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मजदूरिन

सीमा रानी मिश्रा
हिसार, (हरियाणा)

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जिधर देखो उधर नववर्ष की धूम है,
फिर भी कुछ लोग उदास व गुमसुम हैं।
पुराने वर्श को विदा करने की नहीं आतुरता,
केवल कुछ रूपए पाने की है उत्सुकता।
हम ठंड से ठिठुर रहे थे जहाँ,
वहीं वह श्रम बिंदुओं से रत थी।
उसे नए-पुराने वर्ष का गम न हर्ष था,
वह तो अधिकाधिक ईंटें ढोने में व्यस्त थी।
दो जून की रोटी की चिंता जितनी कल थी,
उतनी ही उसे आज और शायद कल भी होगी।
पर उसके मैले आँचल में कभी तुम,
कुछ रूपए यूँ ही रख मत देना।
उसकी आँखों में असीम दुख के अश्रु देख,
कहीं तुम भी संग उसके भावुक हो रो मत देना।
न ही उसकी गरीबी पर तरस खाकर,
तुम भिक्षा देने की भूल ही करना।
वह जीवन से लड़ना जानती है,
उसको कभी निर्बल न समझना।
वह नन्हें शिशु को नौ माह पेट में,
और डेढ़ साल पीठ पर रखती है।
वह भरी दोपहरी में सूर्य की ताप,
और सदिर्यों में शीत लहर को झेलती है।
जब उसका पति पीकर आता है,
तो अपने श्रम-धन को चुपके से समेटती है।
वह अक्सर भूखे रहकर भी,
अपने बच्चों के पेट को भरती है।
अपने कठोर और कर्मठ हाथों से,
दिन-रात वह मेहनत करती है।
दया की दृष्टि से जो देखो उसको,
उससे मुस्कुराकर वह यह कहती है-
मैं भाग्यशाली नहीं कि महलों का सुख पाऊँ,
पर मैं औरों के लिए महल बनाती हूँ।
वह मजदूरिन है कोई भिखारिन नहीं,
उसे किसी की दया नहीं काम चाहिए।
वह सुख-साधनों की पुजारिन नहीं,
उसे अपने लिए न सुख न विश्राम चाहिए।
माना कि दुखों की वह मारी है,
पर उसे भी प्रेम व सम्मान चाहिए।

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परिचय : सीमा रानी मिश्रा
पति : डाॅ. संतोष कुमार मिश्रा
पता : हिसार, (हरियाणा)
पद : शिक्षिका


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