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कोविड-१९ लॉक डाउन-अनलॉक डाउन- एक मनोसामाजिक विवेचन

डॉ. ओम प्रकाश चौधरी
वाराणसी, काशी

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                                  कोरोना वायरस मानव इतिहास की एक बहुत बड़ी घटना है।अकस्मात आयी इस विपदा से निजात पाने की अनिश्चितता विश्व के समस्त देशों में है। व्यवसाय-व्यापार, निर्माण कार्य बंद हो जाने से सामाजिक-अर्थिक स्थिति परिवर्तित हुई है।लोगों में लॉक डाउन के कारण अलगाव व विवशता बढ़ी हैं। हमारे सामाजिक व मानसिक दृष्टिकोण परिवर्तित हुए हैं। सोच का दायरा, रहन-सहन, जीवन शैली, आचरण, व्यवहार में परिवर्तन आया है। घर मे लगातार पड़े रहने से लोगों में उत्तेजना बढ़ रही है। कोरोना वायरस से जो बेबसी और निराशा उभरी है, उससे हमारा शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है। हम इस समय सामाजिक परिवर्तन से गुजर रहे हैं, धार्मिक, सामाजिक, पारिवारिक मान्यताएं, मापदंड परिवर्तित हो रहे हैं। ऐसी स्थिति में हमारा शारीरिक व मनोसामाजिक दृष्टिकोण प्रभावित हुआ है।
कोरोना वायरस चीन (कोविड-१९ से संक्रमित पहला मरीज १७ नवम्बर, २०१९ को हुबेई, वुहान में संज्ञान में आया था) से शुरू होकर इस समय विश्व के लगभग समस्त देशों को आच्छादित कर लिया है व एक करोड़ से भी अधिक आबादी को अपनी गिरफ्त में ले रखा है और मृतकों की संख्या पांच लाख को पार कर चुकी है, लगभग ५६ लाख लोग स्वस्थ भी हो चके हैं। अपने देश भारत मे भी तेजी से बढ़ रहा है, अब तक साढ़े पांच लाख से भी अधिक लोग इस वायरस के शिकार हो चुके है जिनमें १६ हजार से भी अधिक लोग काल कवलित हो चुके है, लगभग तीन लाख से भी अधिक लोग इस संक्रमण से मुक्त भी हो चुके है, यह संख्या मेरे लिखे जाने तक है, अभी आगे यह महामारी कितने हजार /लाख को अपना शिकार बनाएगी, कुछ कहा नहीं जा सकता है। मानव के इतिहास में अभी तक ऐसी भयंकर त्रासदी पहले कभी नही देखी गयी। ऐसे में लॉक डाउन के अतिरिक्त कोई विकल्प दिखाई नही पड़ रहा था। परन्तु ४ लॉक डाउन (कुल ६९ दिन) के कारण अनिश्चय के दौर में सामाजिक अलगाव, सामाजिक दूरी व आर्थिक परेशानी का अनुभव बहुत से लोगों में चिंता, भय व थकान को बढ़ा रहा है। अभी अनलॉक डाउन-१ चल रहा है, जिसकी अवधि भी समाप्त होने को है। इस दौरान हमारा रहन-सहन, खान-पान, रीति-रिवाज, व्यवहार, सामाजिक-आर्थिक, धार्मिक स्थिति, जीवन शैली प्रभावित हुई है। इस अदृश्य महामारी के शिकार हम कब, कहाँ और कैसे हो जायेगे, एक अज्ञात चिन्ता ने हमें परेशानी में डाल दिया है। लोगों का मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ रहा है, चिंता और अवसाद का शिकार हो जा रहे हैं। लेकिन इसी भय और निराशा से ही आशा और विश्वास की किरण भी फूटती है यह कहा गया है कि ‘हमारी हार-जीत हमारी मनःस्थिति’ से तय होती है। एक ही परिस्थिति को विभिन्न व्यक्ति भिन्न-भिन्न तरीके से ग्रहण करते हैं, लेकिन जिनका चिंतन सकारात्मक होता है वही अनिश्चितता को निश्चितता में, अंधेरे को उजाले में,दुःख को सुख में, विपरीत को अनुकूलता में, अशांति को शांति में परिवर्तित करने में सफल हो सकते हैं। इसलिए हमें सकारात्मक सोच और आत्मविश्वास के साथ इस महामारी का मुकाबला पूरी मजबूती के साथ करना चाहिए। हमें मानसिक रूप से मजबूत रहना है। साथ ही नकारात्मकता से बचना है। जॉन एच मिलर ने ठीक ही लिखा है कि चिंता से बच नही सकते, परंतु यदि उसके प्रति अपनी मानसिकता बदल ली जाय, तो उसे दूर भगाया जा सकता है। वास्तव में मनुष्य ऊर्जा का पुंज होता है, उसे सकारात्मक दिशा में प्रवाहित करने की आवश्यकता है। इस सामाजिक और मानसिक तनाव से हम तभी मुक्ति पा सकते हैं, जब हम अपने अन्दर समायोजन व अनुकूलन की क्षमता विकसित कर लें। हमें आजकल परिवार में समय व्यतीत करने का पर्याप्त समय व अवसर मिला है, जो हमें हमेशा सुरक्षा की भावना, सहयोग, आत्मिक लगाव, अपनत्व की भावना उपलब्ध कराता है जिससे हमारा मनोबल ऊंचा रहता है। सामाजिक सुरक्षा भी मिलती है।
भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री जी के आह्वान पर हम सभी देशवासियों ने कोरोना योद्धाओं के प्रति सम्मान व इस महामारी से सामूहिक रूप से लड़ने का एलान अपने घर से शंखनाद करके कर ही दिया था। हमारे स्वास्थ्य कर्मी, डॉक्टर्स,स्वच्छता कर्मी, पुलिस के लोग, प्रशासनिक अधिकारी गण लगातार बिना रुके, बिना थके इस संकट की घड़ी में अहर्निश कोरोना से जंग लड़ने में हमारी सहायता कर रहे हैं, निःसंदेह वह सराहनीय है। अध्यापकों के योगदान को भी कमतर नही आंका जा सकता है जो विद्यार्थियों को ई अधिगम के माध्यम से न केवल उनकी पाठ्यक्रम संबंधी कठिनाइयों को दूर कर रहे है, अपितु उनकी मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं का भी समाधान कर रहे हैं। हम नागरिकों का कर्तव्य है कि सरकार द्वारा समय-समय पर निर्गत दिशा निर्देशों व नियमों का पालन करते हुए कोरोना योद्धाओं का उत्साहवर्धन करते रहें। हम सभी को जीवन रक्षा के कर्तव्यों को पूरा करने के लिए जन स्वास्थ्य के प्रति सजग रहना है।
सरकार यद्यपि कोरोना से बचने व उसके निदान तथा उपचार के विभिन्न उपाय कर रही है फिर भी कोविड-१९ के खतरे से जो बेबसी और निराशा उभरी है, वह स्वस्थ लोगों में भी चिंता, तनाव व अवसाद बढ़ा दे रही है, जिससे लोगों में गुस्सा, चिड़चिड़ापन, माइग्रेन, एकग्रता में कमी, मोटापा, अनिद्रा की समस्या उत्पन्न हो रही है। विगत दिनों रोजगार के फेर में गए कामगार महानगरों से पैदल ही कई सौ किलोमीटर की यात्रा करके अपने-अपने घरों को लौटने को बेताब सड़कों पर दिखे। इनमें से कुछ बदनसीब ऐसे भी थे जिनका यह आखिरी सफर साबित हुआ, अपने प्राण गवां दिए। अपने गॉव-गिरांव की मिट्टी भी नसीब नही हुई। इनका रोजगार खत्म हो गया साथ में पैसा नहीं था, रोटी का ठिकाना नही था। विगत ८ मई को ही महाराष्ट्र के औरंगाबाद में करमाड स्टेशन के पास लम्बी पैदल यात्रा के कारण हुई थकान के चलते रेलवे पटरी पर ही सो रहे मजदूरों की मालगाड़ी के चपेट में आ जाने से दर्दनाक मौत हो गयी। खून से सनी रोटियां ट्रैक के बीच पड़ी थी, इन्हीं रोटियों की खातिर वे कामगार इतनी दूर गए थे और इन्ही रोटियों के सहारे पैदल ही सैकड़ों किलोमीटर दूर अपने गांव लौट रहे थे। इससे एक दिन पूर्व ही लखनऊ में छत्तीसगढ़ के कृष्णा साहू, मेहनत मजदूरी कर जिंदगी पालने वाले, काम-धंधा बन्द होने के कारण बदहाली से तंग आकर अपनी पत्नी व दोनों बच्चों को साईकल पर बिठाकर सैकड़ो किलोमीटर की यात्रा पर निकल पड़े लेकिन पीछे से आ रहे तेज रफ्तार वाहन ने उन्हें रौंद दिया, पति-पत्नी वहीं परलोक सिधार गए, दोनों बच्चे हॉस्पिटल में भर्ती करा दिए गए, पल भर में अनाथ हो गए उनके भविष्य का क्या होगा, सोचकर ही मन सिहर उठता है। पिछले महीने एक टीवी चैनल ने गलती से यह सूचना प्रसारित कर दी कि रेल सेवा बहाल हो गयी है। मुंबई के एक रेलवे स्टेशन पर कई हजार लोगों की भीड़ एकत्र हो गयी।पुनः निराश होकर वे अपनी जगह लौट गए, कुछ को सरकार ने व्यवस्थित किया। ये वो लोग हैं जो हजारों किलोमीटर दूर से आकर महानगरों में अपना जीवन यापन परिवार के साथ कर रहे थे। अंततः वे निराश होकर पैदल ही चल दिये। क्योंकि अधिकतर दिहाड़ी मजदूर थे जो रोज कमाते और खाते थे, उनके समक्ष रोटी का संकट था, बच्चों के पालन-पोषण की चिंता थी, जीवन का संकट था। लखनऊ के कृष्णा साहू, औरंगाबाद, मुंबई या देश के अन्य भागों में इन अभागों की कहानी समान है। कोरोना संक्रमण ने अभी तक अनेक खट्टे-मीठे अनुभव दिए हैं। हम भीतर से हिल गए हैं, लेकिन इनकी सहायता में सरकार के साथ ही अनेक गैर सरकारी संगठन व सामाजिक संस्थाएं शिद्दत से लगी हैं जो हमारी भारतीय संस्कृति की अनुपम विशेषता है कि असहाय व मजबूर की मदद की जाय। जहां विश्व के बहुत से सम्पन्न देश हताश और निराश हैं, वही कई अभावों के बीच भी भारतीय समाज मे उतनी बेचैनी नहीं दिखती है, तो इसकी वजह यहाँ का सामाजिक ताना-बाना है, संस्कृति है,तमाम गिले-शिकवों के बाद भी हम भारत के लोग आधी रोटी मिल- बांटकर खाने में भरोसा रखते हैं।
कोविड-१९ से जो डर और भय व्यक्ति के अंदर समा गया है, उससे जो बेबसी और निराशा उभरी है, वह स्वस्थ लोगों के भी मानसिक स्वास्थ्य को गड़बड़ा सकती है। एक अध्ययन के अनुसार लॉक डाउन के दौरान लगभग २० प्रतिशत अधिक लोगों में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं उत्पन्न हुई हैं। आत्महत्या की घटनाओं में वृद्धि हुई है। लगातार घर मे रहने के परिणामस्वरूप नीरसता, ऊब और सामाजिक-आर्थिक कठिनाई व्यक्ति के तनाव में बृद्धि कर सकती है, उनमें अप्रत्याशित व्यवहार के लक्षण उभर सकते हैं। लेकिन हमें ऐसी स्थिति में लोगों से संपर्क बनाए रहना चाहिए, अन्तःक्रियात्मक व्यवहार जारी रखना चाहिए। अलगाव या दूरी की जो बात है वह शारीरिक या भौतिक है, सामाजिक दूरी नहीं है, इसलिए अपने मित्रों, रिश्तेदारों आदि के संपर्क में ईमेल, फ़ोन, सोशल मीडिया से जुड़े रहना चाहिए। लोगों के संपर्क में रहकर बातचीत करके तनाव को कम किया जा सकता है। तनाव व अवसाद से छुटकारा पाने का सबसे अच्छा तरीका बातचीत करते रहना है लेकिन दुर्भाग्य से इसके महत्व को हम स्वीकार तो करते हैं लेकिन उतना महत्व नहीं देते हैं। एक नियमित दिनचर्या जिसमें व्यायाम, प्राणायाम, योगासन या किसी भी तरह का शारीरिक श्रम जरूरी है, अध्ययन-कहानी, कविता, उपन्यास, धार्मिक ग्रंथ अर्थात अपने रुचि का साहित्य, नृत्य, संगीत, बागवानी, पेंटिंग, क्राफ्ट वर्क आदि या रुचि का अन्य कार्य को घर में पृथकवास में रहते हुए करना चाहिए। कोरोना वायरस के प्रतिदिन बढ़ते आंकड़ों से सहमी दुनियां को यह स्वीकार करना होगा कि उसे अभी इस विषाणु के साथ ही जीना है। इसके लिए हमें महात्मा गांधी के बताए मार्ग प्रकृति के निकट रहने और स्वच्छता का विशेष ध्यान देना होगा। यत्र-तत्र कूड़ा-कचरा, गंदगी फैलाने वाली अपनी पुरानी आदत का परित्याग करना होगा। शासन-प्रशासन एक सीमित अवधि तक ही सख्ती बरत सकता है, अंततःहमे स्वयं ही कायदे-कानून को बनाये रखना होगा। तभी हम लॉक डाउन के पश्चात अतः उत्तर कोरोना काल में होने वाली सामाजिक व मानसिक समस्याओ से छुटकारा प्राप्त कर सकेंगे।
मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि नियमित व्यायाम करने से भी तनाव कम किया जा सकता है, इसलिए टहलना, योगासन, प्राणायाम, जॉगिंग, सीढ़ी चढ़ना उतरना, खेलना आदि हमें प्रतिदिन ३० से ४० मिनट तक कम से कम करना चाहिए। निश्चित रूप से अपनी सकारात्मक सोच, नियमित दिनचर्या, उचित आहार-विहार से हम इस महामारी से तथा उससे उत्पन्न बाद कि समस्याओं से निजात पा सकते हैं। उम्मीद की किरण हमारे अंदर उत्साह का संचार करती है। सुबह-शाम नियमित रूप से व्यायाम करें। यदि घर मे जगह हो तो गृह वाटिका में बागवानी करें अन्यथा गमलों में ही पौधरोपण करें, यह व्यस्तता व व्यायाम अवसाद कम करने का सबसे अच्छा तरीका है। बच्चों के साथ समय व्यतीत करें, खेलें व अपनी परम्परा, रीति-रिवाज, संस्कृति व सामाजिक सरोकारों से परिचित कराएं।अपनी सुरक्षा के साथ ही औरों की भी सुरक्षा आवश्यक है,जिसके लिए साबुन से हाथ धोते रहना,मास्क और 2 गज की दूरी जरूरी है। इन सभी का ध्यान रखते हुए सामाजिक रूप से एक दूसरे से मानसिक निकटता (भौतिक दूरी बनाकर) बनाये रखते हुए, हम सभी एक-दूसरे से आपस में जुड़े रहकर, सहयोग कर, मनोभावों, संवेगों, संवेदनशीलता, निजता का सम्मान करते उचित आहार-विहार, जीवन शैली अपनाते हुए, योग और प्राणायाम के अभ्यास से कोविड-१९ से जंग जीत सकते हैं और एक स्वस्थ समाज व राष्ट्र के निर्माण में अपना योगदान दे सकते है।

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परिचय :- डॉ. ओम प्रकाश चौधरी
निवासी : वाराणसी (काशी)
शिक्षा : एम ए;पी एच डी (मनोविज्ञान, एलएलबी
सम्प्रति : एसोसिएट प्रोफेसर एवम विभागाध्यक्ष, मनोविज्ञान विभाग श्री अग्रसेन कन्या पी जी (स्वायत्तशासी) पी जी कॉलेज वाराणसी।
लेखन व प्रकाशन : समाचार पत्र-पत्रिकाओं में आलेख लेखन। कई पुस्तकों में अध्याय लेखन सहित ३ पुस्तकें प्रकाशित। भारतीय समाज विज्ञान अनुसंधान परिषद,दिल्ली द्वारा शोध प्रबंध प्रकाशित।
रुचि : पर्यावरण संरक्षण विशेषकर वृक्षारोपण।
सम्मान : गाँधी पीस फाउंडेशन, नेपाल द्वारा “पर्यावरण योद्धा सम्मान”प्राप्त।


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