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अंतर्मन

श्रीमती लिली संजय डावर
इंदौर (म .प्र.)

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आंटी आंटी हमारी बॉल अंदर आ गई, प्लीज् दे दीजिए ना, दीप्ति ने खिड़की से झांककर देखा तो कॉलोनी में खेलते हुए बच्चे उसके घर के गेट पर खड़े होकर आवाज़ दे रहे थे, दीप्ति एक लेखिका और समाजसेवी है। आज रविवार होने से वह घर पर ही अपने लैपटॉप पर कोई आर्टिकल लिख रही थी। जिसका शीर्षक था “अंतर्मन”। दीप्ति ने बाहर निकलकर बच्चों को बॉल दी और फिर आकर लिखने बैठ गयी। तभी कॉलोनी की सफाईकर्मी मालती भाभी ने दरवाजा खटखटाया, दीप्ति के पूछने पर उसने कहा कि बेटी को कॉपी और पेन की जरूरत है और कल जन्मदिन है तो वो नए कपड़ों की जिद कर रही है। दीप्ति ने उसे कॉपी पेन देते हुए कहा की भाभी ऐसे ही बिटिया की पढ़ाई पर ध्यान देना और जो भी जरूरत हो आकर बात देना। दीदी आपकी बजह से ही तो मेरी बिटिया पढ़ रही है, अगर आप फीस नही भरती, स्कूल में एडमिशन नही दिलाती तो हमारी हैसियत नही थी की हम बेटी को पढ़ा सकते, मालती ने अपनी आंखों की नमी को अपनी साड़ी के पल्लू से पोछते हुए उत्तर दिया। आपका बहुत अहसान है, आप बहुत अच्छी हैं दीदी… आप सबकी मदद करती हैं, सभी आपकी बहुत तारीफ करते हैं। नही भाभी ऐसी कोई बात नही बस बिटिया को अच्छी तरह पढ़ाना लिखाना और उसे आज नई ड्रेस भी दिला देना, कहते हुए दीप्ति ने उसे पांच सौ रुपये भी दिए। मालती के जाने के बाद दीप्ति को अपने दान देने की आदत और उसके बदले मिलने वाली तारीफ पर कुछ अहम जाग्रत हुआ क्यों कि सभी दीप्ति के कार्यों की प्रशंसा करते है, समाज मे उसका बहुत नाम है। मन ही मन खुश होते हुए वह फिर से अपने कार्य मे व्यस्त हो गयी, तभी फ़ोन की घंटी बजी देखा मेकैनिक का फ़ोन था, बोला दीदी आपकी गाड़ी की सर्विसिंग हो गयी है, आप घर पर हो तो ले आऊं, हाँ बोलने पर वो कुछ ही देर में गाड़ी लेकर आ गया। दीप्ति ने बिल देखकर पांच हज़ार दो सौ रुपये उसे दिए तो उसने तीन हज़ार रुपये वापस करते हुए कहा दीदी ये आप जो बच्चों के लिए काम करती है उसमें मेरा छोटा सा योगदान है, अब हर महीने में आपको पैसे देता रहूंगा, आपके इस पुण्य कर्म में मैं भी शामिल होना चाहता हूँ। दीप्ति ने कहा रवि भैया आपकी इतनी कमाई नही है, आप रखिये मैं आपकी तरफ से बच्चों के लिए सेवा कर दूंगी, तो रवि बोला दीदी अपना खाया और अपना किया ही खुद को लगता है, आपके करने से वो मेरे खातेे में थोड़ी ना चला जायेगा। और क्या पता मुझसे खुश होकर भगवान मेरी बिटिया को भी आपकी तरह बना दे, तो मेरा जीवन सफल हो जाये। रवि दरवाजे से बाहर निकल चुका था और दीप्ति निःशब्द खड़ी अपने अंतर्मन में अपने अहम को पिघलते हुए महसूस कर रही थी।

परिचय : श्रीमती लिली संजय डावर
सम्प्रति : प्राचार्य शा. हाई स्कूल पेडमी तह. जिला इंदौर
उपलब्धियां व लेखन : विभिन्न शैक्षिक एवं साहित्यिक मंचों से विचार अभिव्यक्ति, संचालन, स्वरचित सरस्वती वंदना, देशभक्तिगीत, विभिन्न विषयों पर कविता, कहानी लेखन।
अन्य : विगत १५ वर्षों तक आकाशवाणी के विभिन्न कार्यक्रमों, वार्ता, सामयिक विषयों पर परिचर्चा, शिक्षा में परीक्षा की तैयारी कैसे करें आदि में सहभागिता।


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