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डॉ. बी.के. दीक्षित
इंदौर (म.प्र.)
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होली खेल संग, रंग भर नयन में, पिचकारी छुओ मत नेह बरसाइये।
बृज की धरा मन में धारण करो सब, बचाओ देह, मन से रंग जाइये।
भय से भरा विश्व, हठ मत करो कुछ, ग़ुलाबों के फूलों से घर को सजाइये।
प्यार हो राधा सा, कृष्ण की मुरली हो, नमन कर कष्ट को मिटाइये।
गोबर के कंडे घृत हो गऊ का,थोड़ा सा उसमें कपूर भी मिलाइये।
बैठ पास होली के रोली का टीका, फ़ीका न हो माथा झुकाइये।
घर का बना भात, गुड़ डाल अच्छे से, केसर मिलाकर ढ़ंग से पकाइये।
मखाने की खीर में मेवा मुठ्ठी भर, मिट्टी का एक चूल्हा जलाइये।
मावा है दूषित, गुजियाँ हों गुड़ की ग़र, जो भी बनें, घर पर खिलाइये।
ताला लगा द्वार, अंदर छिपे हम, खोलें न कैसे भी, द्वार मत खटखटाइये।
खानी मिठाई अन्य कोई रसीली आदि, देख आज मेरे वाट्सअप पर आइये।
हाथ मत मिलाओ, गले मत लगाओ, नमस्ते नमो नमः सबको सिखाइये।
अंगोछा गले डाल, दुपट्टे से मुँह बांध, प्रीति के रंगों से तरंगे बढाइये।
करोना प्यार, मनुहार यार भार है, खार बीमार को और न चुभाइये।
होली के ताप में तन को तपाना ख़ूब, कुंदन से चमको, सब को तपाइये।
रंग हों ख़तम, पाँच दिन बाद, शौक़ से मेरे घर तब आप आइये।
परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्षा कानपुर में ग्रहण की व् आप गत ३६ वर्ष से इंदौर में निवास कर रहे हैं आप मंचीय कवि, लेखक, अधिमान्य पत्रकार और संभावना क्लब के अध्यक्ष हैं, महाप्रबंधक मार्केटिंग सोमैया ग्रुप एवं अवध समाज साहित्यक संगठन के उपाध्यक्ष भी हैं।
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