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कान्हा की सीख

डॉ. पंकजवासिनी
पटना (बिहार)
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छूटने का दर्द
जानते हो???
कितना पीड़ा दायक!
कितनी टीस भरी !!
कितना टभकता हुआ!!!

क्या जीवन में
कुछ छूटने के बाद भी
मुस्कुरा सकते हो???

एक बार देखो
कान्हा को!
सबसे पहले गर्भ छूटा माँ का!
(जन्म से पहले ही)
फिर माँ बाप!!
फिर छूटे
पालक माता-पिता!
बचपन का आंगन छूटा!!
संगी साथी छूटे!!!
छूट गए सब ग्वाल-बाल !
छूटा पास-पड़ोस सारा !!
छूटी यमुना अति प्यारी !!!
और छूटे
सरस सघन लता-कुंज सारे !
भरी जिनमें जीवन की प्याली!!

छूट गईं…
गोकुल की भोरी गोपियां!
गोकुल का मिश्री-माखन!!

और छूटी….
आत्मा की संगी!
प्रिय राधा रानी!!
आह!
“चिर बिछोह”!!!

क्रीड़ा भूमि गोकुल छूटा!
कर्म भूमि मथुरा छूटी!!

सबको आह्लाद की सरिता में
अंतरात्मा तक डुबोती! जीवनदायी मुरली!!
भी छूट गई हाय!!!

कान्हा!
जाने कितनी पीड़ा तुमने झेली!!
कितना पीड़ादायक रहा होगा
तुम्हारे लिए
जीवन के निर्माण…
“वंशी” को छोड़कर
जीवन के विध्वंस…
“सुदर्शन” को अपनाना!!!

छूटने की इन तमाम
पीड़ाओं! टीसों!! टभकनों!!!
…. को
जीवन भर झेलते हुए भी,
कैसे!!??!!
सदा मुस्कुराते रहे कान्हा!!

छूटने पर टूटने के बजाय
मुस्कुराने की कला
हमें भी सिखा दो कान्हा!

ऐश्वर्य, सुविधा, सपनों और
महत्वाकांक्षाओं में पलते
२१वीं सदी के लोगो!
छूटने के दर्द से उबरो!!

छूटे चाहे
जो कुछ भी जीवन में….
पर कभी न टूटो तुम!
छोटी-छोटी चीजों के
छूटते ही टूटने लगते हो तुम….
तिल-तिल! पल-पल!!

नहीं-नहीं!
ऐसा ना करो…
टूटने और बिखरने के लिए…
नहीं मिला है यह जीवन!

बल्कि मुस्कुराओ!!
सब कुछ भूल कर…
कान्हा की तरह!!!
देखो!
मुस्कान में ही सृजन है!!

परिचय : डॉ. पंकजवासिनी
सम्प्रति : असिस्टेंट प्रोफेसर भीमराव अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय
निवासी : पटना (बिहार)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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