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आखिरी सफर

केशी गुप्ता
(दिल्ली)

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मंजुला के पार्थिव शरीर को देखकर कोई कह नहीं सकता कितना संघर्ष से भरा जीवन रहा होगा उसका। चेहरे पर वही सौम्यता और शांति थी। किरण टकटकी लगाए मंजुला के बेजान शरीर को देख रही थी। आंखों से रिमझिम रिमझिम बरस रही थी। अतीत की यादें आ जा रही थी। मंजुला और किरण बचपन की सहेलियां थी। जीवन के उतार-चढ़ाव सुख-दुख की भागीदार। एक दूसरे की सीक्रेट डायरी जैसी। जिसमें इंसान अपने अंदर के सब विचार खोल देता है। आज मंजुला का अंतिम सफर था किरण को अकेला महसूस हो रहा था। अब किससे वह अपने दिल की बात कह पाएगी। कुछ देर में मंजुला का शरीर भी नहीं रहेगा।
आने जाने वाले सभी लोग मंजुला के जीवन पर चर्चा कर रहे थे। बेहद शांत मधुर सादगी वाली थी मंजुला। हर हाल में खुश रहने वाली ईश्वर पर भरोसा करने वाली इस तरह की कई बातें रिश्तेदार और अन्य आने जाने वाले कर रहे थे। किरण ही जानती थी कि हर अच्छाई के बावजूद मंजुला को जीवन का सांसारिक सुख नहीं मिल पाया था। भीतर से वह बेहद तन्हा और अकेली थी। किसी से कहती नहीं थी। शादी की तो जब तक जीवन रहा पति से अनबन रही चाह कर भी बीच की दूरी को कभी खत्म ना कर पाई। दो बेटों की मां मगर बच्चों कि आपसी अनबन तथा असामान्य जीवन, जो कुछ मंजुला कर सकती थी उसने किया। नौकरी पेशा होने के साथ घर बाहर की सभी जिम्मेदारी को निभाया, बच्चों को अच्छे संस्कार देने की कोशिश की मगर कहीं कुछ छूट गया।
बच्चे मां को जिंदगी भर अपनी नाकामियों के लिए दोषी ठहराते रहे। मंजुला के अंदरूनी उत्साह ने फिर भी उसे कभी हार नहीं मानने दी। दिखने में छोटी सी मगर स्वतंत्र विचार वाली आत्मनिर्भर महिला थी मंजुला। कल ही तो बात हुई थी, वह हमेशा यही कहती मैं अच्छी हूं, मुझे क्या होना है? आज बिल्कुल खामोश लेटी है जैसे कह रही हो अब आराम करूंगी बेहद थक गई हूं। तभी पंडित जी ने बेटों को आगे आ मां के पार्थिव शरीर को कंधा देने के लिए आवाज लगाई राम नाम सत्य है, सत्य बोलो, सत्य है की आवाज गूंज उठी। मंजुला का आखिरी सफर शुरू हो चुका था। यही जीवन का सच है, जो उसे एक नई सफर की ओर ले जाता है। मंजुला अपने संघर्ष की कहानी अपने साथ ले गई और अपनी मिठास पीछे छोड़ गई। किरण ने गीली पलकों से मंजुला को विदाई का आखरी सलाम दिया।

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परिचय :- केशी गुप्ता लेखिका, समाज सेविका
निवास – द्बारका, दिल्ली


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