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जलदेवियाँ

मंजिरी पुणताम्बेकर
बडौदा (गुजरात)

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 नारी उस वृक्ष की भाँति है जो विषम परिस्थिति में तटस्त रहते हुए परिवार के सदस्यों को छाया देती है। नारी अबला नहीं सबला है। पुरुष वर्ग शायद नहीं जानते कि नारी कोमलता एवं सहनशीलता के साथ यदि वह दृढ निश्चय करे तो वह कुछ भी सम्भव कर सकती है। इस बात के असंख्य उदाहरण हैं जिसमें से एक कहानी आपके सम्मुख प्रस्तुत है।
गंगाबाई और रामकली ये दोनों आदिवासी खालवा विकास खंड लंगोटी की रहने वाली थीं। इस आदिवासी विकास खंड की पहचान सुदूर आदिवासी अंचल के नाम से थी क्यूंकि ये दुनिया से एक सदी पीछे था। इस विकास खंड के पंद्रह गाँव आज भी पहुँच विहीन हैं। पानी के अभाव से जीवन अत्यंत जटिल था। गंगाबाई और रामकली के साथ पार्वती, लछमी, ललिता, मीरा, चमेली, टोला और चम्पा ये सारी स्त्रियाँ हर रोज सुबह शाम तीन किलोमीटर तापती नदी पर जाकर झिरी खोद कर पानी भर कर लातीं थीं। क्या करती गरमी की वजह से गाँव का तालाब सूख चुका था। उसी गाँव में नरवेश बघेल रहता था। पूरे गाँव में बस उसी के घर हैंडपंप था। ये बघेल गाँव वालों को पैसे लेकर पानी देता था।
इन आदिवासी जिलों में अंधविश्वास, अशिक्षा और कुपोषण ने अपने पैर जमा रखे थे। पुरुष तो निठल्ले पेड़ के नीचे बैठ जुआ खेलते और बीड़ी पीते बैठते। स्त्रियाँ चाहे वो गर्भवती हो या उसे मासिक स्त्राव हो उसे तो वो तीन किलोमीटर जाकर पानी तो भरना ही होता था। उसके अलावा मधुमक्खी के छतों से शहद एकत्रित करना, खेतोँ में मजूरी करना, घर लीपना खाना कपड़े जैसे रोज के ही काम रहते थे।
एक दिन इन सारी स्त्रियों ने पंचों के सामने पानी की किल्ल्त से छुटकारा पाने गाँव में कुआँ खोदने का प्रस्ताव रखा। सुनकर पंचों ने कहा कि कुआँ खोदेगा कौन? कुआँ खोदना कोई सरल काम है? मुँह उठाया और बोल दिया की कुआँ खोदना है।
पर नारी शक्ति जिंदाबाद। उन सारी स्रियों ने मिलकर कुआँ खोदने की ठान ली। पर जगह नहीं थी। गंगाबाई और रामकली दोनों ने इस समस्या का समाधान दिया। उन्होंने अपने खेतों की कुछ जमीन कुआँ खोदने के लिये दी। अब ये सारी स्त्रियाँ घर के काम समाप्त कर दोपहर की चिलचिलाती धूप में छियालीस सेंतालिस डिग्री तापमान में अपने घागरे को कमर कस आदिवासी गीत गाते-गाते कुआँ खोदने का काम करतीं। इन सभी ने करीब चालीस दिनों में कुआँ खोद दिया। मेहनत रंग लाई। धरती से पानी फूटा और देखते ही देखते कुए मे पानी आने लगा। फिर क्या था सारे गाँव और आस-पास के गावों मे ये सारी स्त्रियाँ जल देवियाँ और घागरे वाली पलटन के नाम से प्रसिद्ध हुईं।

परिचय :- मंजिरी पुणताम्बेकर
निवासी : बडौदा (गुजरात)
घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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