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ज्ञान वही… जो जागृत कर दे

ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता)
धवारी सतना (मध्य प्रदेश)
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क्या होगा गीता पढ़ पढ़ कर,
जब मन में न आये कोई ज्ञान।
कितना भी पढ़ पण्डित हो जाये,
पर, व्यर्थ रहे, जब हो अभिमान।।

ज्ञान बहे धरती पर ऐसे,
ज्यों हो बादल की बरसात।
पर, व्यर्थ बहें ये बूंदे कीमती,
बंजर धरती न समझे औकात।।

इसी तरह इस मानव मन पर,
कभी न पड़ता कोई प्रभाव।
चाहे जितने भी ग्रंथ वो पढले,
पर मन से न जाये दुर्भाव।।

प्रतिदिन होती धर्म सभायें,
होता भगवत, गीता का ज्ञान।
कितने जाते गुरुद्वारे, चर्च,
कितने पढ़ते बैठ कुरान।।

पर कभी समझ न पाते ये,
अपने ईश्वर का धर्म आदेश।
क्या यही सिखाया प्रभु ने हमें,
क्या यही दिया था उनने उपदेश।।

ईश्वर तत्व है भाव कल्याण का,
जो सबका चाहें सदा कल्याण।
तो, चाहो तुम यदि प्रभु को पाना,
तब समझो फिर तुम उनका ज्ञान।
तब समझो फिर तुम उनका ज्ञान।
तब समझो फिर तुम उनका ज्ञान।।

परिचय :- ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता)
निवासी – धवारी सतना (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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