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पतंग

संजय वर्मा “दॄष्टि”
मनावर (धार)

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आकाश में उड़ती
रंगबिरंगी पतंगे
करती न कभी
किसी से भेद भाव

जब उड़ नहीं पाती
किसी की पतंगे
देते मौन हवाओं को
अकारण भरा दोष
मायूस होकर
बदल देते दूसरी पतंग
भरोसा कहा रह गया
पतंग क्या चीज

बस हवा के भरोसे
जिंदगी हो इंसान की
आकाश और जमींन के
अंतराल को पतंग से
अभिमान भरी निगाहों से
नापता इंसान
और खेलता होड़ के
दाव पेज धागों से

कटती डोर दुखता मन
पतंग किससे कहे
उलझे हुए
जिंदगी के धागे सुलझने में
उम्र बीत जाती

निगाहे कमजोर हो जाती
कटी पतंग
लेती फिर से इम्तहान
जो कट के
आ जाती पास होंसला देने

हवा और तुम से ही
मै रहती जीवित
उडाओं मुझे?
मै पतंग हूँ उड़ना जानती
तुम्हारे कापते हाथों से
नई उमंग के साथ
तुमने मुझे
आशाओं की डोर से बाँध रखा
दुनिया को उचाईयों का
अंतर बताने उड़ रही हूँ
खुले आकाश में।

क्योकि एक पतंग जो हूँ
जो कभी भी कट सकती
तुम्हारे हौसला खोने पर।

परिचय :- संजय वर्मा “दॄष्टि”
पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा
जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन)

शिक्षा :- आय टी आय
व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग)
प्रकाशन :- देश – विदेश की विभिन्न पत्र – पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति “दरवाजे पर दस्तक”, खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा -अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता भारत की और से सम्मान – २०१५, अनेक साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित
संस्थाओं से सम्बद्धता :- शब्दप्रवाह उज्जैन, यशधारा – धार, मगसम दिल्ली,
काव्य पाठ :- काव्य मंच/आकाशवाणी/ पर काव्य पाठ, शगुन काव्य मंच
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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