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आज़ गुलिस्ताँ मेँ

सुभाष बालकृष्ण सप्रे
भोपाल म.प्र.

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आज़ गुलिस्ताँ मेँ, सुंदर पुष्पहार देखा,

प्रकृति का मनोरम सा उपहार देखा,

वन श्री सँपन्न है, विविध फलोँ से

वन प्रांतर के जीवोँ का, आहार देखा,

भागते हैँ, मैदानोँ मेँ, निर्भय वन्य जीव,

घास मेँ छिपे, बाघ का, प्रहार देखा,

सदियोँ से बसे थे, ज़ो आदिवासी ज़न,

उजडते जंगलोँ मेँ, उन्हेँ निराहार देखा,

गरज़ परस्त बनी इस दुनिया मेँ, दोस्त,

हर दिन इंसान का बदलता व्यवहार देखा

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लेखक परिचय :- 
नाम :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे
शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन
प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत॰ मुक्तक लोक व्दारा, प्रकाशित पुस्तक गीत सिंदुरी हुये (गीत सँकलन) मेँ प्रकाशित हुये हैँ.
संप्रति :- भारतीय स्टेट बैंक, से सेवा निवृत्त अधिकारी
निवासी :- भोपाल म.प्र.


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