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कश्मीर

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रचयिता :  दिलीप कुमार पोरवाल “दीप” 

कश्मीर से धारा ३७० और ३५ ए हटने के बाद कश्मीर हिंदुस्तान के बारे में क्या सोचता है उसको लेकर यह कविता लिखी गई है l

मेरी रगों में तेरा ही लहू है मां
मैं तेरा हूं तेरा ही रहूंगा मां
ना बहे और लहू किसी का यहा बना रहे अमन-चैन सदा यहां
यह केसर क्यारीया
यह हरी भरी वादियां
तेरे लिए कुर्बान मा
कहते हैं मुझे धरती का स्वर्ग
मेरे लिए तो तू ही स्वर्ग है मां
मुझे बहुत सताया इन जालिमों ने देशद्रोहियों गद्दारों आतंकियों ने
मैं तो पहले ही तेरी पनाहों में था अब जाकर तूने मुझे अपना बनाया मां
बरसो रहा मैं व्याकुल तेरे बिना मा आंचल में तेरे आकर लगा जैसे जन्नत में आया मां
क्या गंगा क्या जमुना क्या सरस्वती
मैं तो बस झेलम चिनाब तक ही सीमित रहा मा
मैंरी रगो में तेरा ही लहू है मा
मैं तेरा हूं तेरा ही रहूंगा मां ।।

 

लेखक परिचय :- नाम :- दिलीप कुमार पोरवाल “दीप”
पिता :- श्री रामचन्द्र पोरवाल
माता :- श्रीमती कमला पोरवाल
निवासी :- जावरा म.प्र.
जन्म एवं जन्म स्थान :- ०१.०३.१९६२ जावरा
शिक्षा :- एम कॉम
व्यवसाय :- भारत संचार निगम लिमिटेड


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