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जलन कायदा

विजय गुप्ता
दुर्ग (छत्तीसगढ़)

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जलन से कैसे हो सकता फायदा
भाई जलन का भी कोई कायदा।

नमन नही बन सके कोई भुलावा
जतन करने में कैसा रहे छलावा

वहन करता मनुष्य ही काम का
काम ही पहिया बने उस नाम का

जलन से कैसे हो सकता फायदा
भाई जलन का भी कोई कायदा।

अकड़बाजी बन गई क्यूँ दस्तूर है
बहस से भी रहता आखिर दूर है

वजह नहीं फिर भी बनता बावला
रिश्तों में क्यों लाए सतत फासला

जलन से कैसे हो सकता फायदा
भाई जलन का भी कोई कायदा।

खलल स्वभाव विकास की रोक है
पहलगामी तो अंतर्मन की खोज है

चहल से ही बढ़ता जाए जब दायरा
निश्चय मानुष बन सकता है आसरा

जलन से कैसे हो सकता फायदा
भाई जलन का भी कोई कायदा।

जलन करने की कोई तो सीमा हो
दहन भाव कभी कभी तो धीमा हो

शब्द ज्ञान बनाते जब शायर शायरा
चकरा जाते हैं देख देखकर माजरा

जलन से कैसे हो सकता फायदा
भाई जलन का भी कोई कायदा।

सहन करता इंसान ही जीवट बने
मिलन योग से रामभक्त केवट बने

क्या जरूरत फैलाये वहां रायता
कर्म भाग्य का योग मसूरी मालदा

जलन से कैसे हो सकता फायदा
भाई जलन का भी कोई कायदा।

हलक बैठी जले कोयले की राख
ललक रही मिटे किसी की साख

राख कहलाये भभूत का जायजा
साख राख मध्य विजय की आपदा

जलन से कैसे हो सकता फायदा
भाई जलन का भी कोई कायदा।

परिचय :- विजय कुमार गुप्ता
जन्म : १२ मई १९५६
निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़

उद्योगपति :१९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग
साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल जी द्वारा प्रशंसा पत्र
काव्य संग्रह प्रकाशन : १ करवट लेता समय २०१६ में, २ वक़्त दरकता है २०१८
राष्ट्रीय प्रशिक्षक : (व्यक्तित्व विकास) अंतराष्ट्रीय जेसीस १९९६ से
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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