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गरीबी पर चोट

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा
बेगम बाग (मेरठ)

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आज सुबह और दिनों की तरह ही अपने काम में लगी रही, वक्त इतनी तेजी से बीत रहा था कि पता ही नहीं चला, कब ११:०० बज गए, अचानक घर के बाहर एक ठेले वाले की आवाज आई, जो बहुत सस्ते दामों में घर के काम का सामान बेच रहा था, हम कई महिलाएं अपने अपने घर से उसकी आवाज सुनकर बाहर निकल गई, और सामान खरीदने लगी। तभी मेरी नजर मिसेज मित्तल पर पड़ी वह सामान खरीदते हुए कुछ छोटी-छोटी चीजें अपने हाथ में छुपा लेती थी, और अपनी कनखियों से देखती थी कि किसी ने देखा तो नहीं। मैंने देख कर भी अनदेखा कर दिया, सभी लोग सामान लेकर अपने अपने घर को चले गए!
तब मैंने ठेले वाले भैया से कहा की अगर ऐसे ही समान बेचोगे तो तुम्हें घाटा होता रहेगा, थोड़ा सा अपनी आंखें खोल कर भी देख लिया करो कि कोई सामान तो नहीं उठा रहा। वह बिना कुछ कहे मुस्कुरा दिया और चला गया। अगली बार फिर वही ठेलेवाला आया और सभी महिलाएं सामान लेने के लिए उसके ठेले पर चारों तरफ खड़ी हो गई, मुझे वैसे तो सामान की जरूरत नहीं थी, लेकिन फिर भी मैं चली गई कि देखती हूं आज फिर मिसेज मित्तल ऐसा करेंगी या नहीं, और ठेलेवाला भैया ध्यान देगा या नहीं। बस यही सोच कर मैं भी सामान को अलटने पलटने लगी।
कुछ महिलाएं बार-बार उसके सामान में कमियां बता कर चुप हाथ में एक दो चीजें चोरी से रख लेती। उनकी इन सब हरकत को देखकर मुझे बहुत अचरज हुआ। जैसे ही मैंने पुनः अपनी दृष्टि मिसेज मित्तल पर डाली वह बहुत संयम दिख रही थी। उनको किसी भी तरह का कोई अपराध बोध नहीं था। और वह फिर एक बार कुछ सामान हाथों में चुपचाप छुपा कर ठेले से सामान खरीद कर चली गई। मेरे दिमाग में खलबली सी मच गई मैंने फिर ठेले वाले भैया से कहा अपने ठेले पर कुछ ऐसा करो कि तुम्हें पता चल जाए कोई ग्राहक सामान तो नहीं उठाता। वह फिर एक बार हंसा, तो मैंने कहा यह जो अभी महिला गई है वह तुम्हें सो ₹२०० की चपत लगा गई और तुम्हें पता भी नहीं चला, मेरी बातों को सुनकर वह दरियादिली से चेहरे पर एक मुस्कान लाकर बोला मैडम! इस तरह के ग्राहक आते हैं यहां। आपके जैसी भी हैं जिनको हमारा नुकसान होता देख कर दुख होता है और उन जैसी महिलाएं भी आती हैं जिनके बारे में आपने बताया। मैडम। बड़े लोगों से ही हमारी रोजी रोटी चलती है जब यह बड़े लोग ही ऐसी हरकत करते हैं तो हम जैसे छोटे लोग उनको कुछ कह नहीं पाते। अगर हम जैसे गरीब लोग इनको कुछ कहेंगे तो यह उल्टा हमें ही डांट फटकार कर भगा देंगे, और हम से सामान लेना बंद कर देंगे, और हम रोजी रोटी के लिए तरस जाएंगे। यह सारी बातें सुनकर मुझे उस पर बहुत तरस आया जो इंसान गरीब है और हम जैसे लोग उसकी गरीबी को और चोट पहुंचाते हैं वह कैसे बड़े लोग हो सकते हैं। बड़ा तो वह ठेलेवाला है जो सब कुछ जानते हुए भी, अपने दिल में इतनी सारी जगह लेकर बैठा है लेकिन कब तक? कब तक गरीब लोगों को ऐसी महिलाएं सताती रहेंगी !!

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परिचय :-  सुरेखा “सुनील “दत्त शर्मा
जन्मतिथि : ३१ अगस्त
जन्म स्थान : मथुरा
निवासी : बेगम बाग मेरठ
साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास
प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :-
पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल, हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) इंदौर, कवि कुंभ देहरादून, सौरभ मेरठ, काव्य तरंगिणी मुंबई, दैनिक जागरण अखबार, अमर उजाला अखबार, सौराष्ट्र भारत न्यूज़ पेपर मुंबई,  कहानी संग्रह, काव्य संग्रह
सम्मान : काव्य भूषण सम्मान मुंबई, वरिष्ठ समाजसेवी सम्मान मेरठ, क्रांति धरा साहित्य रत्न सम्मान, पर्यावरण प्रहरी सम्मान
संप्रति : सचिव ग्रीन केयर सोसायटी, सचिव बीइंग वूमेन मेरठ मंडल


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