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कृष्ण

रीमा ठाकुर
झाबुआ (मध्यप्रदेश)
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बुला रही हूँ कबसे तुमको
अब तो कान्हा आ जाओ!
पंथ हार आखियां अब तरसी,
अब तो दरश दिखा जाओ!!

जन्म से कारागार चुना,
क्यू इतनी लीला रच डाली!
माता पिता से दूर हुए
“यशोदा की गोदी भर डाली!!

शिशु रुप में ही कितने ही
पापियों को, तार दिया!
तारनहार बने प्रभु मेरे,
पापों से उद्धार  किया!!

प्रेम मूक था, राधा के प्रति,
प्रेम क्या होता समझाया!
ये काया है, भ्रमित हमारी,
दुनिया को है बतलाया!!

प्रेम अमर  है, न है बंधन,
मुक्त  भाव जी पाएगा!
तेरा होगा मुक्त रहेगा,
फिर भी कही न जाऐगा!!

मीरा ने प्रेम किया,
वैराग्य में विष को पी डाला!
समा गयी हृदय प्रभु के,
प्रेम इतिहास ही लिख डाला!!

रूक्मिणी के प्रेम को समझा,
राधा को भी न भूले!
साथ निभाया, जन्मों जनम का,
विरह को भी जो जीले!!

गीता का उपदेश दिया,
कर्मो की प्रधानता को समझाया!
कितने भ्रम छुपे नरतन में,
अर्जुन को फिर बतलाया!!

प्रभु की लीला, प्रभु ही जाने,
मै तो बस दीवानी हूँ!
प्रभु की छवि जिसमें दिख जाये,
उसकी एक कहानी हूँ!!

हृदय बसाकर गिरधर मूरत,
मोह पाश में बंधी रहूँ!
बस इतना करना बनवारी,
कर्ममार्ग पर डटी रहूँ!!

न भूलूँ मै प्रेम तुम्हारा,
न तुमको पाना चाहूँ!
निर्बल न कर देना मुझको,
दोनों को खुद में पाऊँ!!

डोर प्रेम की बंधी रहे,
न प्रभु भूले न मै भूलूँ!
आत्म मंथन आसक्त रहूँ मै,
शिव भक्ति में मै बोलूं!!

परिचय :- रीमा महेंद्र सिंह ठाकुर
निवासी : झाबुआ (मध्यप्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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