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मजदूर और शहर

दीपाली शुक्ला
कसारडीह दुर्ग (छत्तीसगढ़)

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शहर तू क्या उसे भूला पाएगा?
जो सहमा सा है शहर तू आँचल में छिप जाएगा,
खून पसीना सींच भी वह ममता न पाएगा,
उॅगली पकड़ चलाया जिसने तू उसे भूला जाएगा,
मकान तो छोड़ ही दे वह चारदीवारी न पाएगा,

वह जानता नहीं क्या मिला उसे यहाॅं,
न जानता है वहाॅं क्या मिल पाएगा,
जिस तरह जानता है हर डगर को वह यहाॅ,
उसके इस सफर को क्या कोई समझ पाएगा,

कभी खुद को न तुझसे मिला पाएगा,
दिल में फिर भी न तूझसे गिला पाएगा,
अपना न सका तू अलविदा भी न कह पाएगा,
क्यों तेरे खातिर वह मिट्टी वतन की छोड़ आएगा,

बापू ! पूछना मत अब, कब तक लौट आएगा,
यह जवान बाजूओं के दम से, सैलाब न रोक पाएगा,
बापू बेटा चला है तेरा भी, और मेरा भी,
दुआए पहुॅची उस तक, तो एक तो लौट ही जाएगा,

सपने जिससे सहेजे थे, वह ताले तोड़ लाएगा,
हर चीज उस पेटी की हकीकत ही बेच खाएगा,
उसकी बाती बिना तू आँगन कैसे सजाएगा,

सच कह दे आज घुटनों के बल भी चल पाएगा?

परिचय :- दीपाली शुक्ला
जन्म : ०३ ०१ २००१
निवास : कसारडीह दुर्ग (छत्तीसगढ़)
शिक्षा : बी.ई. विद्यार्थी
घोषणा : मेरी रचनाएँ मौलिक है।


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