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का, सजना अब तुम बिन सावन

सतीशचंद्र श्रीवास्तव
भानपुरा- भोपाल (म.प्र.)

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(राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता लेखन प्रतियोगिता विरह वेदना में द्वितीय विजेता रही कविता)

का, सजना अब तुम बिन सावन
मन तड़पत, तरसत हैं अँखियाँ,
नहिं भातीं अब मुझको सखियाँ
पलक बिछीं हैं राहन…
का सजना अब तुम बिन सावन!

हूक उठे जियरा में रतिया
अधरा फरकें करन को बतिया
दादुर. लागे राग सुनावे,
मेघा बरसे आँगन…
का, सजना अब तुम बिन सावन

नाचे मोर, पपीहा बोले,
पर आपन मनवा न डोले
तुम्हरी बाट में ऐसी खोयी
झींगुर लागे मोह रिगावन…
का, सजना अब तुम बिन सावन!

चारों तरफ हरियाली फैली,
सूखे की हालत हो गयी मैली
मन का माझी राह निहारे
कब आओगे तुम घर साजन…
का, सजना अब तुम बिन सावन!

परिचय : सतीशचंद्र श्रीवास्तव
निवासी : भानपुरा- भोपाल म.प्र.
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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