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मासूमियत

माधवी तारे
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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  ‘वक्त की कैद में जिंदगियाँ हैं, मगर चंद घड़ियाँ हम सब सब्र करें, प्राण वायु की आपूर्ति के लिए तो कम से कम।’
संपूर्ण विश्व की त्रासदी से हम सब वाकिफ हैं। एक अनाहत भय से हर शख्स परेशान सा है। बच्चें, बूढ़े एवं युवा सब-के-सब आज की स्थिति का गुनहगार स्वयं को मान रहे हैं। स्वार्थांध होकर मानव ने प्रकृति के साथ की हुई ज्यादतियां या खिलवाड़ का नतीजा वर्तमान स्थिति में कैसा भारी पड़ रहा है, सब देख रहे हैं, मान भी रहे हैं। ‘वनराजी, वृक्षबेलियाँ हमारे सगे-संबंधियों जैसी है’, यह हमारे देश की परंपरा युगों-युगों से चली आ रही है। ऐसे में एक घर की बुजुर्ग महिला सुबह-सुबह उठकर, नहा-धोकर, पुजा की थाल हाथ में लेकर जंगल की ओर निकल पड़ती है। दरवाजे की आहट सुनकर उसका छोटा पोता उठकर, “दादी माँ, रुको। मैं भी आपके साथ जंगल की और आता हूँ,” कहकर जल्दी से हाथ-मुँह धो कर, हाथ में एक छोटा सा तुलसी का पौधा लेकर, दादी माँ के पीछे पीछे चल रहा था। दादी माँ ने देखा और पूछा,”अरे, हाथ में तुलसी का पौधा क्यों लिया है?” “दादी माँ, तूने एक बार कहानी बताई थी ना गणपति बप्पा की, कि पृथ्वी प्रदक्षिणा की प्रतिस्पर्धा में कैलाश पर्वत पर बैठे अपने माता-पिता की ही सलग तीन प्रदक्षिणा करके ही बाप्पाने सर्व देवों में प्रथम पूजा का मान प्राप्त किया था। है ना…। मुझे वह सम्मान वगैरह की चाहत नहीं है, पर पृथ्वी पर प्राण वायु की सतत स्रोत बहाने वाले नींब, बड़, पीपल और तुलसी के पेड़ भी मनुष्य के लिए जीवनदान देने वाले मातृ-पितृ सदृश्य ही हैं। मैं उन सबको एक साथ तुम्हारे जैसी प्रदक्षिणा करूँगा और उनकी प्रार्थना करूँगा कि धरती पर प्राण वायु की कमी कभी ना होने देना।” “हे भगवान”, बाल बुद्धि की मासूमियत पर दादी माँ नतमस्तक हुई।

परिचय :- माधवी तारे
निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश)


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