हंसराज गुप्ता
जयपुर (राजस्थान)
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जब छोटी छोटी बातों से ही, महाभारत हो जाती है
तनिक द्वैष मोह त्रुटियों से ही, महाभारत हो जाती है,
मेरे कान्हा की कृपादृष्टि ही,जीवन ज्योति जगाती है
मेरे कान्हा की कृपादृष्टि, जीवन ज्योति जगाती हैजब फलीभूत हो अहंकार, मानवता होती तार तार
अवशेष ना हो कोई उपचार, भूचाल तमस में करुण पुकार
उत्ताल उफनती लहरों में भी, नौका पार हो जाती है
मेरे कान्हा की कृपादृष्टि ही,जीवन ज्योति जगाती है
मेरे कान्हा की कृपादृष्टि, जीवन ज्योति जगाती हैधृष्ट सृष्ट अदृष्ट अणु, सृष्टि को आँख दिखाता है
गुण तत्व विक्षोभ भय, प्रलय की अलख जगाता है
उत्कृष्ट पृष्ठ में शक्ति कोई, सीमारेखा समझाती है
मेरे कान्हा की कृपादृष्टि ही,जीवन ज्योति जगाती है
मेरे कान्हा की कृपादृष्टि, जीवन ज्योति जगाती हैभूलो मत तिल्ली चिनगारी से, बडी आग लग जाती है
सहज मिलन मन राधेय राधेय, प्रणय राग जग जाती है
विष वरण, चाहे चीर हरण, होली चंग फाग सुनाती है
मेरे कान्हा की कृपादृष्टि ही,जीवन ज्योति जगाती है
मेरे कान्हा की कृपादृष्टि, जीवन ज्योति जगाती हैजब रावण कंस हिरण्यकशिपु, यहाँ हाहाकार मचाते है
तब राम कृष्ण नृसिंह बनते, धरती का भार हटाते हैं
अर्जुन विषाद में रणबीच सारथी, गीताजी राह दिखाती है
मेरे कान्हा की कृपादृष्टि ही,जीवन ज्योति जगाती है
मेरे कान्हा की कृपादृष्टि, जीवन ज्योति जगाती हैपल में विस्फोट विध्वंस करे, कितनी श्वासे थम जाती हैं
परेड पीछे मुड कहते ही, अन्तिमा प्रथम हो जाती है
झूठ धर्म का अच्छा मान, निर्दोष जान बच जाती है
मेरे कान्हा की कृपादृष्टि ही,जीवन ज्योति जगाती है
मेरे कान्हा की कृपादृष्टि, जीवन ज्योति जगाती हैप्रेम प्रारब्ध, मुख के अपशब्द, निर्दोष पीठ पिट जाती है
जड को पानी दें, तना हरा, पत्तों की प्यास मिट जाती है
बाल सखा की अक्षत भेंट ही, छप्पन भोग छुडाती है
मेरे कान्हा की कृपादृष्टि ही,जीवन ज्योति जगाती है
मेरे कान्हा की कृपादृष्टि, जीवन ज्योति जगाती हैसांझ ढले, कोई किरण मिले, बातों में रात ढल जाती है
प्यासी हो साख, बरसे बदली, भरपूर फसल लहराती है
छूटा पथ पास, लौटे विश्वास, मरते में श्वास आ जाती है
मेरे कान्हा की कृपादृष्टि ही,जीवन ज्योति जगाती है
मेरे कान्हा की कृपादृष्टि, जीवन ज्योति जगाती हैकान्हा तेरी बंशी की धुन में, सबकी सुध बुध खो जाती है
तेरी छवि के आगे रवि की, किरणें फीकी हो जाती हैं
दुनिया में प्यार का नाम बडा, राधे कहे श्याम बुलाती है
राधे कहे कान्ह बुलाती है
मेरे कान्हा की कृपादृष्टि ही,जीवन ज्योति जगाती है
मेरे कान्हा की कृपादृष्टि, जीवन ज्योति जगाती है।।जब छोटी छोटी बातों से ही, महाभारत हो जाती है
तनिक द्वैष मोह त्रुटियों से ही, महाभारत हो जाती है,
मेरे कान्हा की कृपादृष्टि ही,जीवन ज्योति जगाती है
मेरे कान्हा की कृपादृष्टि, जीवन ज्योति जगाती है।।
परिचय :- हंसराज गुप्ता, लेखाधिकारी, जयपुर
निवासी : अजीतगढ़ (सीकर) राजस्थान
घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।
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