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मजदूर

राम रतन श्रीवास
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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हे मजदूर मैं तुझ पर क्या क्या लिखूं?

मानव विकास की हर ओ गाथा लिखूं।
या मजबूरी भरी व्यथा की कथा लिखूं।।
हर तड़पती पेट की ओ ज्वाला लिखूं।
या जीवन संघर्ष की ओ दास्तां लिखूं।।

हे मजदूर मैं तुझ पर क्या क्या लिखूं?

चिलचिलाती धूप देह से गंगा जैसी धार लिखूं।
या कड़कड़ाती ठंड ललाट की ओस बूंद लिखूं।।
हर उम्र मजदूरी और मजबूरी के ओ साख लिखूं ।
या किसी मजदूर शासक तसल्ली की बात लिखूं।।

हे मजदूर मैं तुझ पर क्या क्या लिखूं?

मजदूर के गगनचुंबी इमारत में योगदान लिखूं।
या परिवार भरण पोषण में सहयोग लिखूं।।
हर गरीबी शिक्षा में मजदूर के आधार लिखूं।
या नसीब में मजदूरी नियति को साफ लिखूं।।

हे मजदूर मैं तुझ पर क्या क्या लिखूं?

हर असहाय जनों के तुम्हारा वरदान लिखूं।
या बिन योग्यता के तेरी हर पहचान लिखूं।।
हर ओ शक्श के बेरोजगारी भरी जवानी लिखूं।
या ओ जवानी में ही बुढ़ापे की शिकन लिखूं।।

हे मजदूर मैं तुझ पर क्या क्या लिखूं ?

कोई मज़हब नहीं मजदूरी के मेहनताना लिखूं।
या शकून भरी नींद बिन दवा के सौगात लिखूं।।
कोई गिला शिकवा नहीं ईश का धन्यवाद लिखूं।
यहांँ सभी मजदूर हैं उसका मैं हिस्सा हूँ लिखूं।।

हे मजदूर मैं तुझ पर क्या क्या लिखूं?

परिचय :-  राम रतन श्रीवास
निवासी : बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
साहित्य क्षेत्र : कन्नौजिया श्रीवास समाज साहित्यिक मंच छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष
सम्मान : कोरबा मितान सम्मान २०२१ (समाजिक चेतना एवं सद्भाव के क्षेत्र में)
शिक्षा : हिन्दी साहित्य (स्नातकोत्तर)
अतिरिक्त : रेल परिवहन एवं प्रबंधन में डिप्लोमा
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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