रंक से बना दिया राजा
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रचयिता : विनोद वर्मा “आज़ाद”
ये बात बरसो पुरानी है एक नन्हा बालक 6 माह का था और काल के क्रूर हाथों ने उसकी मां का साया सिर पर से उठा लिया। बड़ी भाभी ने देवर से पूछा- “भइजी अब इना बच्चा को कय होयगो ? (बड़ी मां बच्चे की परवरिश करना चाहती थी) तो उनका कहना था मेरी सास इस बच्चे को रख लेगी। लेकिन सास यानी बच्चे की नानी ने साफ मना कर दिया कि मेरा छोटा सा घर और बच्चा है तो मैं इसको नही रख पाऊंगी। फिर अपनी बड़ सास यानी पत्नी की बड़ी बहन के बारे में कहा, तो उन्होने भी मना कर दिया। तब अपनी भाभी को बच्चा सुपुर्द करने की बजाय कहा ‘जी’ यानी उनकी मां और राजन यानी भतीजा को ले जाऊंगा। कुछ समय उपरांत दादी और बड़े भैया ने प्रारम्भ में उन बच्चों की देखभाल की। पिता ने गन्धर्व विवाह कर लिया। उनसे एक बेटे और बेटी ने जन्म लिया। फिर जैसा कि होता है सौतेली मां का असली चरित्र देखने को मिलता है। दो बड़ी बहनों के इस नन्हे से बालगोपाल पर क्रूरता का प्रकोप प्रारम्भ हुआ।
पिता दिन में सरकारी नौकरी पर चले जाते। घर आते ठंडा-गरम कुछ लेकर बाजार से सब्जी ला देते और घर से निकल जाते।
बच्चों पर उनका ध्यान प्रारम्भ में तो काफी रहा पर शनै-शनै ध्यान कम होता गया। रात्रि 9 बजे के पहले घर आना लगभग बन्द हो चुका था। महफ़िल में बैठकर एन्जॉय कर हल्का फुल्का भोजन करना प्रतिदिन की दिनचर्या बन गई। बच्चों को पहले ही भोजन करवाकर बिस्तर पकड़ने के आदेश होने लगे। बच्चों का पिता से मिलना नाममात्र का हो गया क्योंकि अब मां और भतीजा अपने पुश्तैनी गांव वापस आ गए थे।
एक बार नन्हे बच्चे के हाथ से कप गिरने पर उसकी डंडी टूट गई, बारिश हो रही थी, तीनो भाई-बहनों को पानी के नेवते के नीचे खड़ा कर सजा दी गई। अब प्रतिदिन किसी न किसी बहाने और तरीकों से तीनों भाई-बहनों को प्रताड़ना मिलने लगी। लगातार ऐसी स्थिति के कारण तीनों भाई-बहनों के मन-मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव होने लगा। डरे-सहमे से रहने लगे।
एक दिन अचानक बच्चों की बड़ी मां ने उक्त स्थल पर पहुंचकर विस्मित कर दिया। सब बच्चों से मिली। देवर-देवरानी से बात की। बच्चों के हाल जाने। इसी दौरान बड़े परिवार, समाज और महिला मंडल में रही बड़ी मां ने देवरानी की कारस्तानी कनखियों से देखी जो बच्चों को कड़क निगाह से चमकाने का प्रयास कर रही थी। दो दिन रुकी रही। इसी दौरान एक वाकया बड़ी मां के सामने घटित हुआ –“एक कौवे ने दूसरी पत्नी के बेटे के हाथ से टोस (तोस) छीनने की कोशिश की। टोस गिरकर बरामदे से नीचे चला गया, बच्चा जोर-जोर से रोने लगा। तब इस नन्हे बालक ने उस टोस को उठाकर अपने छोटे भाई को देने की कोशिश की। अपने बच्चे का रोना सुनकर मां दौड़कर आई और टोस दे रहे उस नन्हे बालक तो तड़ करके एक चांटा जड़ दिया। उसके इस चांटे ने बड़ी मां को उद्वेलित कर दिया। बड़ी मां ने कहा-कि इको तो कय दोष नी थो, यो तो टोस उठय के लायो ने देने लग्यो क्योंकि कव्वों इका हाथ से टोस छुड़य रयो थो।
वह चुप रही और बड़-बड़ाते हुए अपने बच्चे को उठाकर घर के अंदर चली गई। तीसरे दिवस अपने देवर से कहा कि भईजी मैं जयन्ता के ली जव, थोड़ा दिन वां री लेगो ? तो देवर के पहले देवरानी ने कहा- हां भाभीजी ली जाव तम। ने इनी छोरी ना के ? तो देवरानी के चेहरे पर अलग भाव आ गए। बोलने लगी इना छोरा के कुन अवेरेगो, ने फिर मैं अकेली कय-कय करूँगा। तम इना छोरा के लि जाव।
अपने गृह नगर बड़ा बजार में बालक को ले आई। घर आकर अपने बड़े बेटे को सारी घटना शेयर की और झिझकते हुए बड़े बेटे से पूछा अपन इके यय रखी ला। म्हारो छोटो सो पसुडो ने वी छोरी ना भोत तकलीफ में रे है। तो चूंकि हम सभी भाई-बहन अपनी मां के आज्ञाकारी रहे थे, सो मां की भावना का आदर करते हुए जयंता को यही रख लिया।
तेज आवाज में अगर जयंता को पुकारते तो वह सहम जाता और घबराहट के भाव आजाते। तो मेरे मन ने कहा-अरे छोरे को तो पागल कर देगी वो औरत ? बस मैने मां के समक्ष सहमति में सिर हिला दिया।
यहां आकर जयंता खुश रहने लगा अपने भाइयों व बड़ी बहन के साथ मस्ती करते हुए डिप्रेशन से बाहर आने लगा। बड़े भाइयों में एक ने फौज ज्वाइन की और एक शिक्षक बन गए। नन्हे जयंता के लिए बड़े भाई ने अपनी २४ इंची सायकिल पर छोटी सीट कसवा ली और नन्हे जयंता को अपने साथ विद्यालय ले जाने लगे। सब बच्चों के साथ स्वच्छंद रूप से विचरण करने के कारण मन-मस्तिष्क पर पड़ा गहरा प्रभाव छंटने लगा।
अब वह भी विद्यालय जाने लगा। समय बीतता गया। चौदह वर्ष की आयु में एक राजनैतिक विद्यार्थियों के संगठन के अध्यक्ष के रूप में बागडोर सम्भाल ली। पूरे परिवार को उसकी प्रतिदिन की गतिविधियों और सद्कार्यों को देख-सुनकर खुशी होने लगी। इसी दौरान वह जगतगुरु के सम्पर्क में आया और उनकी सच्चे मन से सेवा करने लगा। बड़ी मां अब यशोदा की भूमिका निभा रही थी। उसके हर अच्छे-बुरे का ख्याल रखती, समय-समय पर हमें उसकी इच्छा और भावनाओं से अवगत करवाती। जन्मदिन पर बड़े भाई उसे नए कुर्ते-पायजामा पहनाकर बड़ी मोरी पर ले जाकर माताजी के चरणों में शीश नवाकर हारफूल प्रसाद, नारियल चड़वाते और जयंता को भी हार पहनाते।
फिर सिद्ध गुरुदेव के आशीर्वाद के साथ बहुत बड़े लीडर की उंगली जयंता ने थाम ली। बस फिर क्या था।
इधर जयंता अपनी छवि शॉप पर सुंदर छवि स्पेश्लिष्ट बन गया। साथ ही पढ़ाई, राजनीति और धर्म-कर्म में जी जान से जुट गया। पारिवारिक संस्कार में जीवटता थी। नंदबाबा (बड़े पिताजी-प्रधानपाठक), मैया कौशल्या के साथ बलराम जैसे भाइयों और बहन के साथ ने जयंता को हर क्षेत्र में पारंगत कर दिया। अब उसे अपने बड़े भाई ने छवि कार्य से भी मुक्त कर राज नीति और धर्म-कर्म को कार्य क्षेत्र बनाने के लिए फ्री कर दिया बेक सपोर्ट करने लगे। युवावस्था प्राप्त कर राजनीति के बियाबान में जिले का चमकता धूमकेतु बन गया। मैया यशोदा यानी बड़ी मां अब बीमार रहने लगी थी। पहले खूब मेहनत करती रही। जंगल जाकर लकड़ियां लाना, बकरियों के लिए चंदी-चारा लाना। बकरी के दूध का हम परिवारजन सेवन करते थे-बताते है ३२ तरह का अन्न और ३६ तरह की पत्तियां बकरियां खाती है, तो इनका दूध गाय के दूध से भी ज्यादा पौष्टिक होता है। इसी के मद्देनजर शिक्षक पिता के अनुसार परिवार चलता था। फिर गांव-गांव रेडीमेड कपड़े बेचना शुरू किया। पिता की तनख्वाह बहुत कम थी घर खर्च चलाने हेतु मां ने हमारे लिए कड़ा संघर्ष किया। फिर हट्ट बाजार के बाद एक किराए की दुकान लेकर व्यापार शुरू किया।
बीमारी ने जयंता की कौशल्या माँ को ऐसे घेर लिया कि हर दो, तीन माह में अस्पताल भर्ती होना पड़ता था। धीमे-धीमे परिवार की माली हालत खराब होने लगी। कई बार के बाद बड़े भाई के हाथ खाली हो गए। छोटे भाइयों ने भी मदद की। डेड़ वर्ष में ६ बार आईसीयू में भर्ती करना पड़ा, ऐसे में यही जयंता ने बड़े भाई का हाथ पकड़कर अपनी माँ यशोदा के इलाज के लिए हाथ मे रुपए रख दिये। जिसे दुनिया की समझदारी नही थी वह बालक अपना गुल्लक का जमा किया हुआ धन ले आया आंसू बहाते हुए पूछने लगा दासाब अब तो बय बची जायगा नी !
बड़े भाई के साथ उपस्थितजनों ने जयंता को बाहों में लेकर आंसू बहाते हुए कहा बेटा थारी बय अब ठीक हुई जायेगी।
अंतिम बार जब मां को अस्पताल ले जाया जा रहा था, तब जाते वक्त बड़े बेटे के गले मे बाहें डाल मां बोली बेटा म्हारा जयंता को ध्यान रखजे, थारा इन छोटा भय होन के धंधा से लगय दीजे। ने म्हारा इना पसुडा को ब्याव खूब धूमधाम से करजे। मां ने वचन लिया अस्पताल ले गए।
दीपावली का दिन था, सब सुनसान बैठे थे तभी मामाजी का फोन आया कि बेन ठीक है अच्छा से लक्ष्मी पूजन करजो। बस हम लक्ष्मी पूजन की तैयारी में लग गए। जयंता भी खुशी-खुशी घर सजाने में लग गया। बोला दासाब जी, बय अब तो बिमार नी होयगा नी ?? प्रश्नवाचक पर मैने हां में सिर हिलाया। वह आज बहुत खुश नजर आ रहा था। दौड़-दौड़कर काम कर रहा था कि……….. …………………………अचानक मामाजी का फोन आया और परिवार मे मातम छा गया। बिलख-बिलख कर रो पड़ा जयंता. ………………
… ……….. .रो पड़े घर परिवार के लोग।
…….. ……………………. ………………………... वही जयंता आज पूरे परिवार को साथ लेकर चल रहा है। माँ की मेहनत भाइयों का सपोर्ट और बहनों के प्यार ने एक असरदार राजनीतिज्ञ के साथ धर्मध्वजा वाहक बना दिया आज जयंता रंक से राजा…. ……………….. करोड़ो का कारोबारी… और न जाने क्या-क्या ?? ………………………...आज वह बहुत बड़ा बन गया यहां रंक से राजा तो ठीक उनसे भी बड़ा बन गया …….? कैसे-. . …………………. ………आज उसने अपने पिता के साथ उस मां की सेवा करने के लिए परिवार सहित अपने पास बुलाकर !!!!!!!!!
लेखक परिचय :-
नाम – विनोद वर्मा
सहायक शिक्षक (शासकीय)
एम.फिल.,एम.ए. (हिंदी साहित्य), एल.एल.बी., बी.टी., वैद्य विशारद पीएचडी. अगस्त 2019 तक हो जाएगी।
निवास – इंदौर जिला मध्यप्रदेश
स्काउट – जिला स्काउटर प्रतिनिधि, ब्लॉक सचिव व नोडल अधिकारी
अध्यक्ष – शिक्षक परिवार, मालव लोकसाहित्य सांस्कृ तिक मंच म.प्र.
अन्य व्यवसाय – फोटो & वीडियोग्राफी
गतिविधियां – साहित्य, सांस्कृतिक, सामाजिक क्रीड़ा, धार्मिक एवम समस्त गतिविधियों के साथ लेखन-कहानी, फ़िल्म समीक्षा, कार्यक्रम आयोजन पर सारगर्भित लेखन, मालवी बोली पर लेखन गीत, कविता मुक्तक आदि।
अवार्ड – CCRT प्रशिक्षित, हैदराबाद (आ.प्र.)
१ – अम्बेडकर अवार्ड, साहित्य लेखन तालकटोरा स्टेडियम दिल्ली
२ – रजक मशाल पत्रिका, परिषद, भोपाल
३ – राज्य शिक्षा केन्द्र,श्रेष्ठ शिक्षक सम्मान
४ – पत्रिका समाचार पत्र उत्कृष्ट शिक्षक सम्मान (एक्सीलेंस अवार्ड)
५ – जिला पंचायत द्वारा श्रेष्ठ शिक्षक सम्मान
६ – जिला कलेक्टर द्वारा सम्मान
७ – जिला शिक्षण एवम प्रशिक्षण संस्थान (डाइट) द्वारा सम्मान
८ – भारत स्काउट गाइड संघ जिला एवं संभागीय अवार्ड
९ – जनपद शिक्षा केन्द्र द्वारा सम्मानित
१० – लायंस क्लब द्वारा सम्मानित
११ – नगरपरिषद द्वारा सम्मान
१२ – विवेक विद्यापीठ द्वारा सम्मान
१३ – दैनिक विनय उजाला राज्य स्तरीय सम्मान
१४ – राज्य कर्मचारी संघ म.प्र. द्वारा सम्मान
१५ – म.प्र.तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी अधिकारी संघ म.प्र. द्वारा सम्मान
१६ – प्रशासन द्वारा १५ अगस्त को सम्मान
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