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मजदूर की मजबूरी

श्याम सिंह बेवजह
नयावास (दौसा) राजस्थान

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मजदूर देखों कितने मजबूर हो गए
सपने थे दो रोटी के वो भी खो गए
हैरां परेशान विवशता देखों उनकी
थके थे इतने की वो पटरी पे सो गए

मुश्किलें देख ह्रदय व्याकुल हो गया
ऐसी स्थिति देखकर मेरा मन रो गया
भूखे प्यासे राह नापते बैलों से निकले
देख धूप एक बैल आसमां में खो गया

बनते बैल अब बारी बारी से आते है
कहि घोर घटा तो कहि काली राते है
कैसी विपदा ये मालिक दी आज तूने
कई रातों से ना नहाते है न ही खाते है

यहाँ कोई सुनता नही तू ही सहारा है
मार या जिंदा रख अब तू ही हमारा है
तेरा आखिर तुझको ही अर्पित हे नाथ
ये मतलबी दुनिया ये जग सब तुम्हारा है

सरकार अमीजादों को घर पहुँचाया है
सदैव तत्पर आपके लिए गुनगुनाया है
गरीब मजदूरों की अब कोई सुनता नही
हाल बेहाल “श्याम”तुमने आखिर गाया है

 

परिचय :-  श्याम सिंह बेवजह
निवासी : नयावास (दौसा) राजस्थान


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