुरस्कार सहित पांच दर्जन सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा सम्मानित। महेंद्रगढ़ न्यायाधीश द्वारा रजत पदक से सम्मानित। अरुंधती वशिष्ठ अनुंसधान पीठ द्वारा देशभर से आयोजित निबंध लेखन में एक्सीलेंस अवार्ड। हरियाणा के राज्यपाल से पुरस्कृत। तीन शोध भी प्रकाशित
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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