डॉ. भोला दत्त जोशी
पुणे (महाराष्ट्र)
********************
प्राचीन समय में एक राजा उदार, न्यायप्रिय और भगवद्भक्त था। भगवद्भक्त होने के कारण उसने महल की पूर्व दिशा में भगवान विष्णु का मंदिर बनवाया था | राजा अपने व्यस्त कार्यों के बावजूद ईश्वरचिंतन के लिए समय निकालता था एवं मंदिर में बैठकर मनन करता व कुछ समय के लिए ध्यान में खोये रहता था | काफी महीनों तक ढूँढने के बाद उसे मंदिर के लिए एक धर्माचारी ब्राह्मण मिल गया जो मंदिर की जिम्मेदारी संभाल सकता था | वह ब्राह्मण भी बड़ा ही संतोषी और ईश्वर का परम भक्त था | वह स्वतंत्र रूप से पूजा का काम करता था | राजा उसके काम और स्वभाव दोनों से ही खुश थे |
एक दिन राजमहल में काम करने वाली दासी के मन में लालच आ गया था क्योंकि उसने सफाई करते समय कमरे में रखे हीरों के भंडार को देख लिया था | चोरी के कठोर दंड के बारे में दासी को जानकारी थी फिर भी लालच के कारण उसकी अक्ल पर पर्दा पड़ गया था | एक दिन कोष की रखवाली कर रहे सुरक्षाकर्मी को दोपहर के समय भोजनोपरांत नींद आ गई थी तभी मौके की तलाश में खड़ी दासी ने कोष से हीरे चुरा लिए थे | उस समय दासी को हीरे चुराते हुए किसी ने नहीं देखा | पकड़े जाने के डर से दासी ने हीरों को मंदिर के बाहर एक कोने में छिपा दिया | पुजारी पूजा के कार्य में व्यस्त थे अतः उन्होंने भी दासी को मन्दिर में आते हुए नहीं देखा |
इस बीच राजा ने अपने दरबार में कवियों को काव्यपाठ के लिए बुलाया था | काव्यपाठ के उपरांत कवियों को पुरस्कृत करने के लिए राजा ने मंत्री को हीरे लाने का आदेश दिया | आदेश पाकर मंत्री सुरक्षाकर्मियों के साथ कोषागार में गया तो उसने देखा कि हीरे गायब हैं | मंत्री ने द्वारपाल के माध्यम से राजा को हीरों की चोरी हो जाने की सूचना दी | राजमहल में अचानक चोरी की खबर आग की तरह फैल गई | राजा ने तुरंत आदेश दिया कि जो जहां है वहीं रहेगा | महल का कोना-कोना ढूंढा गया | सबकी तलाशी ली गई मगर हीरे नहीं मिले |
महल की तलाशी के बाद केवल मंदिर का स्थान बचा था जिसकी तलाशी बाकी थी | एक मंत्री ने सुझाव दिया कि मंदिर की तलाशी भी कर ली जाय ताकि गुंजाइश के लिए कोई स्थान नहीं बचे। मंत्रियों के सुझाव को मानकर राजा ने मंदिर की तलाशी का आदेश दे दिया यद्यपि राजा इस बात पर विश्वस्त थे कि मंदिर और चोरी के बीच कोई संबंध नहीं हो सकता है | तलाशी लेने पर हीरों से भरी पोटली मंदिर के बाहर एक कोने में पड़ी मिली | राजा यह देखकर अवाक रह गए थे | उपस्थित लोग धर्माचारी को चोर मान रहे थे | पुजारी ने कई मिन्नतें की कि उसने चोरी नहीं की है पर कोई मानने को तैयार नहीं था | राजा बोले –“ मैं पुजारी को प्राणदंड तो नहीं दूंगा पर मैं अभी आदेश देता हूँ कि इसके उस हाथ को काट दिया जाय जिससे इसने चोरी की |” राजाज्ञा पाकर सिपाहियों ने उसका दाहिना हाथ काट दिया | ब्राह्मण को बिना अपराध के सजा पाने का बहुत दुःख था | वह दुःखी मन से उस राज्य को छोड़कर दूसरे राज्य में चला गया | वहाँ जाकर उसने एक विद्वान ज्योतिषी की शरण ली और निवेदन किया कि निर्दोष होने के बावजूद उसे घोर दंड क्यों दिया गया ? ज्योतिषी ने बताया कि उसे जो दंड दिया गया है वह इस जन्म के कर्मों का फल नहीं है | उसने पिछले जन्म में देशविरोधी कार्य में हाथ बंटाया था यह उसी अपराध की सजा है | विद्वान ज्योतिषी ने समझाया कि कर्म का फल पीछा नहीं छोड़ता है , चाहे वह अच्छा हो या बुरा | इतना जान लो कि अच्छे कार्य का अच्छा फल बुरे कार्य का बुरा फल | नीम लगायेंगे तो नीम का पेड़ उगेगा और आम लगायेंगे तो आम के फल मिलेंगे | धर्माचारी समझ गया कि किए गए कर्म का फल अकाट्य होता है | उसने मन ही मन खुद को समझाया और शांत होकर वहाँ से चला गया |
शिक्षा- हमें अपना कर्म सच्चे मन से और पूरी निष्ठा से करते रहना चाहिए बाकी फल पाने की लालसा नहीं रखनी चाहिए |
निष्कर्ष- जो फसल लगायेंगे वही फसल काट पाएंगे यही बात सत्य के धरातल पर खरी उतरती मालूम पड़ती है |
परिचय :- डॉ. भोला दत्त जोशी
निवासी : पुणे (महाराष्ट्र)
शिक्षा : डी. लिट. (केंद्रीय मध्य अमेरिकी विश्वविद्यालय, बोलिविया)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻
आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा अवश्य कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉 hindi rakshak manch 👈… राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें...🙏🏻.