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बढ़ती भौतिकतता विलुप्त होती संवेदनाएं

डॉ. ओम प्रकाश चौधरी
वाराणसी, काशी
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                                  प्रसिद्ध कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता ’यदि तुम्हारे घर के एक कमरे में आग लगी हो, तो क्या तुम दूसरे कमरे में सो सकते हो? यदि तुम्हारे घर के एक कमरे में लाशें सड़ रही हों, तो क्या तुम दूसरे कमरे में प्रार्थना कर सकते हो’? इसी संदर्भ में मुजफ्फरपुर के जनाब आदित्य रहबर लिखते हैं, यदि इसका जवाब हां है तो मुझे आपसे कुछ नही कहना है, क्योंकि आपके अंदर की संवेदना मर चुकी है और जिसके अंदर संवेदना न हो, वह कुछ भी हो लेकिन मनुष्य तो कत्तई नहीं हो सकता है। आज कोरोना महामारी ने जिस तरह से हमारे देश में तबाही मचा रखी है, उसमें किसी की मृत्यु,किसी की पीड़ा पर आपको दुःख नहीं हो रहा है, तो निश्चित ही आप अमानवीय हो रहे हैं। जब देश में चारों ओर कोहराम मचा है, प्रतिदिन चार लाख से भी अधिक लोग (जो एक दिन में विश्व के किसी भी देश में हुए संक्रमितों की संख्या से अधिक है) कोविड–१९ का शिकार हो रहे हैं, ऐसे में आई पी एल का जारी रहना कहां तक उचित है? सुखद संयोग है कि यह लिखते समय ही ज्ञात हुआ कि कोरोना संक्रमण के बढ़ते प्रकोप के कारण आई पी एल स्थगित कर दिया गया। पांच राज्यों के विधान सभाओं के चुनाव, कुछेक राज्यों में उप चुनाव तथा उत्तर प्रदेश में पंचायतों के चुनाव कहां तक उचित हैं/थे। व्यक्ति आजीवन दो तरह के परिवेश में रहता है, एक सामाजिक–जिसमें पद, प्रतिष्ठा, मान सम्मान, यश आदि दूसरे भौतिक परिवेश, जिसमें मानव ने अपनी शारीरिक सुख सुविधा और विलासिता की अनेकानेक वस्तुएं जुटा रखी हैं। यही विलासिता और भौतिक सुख साधन जुटाने में हमने प्रकृति का अंधाधुंध दोहन किया है, वनों का क्षेत्र सिमटता जा रहा है। सरकार अभियान चलाकर वृक्षारोपण कार्यक्रम चलाती है, लेकिन जन सहभागिता न होने के कारण वह केवल कागजों पर और गिनीज बुक में दर्ज कराने तक ही सीमित रह जाती है। ऑक्सीजन के असली स्रोत को समाप्त करके हम सिलेंडर के भरोसे जीने को मजबूर हैं। हमें वृक्षारोपण के लिए बहुत बड़े पैमाने पर जन आंदोलन चलाना होगा और सभी को कमसेकम एक वृक्ष लगाने का संकल्प लेना होगा।
दूसरी ओर सामाजिक पद और प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिए हम लोगों ने अपना जीवन ही दांव पर लगा दिया। लोकतंत्र में चुनाव जरूरी हैं, लेकिन लोक को समाप्त करके नहीं। देश के कर्णधार, भविष्य, नौनिहालों की पढ़ाई,प रीक्षा सभी सरकार ने पंचायतों का चुनाव कराने के लिए टाल दिया। जो शिक्षक पढ़ाते, परीक्षा कराते उन्हें चुनाव ड्यूटी में लगा दिए गए, और अब तक ७०० से भी अधिक शिक्षक चुनाव ड्यूटी करके कोविड का शिकार होकर अपनी जान गवां बैठे हैं, और भी न जाने कितने होंगें, मतगणना, जहां से संक्रमण फैलने की सबसे अधिक संभावना थी, अंदर तो ठीक लेकिन बाहर कई हजार की भीड़ खड़ी थी जो लगातार विभिन्न चैनलों पर दिखाई जाती रही, लेकिन शासन प्रशासन मूक दर्शक बना रहा और जब लोग संक्रमण लेकर अपने गांव जवार में आ गए तो लॉक डाउन की सुध आई,’ का वर्षा जब कृषि सुखानी’। जगह जगह चिपके पोस्टर में बड़ी बड़ी तस्वीरें मा प्रधानमंत्रीजी और मुख्यमंत्री जी की लगी हुई है कि मास्क और दो गज की दूरी जरूरी, साबुन से बार बार हाथ धोएं। लेकिन ऐसे बड़े-बड़े नेताओं के समक्ष भीड़ एकत्र होती रही, और उसे संबोधित कर गौरवन्नित होते रहे।लोग बिना मास्क के, बिना सामाजिक दूरी के इकट्ठा होते रहे। वही सरकार कार में अकेले जा रहे, मोटरसाइकिल या साइकिल में अकेले जा रहे लोगों से पुलिस से जबरी चालान कटवाती रही और जुर्माना वसूलवाती रही। सरकार का कैसा दोहरा चरित्र, ऐसा कभी नहीं हुआ। आज सूचना मिली कि हमारे भतीजे और गोंडा के पी डी, डी आर डी ए, सेवाराम चौधरी (निवासी भसड़ा, अंबेडकरनगर) कोरोना से जीवन गवां बैठे। चुनाव में ड्यूटी के दौरान रात १२ बजे, १ बजे आते थे। वार्ता होती थी तो कहते थे कि क्या करें चुनाव तो करवाना ही है जान भले चली जाय, और वही हुआ। आज हम परिवारी जनों की हालत आप समझ सकते हैं। उनके बच्चों के सिर से पिता का साया समाप्त हो गया, बूढ़े मां बाप का सहारा चला गया। पत्नी का सुहाग ही नहीं गया बल्कि जीवन आधार समाप्त हो गया। वहीं महिला चिकित्सालय गोंडा के ही सी एम एस डा ए पी मिश्रा भी कोरोना के शिकार हो गए, ऐसे हजारों परिवारों का क्या होगा, जो आयोग और सरकार के अदूरदर्शी निर्णय के शिकार हो गए, सभी को विनम्र श्रद्धांजलि एवम् परिवार के प्रति गहरी संवेदनाएं। पूरे प्रदेश और देश के जिन प्रदेशों में चुनाव हुए वहां अभी कितने लोग काल कवलित होंगे कहा नहीं जा सकता है। भला हो मद्रास उच्च न्यायालय का जिसने केंद्रीय चुनाव आयोग को हत्यारों की श्रेणी में रखकर मुकदमा चलाने की बात की। कितनी बेहयाई, लोग सुप्रीम कोर्ट चले गए, वहां भी फटकार मिली तब बड़ी-बड़ी रैलियों पर रोक लगी। कहां और क्यों हमारी संवेदनाएं मृत हो रही हैं? हमारे नैतिक मूल्य तो लगता है अब पुस्तकों तक ही सीमित रह गए हैं। बड़े-बड़े नेता खुद बड़ी-बड़ी सभाएं आयोजित करते रहे और इधर विजय जुलूस पर रोक लगाते रहे, फिर भी कहीं-कही बड़े पैमाने पर बाजे गाजे के साथ जुलूस निकले, एक भी चेहरे पर मास्क नहीं, जनपद अंबेडकरनगर के टांडा तहसील के बेहरा जगनपुर के ग्राम प्रधान के विजय जुलूस का फोटो देखिए इतना वायरल होने के बाद भी पुलिस मूकदर्शक बनी हुई है। रसूखदार लोग हैं पुलिस भी कार्यवाही करने से घबड़ाती है, जानती है अब उम्र ५० के पार है, जबरी घर बिठा दिए जायेंगे, कैसे चलेगा प्रशासन, कौन लेगा कानून के अनुपालन की जिम्मेदारी? जमाखोरी और कालाबाजारी हमेशा रहती थी, लेकिन प्रायः खाने पीने की चीजों पर लेकिन अबकी इस कोविड की दूसरी लहर में तो जीवन रक्षक ऑक्सीजन, (ऑक्सीजन की कमी से बत्रा अस्पताल में १२ मरे,हिंदुस्तान, २ मई,२१), रेमडेसिविर आदि कोविड से संबंधित दवाओं की जमाखोरी व कालाबाजारी चरम पर पहुंच गई। यह दर्शाता है जब लोग जीवन और मृत्यु से संघर्ष कर रहे हैं तो भी एक वर्ग केवल धनार्जन में लगा हुआ है, संवेदनशीलता के क्षरण की पराकाष्ठा है। वहीं सरकार की भी अदूरदर्शिता व इच्छा शक्ति का अभाव है। राह जाते शवों को लोग रुककर प्रणाम करते हैं। उन्हीं शवों की चिता लगाने का मुंहमांगा दाम लिया जा रहा है, काशी में जिसे मोक्ष दायिनी कहा गया है, यह खेला यहां हो रहा है। दूसरी ओर सरकारी एंबुलेंस के ड्राइवरों की मिलीभगत से प्राइवेट एंबुलेंस वाले ३ से ५ किमी की दूरी तक का १५००० से २०००० वसूल कर मानवता को शर्मशार कर रहे हैं, ऐसी खबरें रोज अखबारों में आ रही हैं। यह सब उसी वाराणसी में हो रहा है, जहां के सांसद श्री नरेंद्र मोदीजी भारत के मा प्रधानमंत्री हैं, और योगी जी सत्ता संभालने के पश्चात से वाराणसी दौरे का शतक जल्दी ही लगाने वाले हैं।
लेकिन कितनी भी कठिनाई आए हमें उम्मीद का दामन नहीं छोड़ना है। जिस तरह से इलाज के जरूरी संसाधनों का अभाव हुआ है, जिस तरह की बदइंतजामियों को हमने देखा है, उन्हें भूल पाना कठिन है। महामारी जब हमारे दरवाजे तोड़ने लगे और तब जिन लोगों की नींद खुले, ऐसे लोगों को यह देश जिम्मेदारी वाले पदों पर नहीं रख सकता। सरकार और अन्य लोगों के उन चेहरों को पहचान लेना चाहिए, जिन्होंने आपदा के समय लोगों को चुनाव में ढकेला है, दवाओं की कालाबाजारी की है, हम सभी को छला है। यह महामारी न केवल हमारी संवेदनहीनता बल्कि हमारे चरित्र के निंदनीय पहुलओं को सरेराह कर दे रही है। समाज के ऐसे निर्दयी चेहरों को देर सबेर बेनकाब करना ही होगा। मन में आशा और विश्वास रखना होगा कि कितनी भी काली घनी अंधेरी रात हो, विहान होगा और सूरज अपनी रोशनी से हम सभी का जीवन प्रकाशमान करेगा। कोरोना हारेगा, हम जीतेंगे। जोहार प्रकृति! जोहार धरती मां!

परिचय :- डॉ. ओम प्रकाश चौधरी
निवासी : वाराणसी, काशी
शिक्षा : एम ए; पीएच. डी. (मनोविज्ञान)
सम्प्रति : एसोसिएट प्रोफेसर व विभागाध्यक्ष, मनोविज्ञान विभाग श्री अग्रसेन कन्या स्वायत्तशासी पी जी कॉलेज
लेखन व प्रकाशन : कुछ आलेख समाचार पत्रों, पत्रिकाओं में प्रकाशित,आकाशवाणी से भी वार्ता प्रसारित।
शोध प्रबंध, भारतीय समाज विज्ञान अनुसंधान परिषद दिल्ली के आर्थिक सहयोग से प्रकाशित। शोध पत्र का समय समय पर प्रकाशन, एवम पुस्तकों में पाठ लेखन सहित ३ पुस्तकें प्रकाशित।
पर्यावरण में विशेषकर वृक्षारोपण में रुचि। गाँधी पीस फाउंडेशन, नेपाल से ‘पर्यावरण योद्धा सम्मान’ प्राप्त।

घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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