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मां की मासूम यादें

शरद सिंह “शरद”
लखनऊ

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वह यादें वह रातें पुनः एक बार दोहरा दो
उस गुजरे नजारे को पुनः एक बार दोहरा दो
देख कर मुख मेरा जब लिया होगा चुम्बन मां ने
देकर हौले से थपकी जब अंक में भरा होगा उसने
रोयी थी में जब जब रोई तो वह भी होगी
जब सोई नहीं जिद में, लोरियां गाई तो होंगी
वह लम्हे वह मंजर पुनः एक बार दोहरा दो।
मेरी टूटी हुई भाषा को संभाला तो होगा ,
पकड़ कर मेरी उंगली चलना सिखाया तो होगा,
मेरी नादानियों पर पर्दा भी गिराया तो होगा,
बहे होंगे जब आंसू आंचल में छुपाया तो होगा,
उन खट्टी मीठी यादों को पुनः एक बार दोहरा दो।
जिंदगी के अजब प्रश्न सुनकर,
मन मलिन हुआ तो होगा,
निकला ना होगा कोई हल,
तो मन द्रवित हुआ तो होगा,
उन रोते होठों को पुनः एक बार
हंसा दो
न जाने किस विवशता में,
ठुकराया होगा उसने,
ना जाने कैसे अपना दिल,
पत्थर बनाया होगा उसने,
पर बैठकर अकेले रातों को,
अश्रु सागर बहाया तो होगा उसने,
रोती आंखो को न जाने कैसे,
जमाने से छुपाया होगा उसने
उन रोती आंखो को हंसने की वजह दे दो
एक बार उन मुस्कानों को पुनः दोहरा दो ।
वह यादें वह रातें पुनः एक बार दोहरा दो।
एक बार दोहरा दो

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परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की आपकी बचपन से साहित्य मे रुचि रही व बाल्यावस्था में ही कलम चलने लगी थी। प्रतिष्ठा फिल्म्स एन्ड मीडिया ने “मेरी स्मृतियां” नामक आपकी एक पुस्तक प्रकाशित की है। आप वर्तमान में लखनऊ में निवास करती है।


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