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विनोद वर्मा “आज़ाद”
देपालपुर
बरसो पुरानी बात है, बहिरामपुर रियासत में एक तेजस्वी राजा हुए। आसमान से पाताल लोक तक उनका डंका बजता था। उनकी तीन रानियां थी जो क्रमशः आकाश लोक की भाग्यसुंदरी,पाताललोक की घटोत्कपाली व मृत्युलोक की तेजस्विनी। तीनों बड़े प्रेम से रहती और राजा के साथ कंधे से कंधा मिलाकर राज कार्य मे हाथ बंटाती। राज्य में अमन-चैन तो था ही, राज्य तीव्र प्रगति पथ पर था। हर क्षेत्र में उसकी धाक जम गई थी। आसपास के राजाओं से वह अति बलशाली बन गया था। व्यक्ति जब प्रत्येक कार्य मे हर क्षेत्र में प्रगति करता है तो उसमें दम्भ नही आना चाहिए बल्कि अपनत्व और कर्तव्य की बढ़ोतरी होना चाहिए। राजा अब बदमिजाज से होने लगे थे। बात-बात पर गुस्सा व अभिमान प्रदर्शित करने लगते। एक रात स्वर्गलोक की अप्सरा भाग्यसुंदरी कुछ परेशान सी लग रही थी। राजा ने परेशानी को नज़र अंदाज़ कर महल की छत पर चन्द्र की रोशनी निहारने हेतु आमंत्रित किया वह महल की छत पर नही जा पाई। राजा ने भाग्यसुंदरी के साथ अशोभनीय बर्ताव कर महल से जाने का हुक्म सुना दिया।
दुःखी मन लेकर भाग्यसुंदरी अपने लोक अश्रुधार बहाते हुए चली गई।
एक रात राजा ने पाताल लोक की रानी घटोत्कपाली को जल क्रीड़ा करने के हेतु कमलिनी कुसुम के बीच पधारने का निवेदन किया। घटोत्कपाली सहर्ष तैयार हो गई। राजा का कार्य-व्यवहार बदल रहा था। इसे घटोत्कपाली अच्छे से जानती थी। उसकी एक सहेली,एक प्रिय साथी भाग्यसुंदरी के साथ हुए दुर्व्यवहार के बाद जाने का दु:ख भी उसे बहुत था। राजा के आदेश को न मानने पर जीवन भर का दर्द झेलना पड़ेगा, इसी सोच के साथ जलक्रीड़ा करने सरोवर के लिए वह निकल पड़ी। रास्ते मे उसे एक गर्भवती महिला मिली जो अकेली होकर प्रसव दर्द की पीड़ा से तड़प रही थी। रानी उसके दर्द को समझ उसकी मदद करने लगी।उसने एक सुंदर कन्या को जन्म दिया। अपनी शाल से बच्चे को ढंक उसे धीमे से सहारा देकर कुछ महिला सेविकाओं को आवाज दे बुलाया और रानी पुनः मुड़ कर सरोवर पर पहुंची। लेकिन वहां राजा दिखाई नही दिए।उसने कनखियों से इधर-उधर देखा। नज़रे दौड़ाई,पास ही बने टीले के इर्द-गिर्द घूम-घामकर रानी ये सोचकर वापस आ गई कि शायद वो किसी काम मे व्यस्त हो गए होंगे इसलिए नही आये।
इधर राजा का पारा तो जैसे सातवें आसमान पर था। वह अपने निवेदन हो या आदेश ! उसका पालन नही करने वालों को दंडित करके ही मानता था। कहावत है-“गुस्सा बुद्धि को खा जाता है”, वही स्थिति राजा की भी हो गई। उसने प्रातःकाल रानी को सेविका के द्वारा बुलवा भेजा। इतनी सुबह ! आश्चर्य के साथ अज्ञात भय रानी के मन को अशांत कर गया। वह दबे पांव राजा के दरबार मे अनमने मन से जा पहुंची।राजा ने क्रुद्ध होकर रानी को जल क्रीड़ा पर न आने पर बहुत खरी-खोटी सुनाई और उसे भी अपने राज्य से बाहर जाने का हुक्म सुना दिया। उसने रानी की हर बात को अनसुना कर आदेश कर दिया। राक्षसराज वंश की घटोत्कपाली भी चली गई पाताल लोक।
मृत्युलोक की तेजस्विनी को भी डर सताने लगा कि कहीं राजा मेरे साथ भी ऐसा ही व्यवहार न करने लग जाये। वह अपनी दोनों बहनों के जाने का गम दिल मे लिए भगवान भोलेनाथ की शरण मे जा पहुंची। बहुत देर तक वह गोरा- पार्वती से प्रार्थना करती रही। उसे कुछ ज्ञान प्राप्त हुआ। इसलिए वह आत्म विश्वास से लबरेज हो चल पड़ी महल की ओर….
सीधे शयन कक्ष में साधिका बन प्यार से राजा का आलिंगन करने लगी। मधुर वाणी से राजा के कर्ण में मिठास घोल हथेलियों से उन्हें हल्के से स्पर्श करते हुए उनके चरण तक हाथ पहुंच गए। राजा भी स्पर्श से आत्म विभौर हो मन की चंचलता-चपलता से रानी के साथ अठखेलियाँ करने लगे। फिर……. …..फिर….आलिंगन बद्ध हो कल्पनालोक में भाव विचरण कर अंतिम… …..
…… पंख उड़ान भरने लगे।
आज श्रावण मास का तीसरा सोमवार था,व्रत रखा था रानी ने। वहीं विशेष तौर पर राजा से आग्रह कर रानी तेजस्विनी ने उन्हें भी व्रत करवा दिया।
राजा के साथ वह सर्व प्रथम राम दरबार गई और राजा दशरथ की कहानी तीन रानियों का साथ और उनकी मृत्यु का वृतांत सुना दिया। फिर रुआंसी हो वह दोनों हाथ जोड़ भगवान से प्रार्थना करने लगी। वहां से वह राजा को कृष्ण मंदिर ले गई,वहां भी उन्होंने भगवान कृष्ण की भक्ति में शक्ति का स्पंदन पा प्रेम पुजारन राधा, रूक्मिणी और मीरा के प्रेम और ज़हर(हलाहल)का प्याला पीने और जहर का असर न होने का वृतांत सुनाया।
फिर राजा को ले गई महाभारत काल मे …
जहां जुआँ खेल रानी हार गए पांडवों और दुर्योधन के अहंकार की स्पष्टता बताती है कि एक रानी को जुआँ में जीतकर अहंकारी दुर्योधन और दु:शासन ने कितनी धृष्टता की थी।जंघा पर बैठाने जैसी शब्दावली का उपयोग कर अभिमान के दर्प में डूब गया कौरव वंश।
वापस महल में आकर भोजनशाला में बैठकर राजा-रानी ने फलाहार किया। कुछ देर के पश्चात राजा सूर्य गिरी ने रानी को आलिंगन बद्ध कर प्रेमपाश में भरते हुए प्रश्न किया-“आज मुझे आपने व्रत रखवाया, अलग-अलग मन्दिर ले गई और मुझे अलग-अलग कहानियां सुनाई,कुछ वृतांत भी”?
तो रानी कुछ निःश्वान्स हो बोली- –“राजन मैं आपको खोना नही चाहती मैं आपसे आकंठ प्यार करती हूं। आपके सुख में मेरा सुख है, मैं आप को दुःख की दरिया में डूबते हुए नही देखना चाहती।”
राजा ने संशय भरी नज़रों से तेजस्विनी की ओर देखा और बोलने लगे-” प्रिये मैं भी आपको दिल-ओ-जान से चाहता हूं।मैं आपके हर प्रस्ताव को मान लेता हूँ। मैं भी तुम्हे दुःखी,उदास नही देख सकता”…… लेकिन मुझे आज का दिवस कुछ अलग ही लग रहा है। मैं कुछ भी सोच-समझ नही पा रहा हूँ। कुछ बताओं मुझे मन्दिर-मन्दिर ले जाने का उद्देश्य आखिर क्या था?
आप सोचिए और मुझसे प्रश्न कीजिये शायद मैं किसी विचार की साकारता सिद्ध कर सकूं।
राजा सूर्यगिरी बोलने लगे- “राजा दशरथ ने पुत्र वियोग में….. जी हां,राजा दशरथ ने पत्नी कैकयी के कहने पर बेटे राम को वनवास दिया।बेटे ने पितृ आज्ञा का पालन कर वन गमन किया पत्नी सीता व अनुज लक्ष्मण के साथ। सूर्पणखा की नाक काटने के उपरांत पत्नी के लिए रावण से लड़ाई लड़ी। पिता ने पुत्र वियोग में प्राण त्याग दिए। एक महिला के चक्कर मे बेटे को वनवास दिला पति को खो बैठी।”
यहां स्वार्थ था।
पत्नी और अनुज का साथ था ।
अभिमान था।
दुख-दर्द भी था।
भगवान कृष्ण के लिए राधा-रुक्मिणी का प्रेम तो था ही पर मीरा की भक्ति प्रेम का प्याला थी। यहां प्रेम उमड़ रहा था। और तीसरे स्थान पर महा भारत हो गई।कौरव वंश का नाश हो गया। महिला के अपमान की वजह से।
राजा सूर्यगिरी अपनी पत्नी तेजस्विनी की बुद्धिमत्ता से काफी प्रभावित हो रहे थे और नादानी प्रदर्शित करते हुए वे सारांश ढूंढ रहे थे।
उन्होंने तेजस्विनी से फिर पूछा अब बताइये हमारी कमलिनी आपके मन मे वास्तविक रूप में क्या चल रहा है?
दो बून्द अश्क गिराकर मखमली रुमाल का इस्ते माल किया आंख और नाक के लिए….सूर्यगिरी अधीर हो उठे। तेजस्विनी को धीर-गम्भीर हो हल्के हाथों से स्पर्श करने लगे। राजा के शरीर मे तरंगे उठी और उनकी आवाज़ लहरा गई,तेजस्वी.. नी…. अपने आंसू..बस….. बस….अब और नही…….. और बाहों में भिच लिया तेजस्विनी को!!!
शायद आपकी तबियत..?
नहीं राजन…मुझे कुछ नही हुआ….पर हमारे महल में बहुत कुछ हो चुका है….और कहीं ऐसा न् हो कि मैं…..मैं…. मैं…आपको कहीं……खो…. न…दहाड़ मार पड़े…… राजा…..सारी दासियाँ ….सेवादार……….
तेजस्विनी बेहोश हो गई थी…
राज्य के प्रसिद्ध वैद्यो में हेमराजजी, खोजे मिया,मिरगनी बाबा,ख्यालीराम वैद्य आदि सब दौड़ पड़े।
सतत निगरानी में रही तेजस्विनी,राजा सूर्यगिरी उनके हाथों को सहलाते हुए नींद के आगोश में समा गए।
रानी की नब्ज़ सही चल रही थी,वैद्य संतुष्ट हो आपस में चर्चा कर शयनकक्ष से बाहर आये और उन्होंने भी हल्की -फुल्की नींद ली।
प्रातःकाल राजा जल्दी उठे नित्यकर्म से निवृत्त होकर वे रानी के उठने का इंतज़ार करने लगें।
उई मां की आवाज़ के साथ रानी ने एक करवट ली और अचानक उठ बैठी। राजा को सामने पाकर उसके चेहरे पर सांत्वना के भाव प्रकट हुए। राजा ने रानी की हथेली अपने हाथों में लेकर पूछा अब कैसी हो ? ठीक हूं तेजस्विनी ने जवाब दिया।
कुछ दिनों के बाद रानी ने राजा से कहा- “राजन आप के राज्य विस्तार और प्रगति के साथ आपमे अभिमान की वृद्धि हो गई है इसीलिए मेरी दोनों बहनें अपने-अपने लोक में समाहित हो गई। मैं जानती हूं आप मेरे साथ भी ऐसा करोगे ! यही डर यही भय मुझे सता रहा था। पर वह भय मेरे लिए नही बल्कि आपके जीवन को लेकर अधिक सता रहा था! अचानक आप भी मुझे अपने से अलग कर देते तो आप की शक्ति क्षीण हो जाती आपको सही राय कौन देता?चापलूसों की भरमार भी है हमारे राज्य में कही आप के साथ अनहोनी न हो जाय इसी का मुझे भय सता रहा था। मैं आपको उस दिन मन्दिर-मन्दिर इसलिए ले गई थी कि आप प्रेम,स्वार्थ और अभिमान में अंतर नही कर पाए और आपकी अतिप्रिय भाग्यसुंदरी और स्वर्णनगरी की घटोत्कपाली के प्रेम और समर्पण को अपने दर्प में आकर खो दिया।
तेजस्विनी बोली पाताल लोकवाली मेरी बहन आप को बहुत चाहती थी,स्वर्गलोक वाली सखी को आप बहुत चाहते थे और मैं आप सबको एक समान प्रेम और स्नेह पाश में बांधे रखती थी।फिर भी आपने भाग्य सुंदरी और घटोत्कपाली को अपने -अपने लोक भेज दिया !
आपने ये नही सोचा? राजा बीच मे ही बोल उठे क्या नही सोचा ? किसी परिवार का एक फूल अपने जन्म से लेकर युवावस्था तक अपने परिवार में मस्ती के साथ जीवन निर्वाह कर किशोरावस्था प्राप्त करता है और अचानक उसे कोई भंवरा ले उड़े।संगी सहेलियों माता-पिता सब को छोड़कर एक अनजान लोक में,अनजान लोगों के बीच मे पहुंच जाती है एक स्वप्न लेकर। एक पुरुष की बांह पकड़े प्यार और प्रेम के वशीभूत अनेकों स्वप्न संजोने लगती है। उसे परिवार में शुरुआत में तो सब प्यार करते है, उसके हर कार्य मे सहभागी बनते है,उसकी गल तियों को नज़र अंदाज़ किया जाता है। खाने में मीन-मेक(कमी) हो तो भी हौसला अफ़्जा ई करते है।
आप तो सब पर प्रेमरस बरसाते रहे,अपने मजबूत बाहुपाश में जकड़ लेते थे और अचानक दोनों की बातें सुने बगैर उन्हें अपने जीवन से निकाल फैका। चन्द्र की चंचल किरणों को निहारने आमंत्रित करना,उस वक्त वह आप तक आने जैसी स्थिति में नही थी,वहीं दूसरी आपके पास आ रही थी कि रास्ते मे एक गर्भवती की प्रसव पीड़ा ने रानी के दायित्व का निर्वहन करने लगी तो देर हो गई,अपने कर्तव्य पथ पर चलने के बावजूद आपने उसके साथ भी वही गलती दोहराई।
किसी महिला के सही होने के बावजूद भी अगर उसे सजा दी जाए तो उसके मन – मस्तिष्क पर हथौड़े की कितनी गहरी चोट लगेगी आपने इस पर विचार ही नही किया !
राजा को अपनी गलती का एहसास हुआ । उसने तेजस्विनी से क्षमा मांगते हुए प्राय श्चित करने का संकल्प लिया,उनके संकल्प को पूरा करने हेतु तेजस्विनी भी कृत संकल्पित दिखी । पूरे राज्य भर में राजा ने डोंडी फिरवाई और यह संदेश प्रसारित करवाया कि हमारे राज्य में अब से कोई भी एक ही विवाह करेगा। पत्नी का कोई भी परित्याग नही करेगा। जहां ऐसा हुआ है वे राज्य के नागरिक उन्हें ससम्मान वापस अपने घर ले जावे। मैंने भी एक नही दो-दो गुनाह किये है। जिसका मैं प्रायश्चित करने हेतु राजा का पद त्यागकर दर-दर……….
लेखक परिचय :-
नाम – विनोद वर्मा “आज़ाद” सहायक शिक्षक (शासकीय)
एम.फिल.,एम.ए. (हिंदी साहित्य), एल.एल.बी., बी.टी., वैद्य विशारद पीएचडी. अगस्त २०१९ तक हो जाएगी।
निवास – इंदौर जिला मध्यप्रदेश
स्काउट – जिला स्काउटर प्रतिनिधि, ब्लॉक सचिव व नोडल अधिकारी
अध्यक्ष – शिक्षक परिवार, मालव लोकसाहित्य सांस्कृतिक मंच म.प्र.
अन्य व्यवसाय – फोटो & वीडियोग्राफी
गतिविधियां – साहित्य, सांस्कृतिक, सामाजिक क्रीड़ा, धार्मिक एवम समस्त गतिविधियों के साथ लेखन-कहानी, फ़िल्म समीक्षा, कार्यक्रम आयोजन पर सारगर्भित लेखन, मालवी बोली पर लेखन गीत, कविता मुक्तक आदि।
अवार्ड – CCRT प्रशिक्षित, हैदराबाद (आ.प्र.)
१ – अम्बेडकर अवार्ड, साहित्य लेखन तालकटोरा स्टेडियम दिल्ली
२ – रजक मशाल पत्रिका, परिषद, भोपाल
३ – राज्य शिक्षा केन्द्र, श्रेष्ठ शिक्षक सम्मान
४ – पत्रिका समाचार पत्र उत्कृष्ट शिक्षक सम्मान (एक्सीलेंस अवार्ड)
५ – जिला पंचायत द्वारा श्रेष्ठ शिक्षक सम्मान
६ – जिला कलेक्टर द्वारा सम्मान
७ – जिला शिक्षण एवम प्रशिक्षण संस्थान (डाइट) द्वारा सम्मान
८ – भारत स्काउट गाइड संघ जिला एवं संभागीय अवार्ड
९ – जनपद शिक्षा केन्द्र द्वारा सम्मानित
१० – लायंस क्लब द्वारा सम्मानित
११ – नगरपरिषद द्वारा सम्मान
१२ – विवेक विद्यापीठ द्वारा सम्मान
१३ – दैनिक विनय उजाला राज्य स्तरीय सम्मान
१४ – राज्य कर्मचारी संघ म.प्र. द्वारा सम्मान
१५ – म.प्र.तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी अधिकारी संघ म.प्र. द्वारा सम्मान
१६ – प्रशासन द्वारा १५ अगस्त को सम्मान
१७.- मालव रत्न अवार्ड २०१९ से सम्मानित।
१८ – श्री गौरीशंकर रामायण मंडल द्वारा सम्मान।
१९ – “आदर्श शिक्षा रत्न” अवार्ड संस्कार शाला मथुरा उ.प्र.।
२० – दो अनाथ बेटियों को गोद लेकर १२वीं तक कि पढ़ाई के खर्च का जिम्मा लिया।
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