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हिंदी की महत्ता

डॉ. उमेश पटसारिया
डबरा, ग्वालियर (मध्य प्रदेश)

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१४ सितम्बर २०२१ को हिंदी दिवस पर राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता सृजन प्रतियोगिता प्रतियोगिता विषय हिंदी और हम में द्वितीय स्थान प्राप्त कविता।

पंक्तियाँ – १२
विधा – मुक्तक
मापनी – १२२२ १२२२ १२२२ १२२२

सनातन और है सबसे पुरातन सभ्यता हिंदी।
धरा पर बह रही बनके त्रिपथगा और कालिंदी।
करे मां भारती के भाल को ऐसे सुशोभित ये,
चमकती नववधू के भाल पर जैसे लगी बिंदी।

रखे जो जोड़कर सबको वही इक डोर है हिंदी।
मिटा दे जो तमस को वो सुहानी भोर है हिंदी।
बहे हर भाव को लेकर धरा पर इस तरह से ये,
जहां साहिल मिले सबको कि पावन छोर है हिंदी।

जहां तुलसी कबीरा ने बढ़ाया मान हिंदी का।
वहीं पर आज क्यूं धूमिल हुआ सम्मान हिंदी का।
उठाएं आज हम मिलकर कसम ये देश के वासी,
करेंगे हम सभी मिलकर सदा उत्थान हिंदी का।

परिचय :  डॉ. उमेश पटसारिया
जन्म : ०९-१२-१९८१
निवासी : डबरा, जिला- ग्वालियर, (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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