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काना

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रचयिता : विनोद वर्मा “आज़ाद”

(बहुत साल पहले की घटना पर आधारित)

इंदौर। कालानी नगर से चंदन नगर होते हुए फूटी कोठी, हवा बंगला, केट, राजेन्द्र नगर के लिए रास्ते निकलते है। बहुत दिनों पहले हमें अक्सर ये जानकारियां मिलती रहती कि अमुक बुजुर्ग ने दर्दनाक हादसे के बाद दिव्यांग हो जाने पर भी भीख मांगने की बजाय कमाई करके पेट भरने को महत्व दिया।
मातेश्वरी देवी ने तूफान में घरपरिवार उजड़ जाने के बाद भी हिम्मत नही हारी, वो आज भी जिंदा है और दान-धर्म करके अपना जीवन यापन कर रही है। धन बहुत है पर परिवार में सिर्फ और सिर्फ वो अकेली है।
सुरेश बंजरिया की लघु फ़िल्म-“सच्ची सहायता शनि साधक की” में एक दिव्यांग ने आर्थिक मदद लेने से इनकार कर दिया। नेवरी गांव में तो जैसे महिला पर पहाड़ टूट पड़ा। पूरे परिवार को आसमानी बिजली ने लील लिया। ऐसी ही एक दुखियारी की कहानी को ला रहा हूँ….शीर्षक है–“काना”

दुरपति मां का हंसता खेलता परिवार, आमजनों, मोहल्ले वालों के सुख-दु:ख में हमेशा लगा रहता था। काना बा ने खूब धन कमाया था। उनके चार बेटे थे, तीन बेटे तो दूर देश काम धंधे पर ऐसे निकले की पलट कर भी नही आये। यहां कोई काम-धन्धा नहीँ था। पर एक बेटे रामधारी ने अपने पिता यानी काना बा का साथ नही छोड़ा, क्योंकि कानाजी के यहां चार बेटों के जन्म के बाद उनकी पत्नी सिरदार बाई अल्प बीमारी में ही दुनियां छोड़ गई थी। कानाजी के अकेले पन का साथी बड़ा बेटा रामधारी रहा। रामधारी – दुरपति के दो बेटे हुए, दोनों शराबी-जुआरी। सुबह उठते ही नशे पत्ते के लिए निकल पड़ते। दादा के धन के खूब मजे लिए, दिन-रात खाने-पीने, घूमने-फिरने पर ही ध्यान रहता था। नशा तो जैसे उनके जीवन का आधार बन गया था। उनकी सोच के तहत “माल मिले खाने को तो क्यों जाए कमाने को”…
उनकी आदते बिगड़ती गई, “जुबान को लगाम, लगना भी बन्द हो गई”, छोटे-बड़े का कायदा खत्म हो गया था। “बाप को बाप और पड़ोसी को काका कहना” शायद उनकी मानसिकता से परे हो गया था। झूठ-फरेब, गाली-गलौच, झगड़े-झाटें आम बात हो गई।
अत्यधिक शराब व अन्य नशे की वजह से फुलवा-नथुवा के शरीर ने काम करना बंद कर दिया !
मां ने खूब सेवा की, इलाज पर बहुत खर्च किया। पड़ी सम्पत्ति में से थोड़ी-थोड़ी निकालते जाएंगे तो वह बढ़ने थोड़े लगेगी ! एक दिन-भर तड़पते हुए चिल्लाता तो दूसरा रात-भर…..अड़ोसी-पड़ोसी भी परेशान, पर दादा का व्यवहार और एहसान दोनों की वजह से सभी दिन-रात की चिल्लपो से हैरान-परेशान होते थे। किंतु चुप ही रहते थे। रात्रि रामधारी को दिल का दौरा पड़ा, उसे उठाकर कैसे अस्पताल तक ले जाया जाए, यह सूझ नही रह था। अड़ोसी-पड़ोसी भी आये, पर ले जाने का कोई साधन न होने की वजह से रामधारी ने प्राण त्याग दिए।
रामधारी के क्रियाक्रम पश्चात काना बा ने अपने नाती-रिश्तेदारों से आर्थिक स्थिति का हवाला देकर अन्नदान न करने की बात कही, इस पर समाज के ठेकेदारों ने जो पूर्व से ही फितरत करते रहते थे उनकी बन पटी, उन्हों ने स्पष्ट कर दिया, आपने समाज का खाया है, तो समाज को खिलाना भी पड़ेगा। इसके लिए जमीन-जायदाद गिरवी रखो या बेचो, पर समाज को भोज कराना ही पड़ेगा।
काना जी ने देखा जिन-जिन को समय, असमय मदद करता रहता था, वे आज चुप थे। केवल समाज बिगाड़ने वालों की चल रही थी। जुवारियों और नशेड़ियों की जमात एक अच्छे और ईमानदार स्वच्छ छवि व्यक्ति त्व पर कैसा दबाव बना रही है। अन्नदान करने के लिए। समय आया “मूंग की दाल और बाटी” का भोजन रखा गया असली घी लाया गया। दुष्ट प्रवृत्ति के लोगों ने बाटी के आटे में ज्यादा नमक और दाल में मिर्च डाल दी।
खाना हराम हो गया। सुबह पहली बार सब्जी-पूड़ी का खाना बनवाया गया। सब ने भोजन तो कर लिया, पर मन में द्वेष की ज्वाला तो भभक ही रही थी। एक ने आकर कहा, शाम को पंचों की बैठक है, सब इकट्ठा होवे। बैठक शुरू हुई तब कहा गया बाटी में लगा घी डालडा था और सब्जी-पूड़ी क्यों खिलाई? अब लोगो को कर्ज लेने पर मजबूर होना पड़ेगा,इसलिए तुम्हे दंड देना पड़ेगा। जिसने घी दिलाया था, वे भी उन आतताइयों के आगे चुप बैठे रहे।
मकान गिरवी पड़ा था। कानाजी कुछ दिनों से अजीब सी परेशानी से गुजर रहे थे। उन्हें उनके पोते नथुवा और फुलवा की चिंता सताए जा रही थी, कि अब इन बच्चों का क्या होगा ? धन खत्म हो चुका है, सिर पर कर्ज चढ़ गया है, कोई काम धंधा भी नही, जमीन भी कुछ बीघा ही बची थी। चूंकि कीमत बहुत कम थी इसलिए उसको बेचकर भी कर्ज़ का चुकारा नही होना था……
एक दोपहर अक्कू मिया ने आकर उधारी चुकाने का तकादा लगाया, कुछ समय बाद किराने वाले समरथमल सेठ के नौकर ने आकर चिट्ठी थमा दी। तुलसीराम हलवाई भी आ गया। बाबू महाराज ने भी खबर करीदी।
इधर रह-रह के भारी बारिश के चलते काना बा चिंतित थे कि भारी बारिश के कारण नदी उफान पर न आ जाये, नही तो मैं पूरी तरह बर्बाद हो जाऊंगा। फसल ही अब आसरा है। गांव का पानी गली-मोहल्ले से बहते हुए नाले का रूप ले रहा था कि पानी ने गली-मोहल्लों में नदी का आकार लेना शुरू कर दिया, काना बा को पानी की लगी ठेल को समझते देर नही लगी, जी घबराने लगा, बहूँ दुरपति को पानी के लिए जोर से आवाज़ लगाई और काना बा का शरीर खटिया पर आड़ा हो गया।
बुरे से बुरा व्यक्ति अपनी गन्दी आदते तो छोड़ देता है किंतु समाज की एकता और अमन का दुश्मन अपनी पड़ी आदते नही छोड़ता। पुनः अन्नदान का दबाव, नही करने पर समाज से बन्द या दंड? दुरपति बहादुर महिला तो थी पर मर्यादा भी उसका गहना थी। उसने समाज मे मिन्नतें की, पर एक नही चली, दोनों बीमार बेटों की देखभाल के साथ खेती-किसानी, जात-बिरादरी सभी के बारे में सोचकर उसने चौरासी की बैठक बुलाई, दुरपति के पिता भी समाज मे वजन रखते थे, वे अखाड़े के पहलवान थे। आंखें इतनी तेज की व्यक्ति निगाह नीची करले। समाज जनों ने एक स्वर मे अन्नदान बाद में करने का फैसला दिया।
फितरत की दुकान चलाने वालों को यह करारा तमाचा था। दुरपति ने दिन-रात मेहनत-मजदूरी करते हुए धन जमा करना शुरू किया, इधर दुष्टों ने महिला से मात खा ने के कारण उसके साथ दुष्टता करने की योजना बनाई, महिला चूंकि बहुत ही सोजी थी इसलिए उसने अपने नाती -रिश्तेदारों को बुलाकर उनके मंसूबो को बताया। योजना बनी और रात्रि में तीसरे पहर वे तीन बदमाश बाड़े में से घर के दरवाजे पर आए और चूंकि महिला के जाल में वे .फंस….चुके….थे….. और उसके कपड़े आदि फाड़…मुंह …दबा दिया….और-और…..ने २ सेल वाली टार्च की रोशनी में वे………जाति, नाती, रिश्तेदारों के द्वारा पकड़ लिए गए। और कर दिया पुलिस के हवाले…………!…
इधर बड़े बेटे नथुवा ने भी एक दिन दम तोड़ दिया। दुरपति की परेशानी खत्म होने का नाम ही नही ले रही थी, एक परेशानी से मुक्त होती तो दूसरी तैयार खड़ी मिलती।
पुनः अन्न दान की पहल होगी? सोच रही थी, पर इस बार कोई नही आया, सब लोग उसकी मेहनत, ईमानदारी, पतिवृता और बहादुरी के आगे नतमस्तक हो गए।
उसका फुलवा अब कुछ ठीक हो चला था, अब घर मे केवल मां और बेटे दो थे। फुलवा का इलाज अच्छे से होने लगा, धीरे-धीरे वह ठीक होकर शरीर भी मजबूत होने लगा। नशा तो उसका दुश्मन हो गया। हट्टा-कट्टा हो गया, मेहनत मजदूरी करते हुए शेरनी की भांति रहते हुए दुरपति ने बेची गई जमीन वापस खरीद ली। बेटे फुलवा का ब्याह अवंता से कर दिया अन्नदान करके आतताइयों की बोलती भी बन्द कर दी।अब पुनः पहले जैसा धन-वैभव लौट आया था। फुलवा के यहां एक बेटा हुआ जिसका नाम दुरपति ने अपने ससुर के नाम पर रखा ‘काना’।

लेखक परिचय :- 
नाम – विनोद वर्मा “आज़ाद” सहायक शिक्षक (शासकीय)
एम.फिल.,एम.ए. (हिंदी साहित्य), एल.एल.बी., बी.टी., वैद्य विशारद पीएचडी. अगस्त २०१९ तक हो जाएगी।
निवास – इंदौर जिला मध्यप्रदेश
स्काउट – जिला स्काउटर प्रतिनिधि, ब्लॉक सचिव व नोडल अधिकारी
अध्यक्ष – शिक्षक परिवार, मालव लोकसाहित्य सांस्कृतिक मंच म.प्र.
अन्य व्यवसाय – फोटो & वीडियोग्राफी
गतिविधियां – साहित्य, सांस्कृतिक, सामाजिक क्रीड़ा, धार्मिक एवम समस्त गतिविधियों के साथ लेखन-कहानी, फ़िल्म समीक्षा, कार्यक्रम आयोजन पर सारगर्भित लेखन, मालवी बोली पर लेखन गीत, कविता मुक्तक आदि।
अवार्ड – CCRT प्रशिक्षित, हैदराबाद (आ.प्र.)
१ – अम्बेडकर अवार्ड, साहित्य लेखन तालकटोरा स्टेडियम दिल्ली
२ – रजक मशाल पत्रिका, परिषद, भोपाल
३ – राज्य शिक्षा केन्द्र, श्रेष्ठ शिक्षक सम्मान
४ – पत्रिका समाचार पत्र उत्कृष्ट शिक्षक सम्मान (एक्सीलेंस अवार्ड)
५ – जिला पंचायत द्वारा श्रेष्ठ शिक्षक सम्मान
६ – जिला कलेक्टर द्वारा सम्मान
७ – जिला शिक्षण एवम प्रशिक्षण संस्थान (डाइट) द्वारा सम्मान
८ – भारत स्काउट गाइड संघ जिला एवं संभागीय अवार्ड
९ – जनपद शिक्षा केन्द्र द्वारा सम्मानित
१० – लायंस क्लब द्वारा सम्मानित
११ – नगरपरिषद द्वारा सम्मान
१२ – विवेक विद्यापीठ द्वारा सम्मान
१३ – दैनिक विनय उजाला राज्य स्तरीय सम्मान
१४ – राज्य कर्मचारी संघ म.प्र. द्वारा सम्मान
१५ – म.प्र.तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी अधिकारी संघ म.प्र. द्वारा सम्मान
१६ – प्रशासन द्वारा १५ अगस्त को सम्मान 
१७.- मालव रत्न अवार्ड २०१९ से सम्मानित।
१८.- २ अनाथ बेटियों को गोद लेकर १२वीं तक कि पढ़ाई के खर्च का जिम्मा लिया।


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