डाॅ. राज सेन
भीलवाड़ा (राजस्थान)
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खटखटाने दो द्वार दुःखो को
हम खुशियों में चूर रहे।
व्यस्त रहकर सदा सद् कर्मों में
हम बुराइयों से दूर रहे।।
ईश्वर देखकर लिख रहा
हरपल कर्मों का खाता हमारा
जरूरी नहीं कि हम दुनिया के
दिलों में भी मशहूर रहे।
चल रहे हैं यदि सबसे अलग
हटकर सद् मार्ग में हम तो
मिलेगा कम औरों से पर
होगा सुखद याद ये जरूर रहे।
सौंप दिया जब स्वयं को
प्यारे प्रभु के हाथों में विश्वास कर
तो उसके दिये फूल और
हमारे उगाऎ काँटें मंजूर रहे।
बदला न लें बदल कर दिखाऎं
अंश मात्र भी जो बुरा है
किसी का किरदार ही बुरा हैं
तो हम भी क्यों क्रूर रहे।
ना रख उम्मीद जमीं के रहने वालों से
स्वर्गिक सुख लेने की
उड़े हल्का होकर दिव्य गुणों की
खुशबू से भरपूर रहे।
रहना हैं तो ‘राज़’ खुशियाँ बाँटे
बस यही राह श्रेष्ठ है
दुःख देने वाले को भी दे दुआ
हमारा तो यही दस्तूर रहे।।
परिचय : डाॅ. राज सेन
शिक्षा : नेट, विद्यावाचस्पति, तीन भाषाओं सहित चार विषयों में स्नातकोत्तर, अन्तर्राष्ट्रीय-राष्ट्रीय स्तर पर संत काव्य की पवित्रता के पक्षधर,
सम्प्रति : सहायक आचार्य-हिन्दी, श्रीमती नारायणी देवी महिला शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय भीलवाड़ा ( राज.)
निवासी : भीलवाड़ा (राजस्थान)
घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।
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