दीपक कुमार दिवाकर
मधेपुरा (बिहार)
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आज सुबह सुबह मोहल्ले के लोग अपनी-अपनी बालकनियों से चेहरे पर उदासी और दिलो में डर लिए बस राजीव के दरवाजे की तरफ नज़र टिकाये हुए उस एम्बुलेंस को देख रहे थे, जिसमे राजीव को बिठाया जा रहा था। उसने अपने पत्नी रीमा की और देखते हुए कहा क्या तुम फिर से अपनी हाथो की चाय पिलाओगी ना? यह पूछते वक़्त उसकी लाल खुश्क आंखों पे आंसू थे,शायद उनकी आंखों की उम्मीदे टूटती हुई नजर आ रही हो।
दिलासा देते हुए रीमा कहती हैं, “हाँ राजीव हम फिर से साथ बैठकर चाय पियेंगे” ये कहते हुए मानो उनका दिल बैठा जा रहा हो।
तभी पीपीइ किट पहने हुए चिकित्साकर्मी एम्बुलेंस का दरवाजा बंद कर अस्पताल की ओर चल पड़े। तीव्र ज्वर से तड़पते राजीव की साँसें उखड़ सी रहीं थी, ऑक्सिजन नली के सहारे मिल रही उधार की साँसों ने मानो उसका जीवन कुछ पल के लिये थाम रखा हो।
उधर दूसरी एम्बुलेंस में रीमा को भी बिठा कर कोरेंटाइन होने के लिए अस्पताल ले जाया जा रहा थी, बेचारी का तो रो-रो के बुरा हाल हो रहा था।
कितना कहती थी बेवजह बार-बार बाहर मत निकलो हर तरफ कोरोना का कहर चल रहा हैं, पर आजाद ख्यालो वाला राजीव कहाँ सुनता था उसकी।
उस दिन जब विदेश से लोटे राहुल ने रमेश को उम्दा विदेशी शराब पीने का न्यौता दिया था तब भी मना किया था “रीमा ने कहा था की जब माहौल ठीक हो जाये तब चले जाना राहुल कौनसा भागा जा रहा है”, पर राजीव ने एक ना सुनी और चला गया वाइन पार्टी के लिये।
४ दिन पहले राहुल की तबियत हद से ज्यादा बिगड़ जाने की वजह से उन्हें अस्पताल ले जाया गया जंहा उनकी मौत हो गयी, जांच के बाद मालूम चला राहुल की कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव हैं, उनकी ही हिस्ट्री से चिकित्सा विभाग को रमेश की जानकारी मिली थी,
अब ऐसा लग रहा था रीमा के सर पे दुःखो का पहाड़ टूट पड़ा हो, क्योकि वो राजीव के कमजोर इम्यून सिस्टम के बाड़े में जानती थी, उन्हें मौसम का छोटा बदलाव भी सहन नही हो पाता था, फिर ये तो कोरोना ही था। रीमा को लग रहा था शायद ये उसकी राजीव से आखरी मुलाक़ात है…
दिवाना था राजीव रीमा के हाथों की बनी मसाला चाय का, शायद आज सुबह की पहली चाय उसके जीवन की आख़िरी चाय थी।
दो सप्ताह बाद रीमा को अस्पताल से घर भेज दिया गया। इस कोरेंटाइन के बाद रीमा की ज़िंदगी में शामें तो कई आयी पर राजीव फिर कभी लोट कर नहीं आया…..।
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परिचय :- दीपक कुमार दिवाकर
निवासी : मधेपुरा (बिहार)
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