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परत दर परत

राजकुमार अरोड़ा ‘गाइड’
बहादुरगढ़ (हरियाणा)

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किशना पूरे गांव में घूम-घूम कर अपनी माँ की सत्रहवीं में आने के लिये सबको कह आया था। कारज में देसी घी का खाना था। सफ़ेद चकाचक कपड़े पहने किशना गर्वित मुद्रा में सबका अभिवादन कर रहा था। ११ पण्डितों द्वारा पाठ पूजा व उनके भोजन करने के बाद गांव वालों ने खाना शुरु कर दिया था अभी दो ही घंटे बीते थे तभी गांव के सरपंच के पिता मेजर दरियाव सिंह जो फ़ौज में शहीद बेटे की विधवा बहु पोते पोती की देखभाल के लिय शहर में रहते थे आ गये, किशना के कंधे पर हाथ रख कर बोले अब माँ की सत्रहवीं पर इतना बड़ा आयोजन कर वाहवाही ले रहे हो, जब तुम सिर्फ ७ साल के थे, तुम्हारे पिता के रेल दुर्घटना में मरने के बाद, छोटी सी दुकान से तुम्हें पढ़ाया, काबिल बनाया। १२ साल तुम्हारी माँ कूल्हे की चोट का सही इलाज न होने के कारण घिसटती रही, यही पैसा जो आज तुम दिखावे में लुटा रहे हो, तब माँ का अच्छा इलाज करा देते तो आज ८२ वर्ष की उम्र में चलती फिरती विदा होतीं, कह कर मेजर साहब बिना खाये निकल गये। किशना को लगा उसकी प्याज़ के छिलकों की तरह परतें परत दर परत उतार दी हैं और वह अंत में बची टिंड की तरह छोटा, बौना, निर्वस्त्र हो गया है।

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परिचय :- राजकुमार अरोड़ा ‘गाइड’ कवि,लेखक व स्वतंत्र पत्रकार
निवासी : बहादुरगढ़ (हरियाणा)


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