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अमरप्रेम

विश्वनाथ शिरढोणकर
इंदौर म.प्र.

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अमरप्रेम इस विषय पर साहित्य में, फिल्मों में और धारावाहिकों में हमें ढेर सारी सामग्री मिलती हैंI क्या अमरप्रेम यह विषय मनोवैज्ञानिक हैं? क्या अमरप्रेम की मस्तिक्ष में कोई ग्रंथि होती हैं? उम्र का इससे भले कोई संबंध ना भी हो तो भी अक्सर ख़ास कर किशोर अवस्था से इसकी शुरवात क्यों होती हैं? आगे जाकर यह किस तरह पनपता हैं या किस तरह इसका अंत होता हैं? और क्या यह परिस्थतियों पर निर्भर होता हैं? आखिर अमरप्रेम होता क्या हैं?

अमरप्रेम इस शब्द का उपयोग स्त्री-पुरुषों के संबंध हेतु, विशेष कर प्रेमीयुगल हेतु और उनके अंतरंग संबंधों हेतु किया जाता हैंI ‘प्रेम मय सब जग जानीI’ कबीरदास इसके भी आगे जाकर कहते हैं, ‘ढाई आखर प्रेम को पढ़े सो पंडित होयI ‘सब कुछ भूलकर और भुलाकर प्रेम में डूब जाने वाले ऐसे युगलों की एक लम्बी फेहरिस्त हैंI लैला-मजनू, शिरी-फरहाद, रोमियो-ज्युलियट, बाजीराव-मस्तानी, हीर-रांझा, दुष्यंत-शकुंतला, राजा मानसिंह-मृगनयनी, बाजबहादुर-रानी रूपमती, सलीम-अनारकली और शाहजहां-मुमताजI यह कुछ नाम अमरप्रेम के लिए प्रसिद्द हैंI उपरोक्त और इन जैसे अनेक अमरप्रेमी युगलों के किस्से हमें आखिर क्यों आकर्षित करते हैं, और इनमें क्या विशेषता होती हैं ? प्रेम का क्या अर्थ हैं? सच में ही प्रेम अमर होता हैं क्या? एक बार आकर्षित होने के बाद एवं मनोमन प्रेम की स्वीकारोक्ति के बाद तीव्र और तीक्ष्ण आवेग और संवेदनायुक्त भावनाओं की अभिव्यक्ति ही प्रेम होता हैं क्या ? या इन व्यक्त होती भावनाओं के बाद, और प्रेम उजागर होने के बाद, संघर्षमय होता जीवन और उस प्रेम के लिए होने वाला पारिवारिक और सामाजिक अपमान, और उसके बाद जिद में किसी भी स्तर तक जाकर अपने प्रेमी के लिए त्याग करना या सामान्य से अलग कुछ कर दिखाना यहाँ तक की प्रकृति की इस सुन्दर भेंट, इस नश्वर शरीर को आत्महत्या के जरिये त्यागने की भावना तक पहुंचना, यहीं अमरप्रेम होता हैं क्या? इस अमरप्रेम में क्यों होती हैं साथ जीने मरने की इच्छा? आकर्षण, आसक्ति, खिचाव, अपनापन, भावनाओं का तीव्र आवेग, स्नेह , मोह, माया, त्याग, दु:ख, विरह, वेदना, असीम सहनशक्ति, इन सब मानवीय स्वभाव के दर्शन हमें अमरप्रेम के आईने में दिखाई देते हैं I

पुरुष सत्तात्मक समाज में इस अमरप्रेम के लिए ज्यादातर स्त्रियों को ही अग्निपरीक्षा देनी होती हैंI इस त्याग को किसे करना हैं जब यह प्रश्न सामने आता हैं तो वहां पर भी स्त्रियों को ही आगे आना होता हैंI अपने प्रियतम के लिए और प्रियतम द्वारा दी गयी यातनाओं को बिना शिकायत, सहन करने को ही अमरप्रेम कहते हैं क्या ? या एक दूसरे पर आए हुए संकटों का सामना करना (या ना करपाना) ही अमरप्रेम कहलाता हैं क्या ? एक दूसरे के लिए आस्था और एक दूसरे हेतु मन में विश्वास ही अमरप्रेम कहलाता हैं क्या? या एक दूसरे की कमजोरियों पर पर्दा डालकर और उन्हें सुधारकर अपने जीवन में परिपूर्णता लाना ही अमरप्रेम कहलाता हैं ? या जीवन में समझौता करना ही अमरप्रेम कहलाता हैं ? यह अमरप्रेम किसी एक के लिए ही कहलाता हैं क्या या इसमें दोनों की सहभागिता होती हैं ? आखिर क्या होता हैं अमरप्रेम ?

कई वर्षों तक करवाचौथ के व्रत के बावजूद भी पति-पत्नीका प्रेम अमरप्रेम की श्रेणी में क्यों नहीं आता ? द्रौपदी का पांडवों के साथ और पांडवों का द्रौपदी के साथ का प्रेम अमरप्रेम की श्रेणी में आता हैं क्या ? एक स्त्री पांच पुरुषों के साथ समान रूप से प्रेम कर सकती हैं क्या ? बहुपति या बहुपत्नी संबंधो में प्रेम ज्यादा होता हैं या व्यवहार ? सीता ने अपने अमरप्रेम की परीक्षा कई बार दी, और अंत में अग्नि परीक्षा भी दी I इतना ही नहीं धरती माता की गोद में समा अपने प्राण ही त्याग दिएI जब कि श्रीराम ने सीता को अपने समाज के लिए त्याग दिया अर्थात श्रीराम का सीता पर अमरप्रेम नहीं था क्या? और अगर श्रीरामसीता का अमरप्रेम था तो इसी अमरप्रेम के लिए श्रीराम ने सीता माता के लिए राज्य का त्याग क्यों नहीं किया ? मुद्दा यह कि क्या अमर प्रेम की भावनाएं स्त्री और पुरुष दोनों के लिए अलग अलग होती हैं ? आखिर अमरप्रेम का क्या मतलब हैं ? इसका एक अर्थ यह भी होता हैं कि प्रेम की बनिस्पत कर्तव्य श्रेष्ठ होता हैं और दुनियां में प्रेम ही सब कुछ नहीं होता I फिर ‘अमर’ यह शब्द प्रेम के साथ क्यों और कब से प्रचलन में आया ? इसका एक ही अर्थ हम ले सकते हैं कि, प्रेम हो, अमर प्रेम हो, कर्तव्य हो, व्यवहार हो किसी की भी अति नहीं होना चाहिए, और जीवन में पलायन किसी समस्या का हल नहीं होता हैं I परन्तु फिर आखिर अमरप्रेम को ही क्यों महिमामंडित किया जाता हैं ?
एक प्रश्न यह भी कि अमरप्रेम की इस राह में शारीरिक आकर्षण और शारीरिक संबंध कितने प्रतिशत होते हैं ? व्यवहार का एक तरीका और व्यावहरिक प्रेम प्रदर्शन कभी भी अपनी स्वाभाविकता लिए नहीं होतेI क्रिया और प्रतिक्रिया स्वरूप घटित यह व्यवहार स्वाभाविक हो ही नहीं सकताI शरीर हैं तो खूबसूरती भी पीछेपीछे आ ही जाती हैं, और खूबसूरती के पीछेपीछे आसक्ति भी दौडती ही रहती हैंI अब इसी आसक्ति के कारण प्रेम कम होता हैं या उसमें वृद्धि होती हैं? आसक्ति के कारण व्यक्ति प्रेम की भावनाओं से दूर होता हैं या और नजदीक आता हैं? तुलसीदासजी की अपनी पत्नी पर इतनी आसक्ति थी कि विरह सहन ना हो पाने के कारण वे घनघोर बारिश में ससुराल गए, वहां सर्प को ही रस्सी समझ कर उसे पकड कर पत्नी के कमरे में पहुंचेI उनकी इस अधीरता के लिए उनकी पत्नी ने उन्हें खूब अपमानित भी किया, यहाँ तक की सुन्दर शरीर के भीतर की हड्डियों के ढांचे को भी दिखायाI यहाँ पर तुलसीदासजी की आसक्ति तो ख़त्म हो गयीI पर प्रेम का क्या ?

किसी को देख कर मोहित होना यह प्रेम की पहली सीढी हैं, परन्तु प्रत्यक्ष दर्शन ना होते हुए भी किसी के बारे में सुनकर मात्र ही उससे प्रेम हो सकता हैं क्या? श्रीकृष्ण के साथ मीराबाई का प्रेम अपने आराध्य को बिना देखे उपजा हुआ प्रेम थाI इस एकतरफा प्रेम को भी अमरप्रेम कह सकते हैं क्या ? इससे आगे बढ़कर मीराबाई ने श्रीकृष्ण को अपना पति और आराध्यदेव माना थाI इसे भी अमरप्रेम कह सकते हैं क्या ? मीराबाई ने श्रीकृष्ण पर असीमित प्रेम किया, परन्तु उसे सिर्फ विरह, वेदना और राणाजी से प्राणांतक यातनाओं का ही सामना करना पड़ाI इन सब से जो उपजी वह थी भक्ति, इससे भी बढ़ कर सारे संसार ने जो जो देखा वह था मीराबाई का कवि ह्रदय। फिर अमरप्रेम कहाँ था ? इकतरफा प्रेम का सर्वश्रेष्ठ उदहारण माना जाता हैं मीराबाई का प्रेम, फिर उसी मीराबाई को, “जो मैं ऐसा जानती प्रीत किये दु:ख होय। नगर ढिंढोरा पीटती प्रीत न करियो कोय। “ यह कहने की नौबत क्यों आन पड़ी ? शायद इसे ही अमरप्रेम कहते हो ? प्रेम को किसी परिभाषा की जरुरत नहीं होती , यह तो ईश्वरीय देन होती हैं I अब श्रीकृष्ण से उम्र में बड़ी राधा के प्रेम को आप कैसे परिभाषित कर सकते हैं ? सम्पन्न और धनाढ्य लोगों का और गरीबों का अमरप्रेम भी अलग अलग होता हैं क्या ? शाहजहाँ बादशाह था और अपनी सामर्थ्य के बूते उसने विरह में सरकारी खर्चे से (?) ताजमहाल बनवाया और इतना ही नहीं सुन्दर कृति निर्मित करने वाले कारीगरों के हाथ बड़ी निर्दयता से कटवा दिए I यह कैसा अमरप्रेम ? यह वास्तु दुनियां का सातवा अजूबा कहलाती हैं I पर क्या वास्तविकता में हम शाहजहाँ-मुमताज के प्रेम को अमरप्रेम कह सकते हैं ? शाहजहां से भी कई गुना अधिक प्रेम करने वाले गरीबों के प्रेम को समाज में इतना ही सन्मान मिलता हैं क्या और क्या उसे समाज में अमरप्रेम की उपमा भी मिलती हैं ? अर्थात अमरप्रेम यह प्रदर्शन की वस्तु हैं क्या ? ताज महल देखने वाले पहले ताजमहाल की प्रशंसा करते हैं, बाद में शाहजहाँ को याद करते हैं I अर्थात ही अमरकृति ताज महल हैं और शाहजहाँ का प्रेम निमित्त हैं और निश्चित ही अमरप्रेम नहीं हैं I इससे भी बढ़कर यह कि ताज महल के निर्माण हेतु शाहजहाँ का सामर्थ्यवान होना ही महत्वपूर्ण कहलाता हैं I आश्चर्य हैं कि इन अमरप्रेम की कहानियों में लोग हरिश्चंद्र-तारामती, सत्यवान-सावित्री, जैसों की कहानियों को महिमामंडित नहीं करते I यहाँ बाजार वाद लागू होता हैं I सपने में अपना राजपाट दान करने वाले सत्यनिष्ठ राजा हरिश्चंद्र के साथ उसकी पत्नी तारामती ने भी जंगलों में कष्ट सहे I प्रेम की खातिर दारिद्र्ता भोगने वाले पतिपत्नी का प्रेम अमरप्रेम क्यों नहीं हो सकता ? दरिद्रता भोगते राजा-रानी की वेदनाएं और दु:खों का समिश्रण एक अलग तरह के प्रेम की कथा हैं और अमरप्रेम का उदहारण हैं पर सब को शाहजहाँ और मुमताज का प्रेम ही अमरप्रेम लगता हैं I
अमरप्रेम विकृति की सीमा लांघता हैं क्या ? पृथ्वीराज चौहान संयोगिता को भगा कर ले गए I अमरप्रेम की भावनाओं में शूरता और क्रूरता कहाँ से आती हैं ? वर्तमान में भी हम प्रेम प्रकरणों में रोज ह्त्याएं , बलात्कार , अपहरण जैसे अपराध देख रहें हैं I यह समाजशास्त्रियों के लिए विवेचना का विषय हैं पर इस अमरप्रेम में विकृति कोई आज की देन नहीं हैं I प्रेम में जब विकृति का समावेश होता हैं तब वहां संस्कार और नैतिक मूल्यों का विस्मरण हो जाता हैंI फिर भी इसकों हम अमरप्रेम कहें ? और उसका इतना बखान क्यों ?
कईयों का अमरप्रेम मृत्यु पर्यन्त ‘इकतरफा‘ ही होता हैंI आखिर तक अपने प्रियकर को मन में सम्हाल कर रखने वाले और अपने अमरप्रेम की किसी को भी कानोंकान खबर तक ना लगने देने वालों का अमरप्रेम दुनियां के सामने आ ही नहीं पाता I अब इसे क्या कहेंगे ? एक और मुद्दा अमरप्रेम का I परिवार से, समाज से, या जाती से इस प्रेम का तीव्र विरोध होने पर क्या इस प्रेम की ज्वाला ज्वालामुखी हो जाती है ? प्रेम की भावनाएं और परिपक्व हो जाती है ? मजनू पर उसके लैला से प्रेम के कारण लोगों ने पथराव का वर्षाव किया, पर वें पत्थर भी मजनू का प्रेम कम नहीं कर सके I ग़ालिब ने इस स्थिति का बहुत सुंदर वर्णन किया हैं , “ इक आग का दरिया हैं और डूब के जाना हैं I “ दोनों ओर से क्षणिक भावनाओं का जो आवेग होने के कारण और समाज या परिवार की ओर से भले ही तीव्र विरोध हो पर प्रेम तो परवान चढ़ता ही हैं और बाद में वास्तविक जीवन जीते हुए धीरेधीरे जो कम होता जाता हैं वह भी तो प्रेम ही होता हैं I परन्तु ऐसे क्षणिक प्रेम के किस्से भी बहुत मशहूर हो जाते हैं और उन्हें अमरत्व देने के प्रयास भी किये जाते हैं I हरियाणा, राजस्थान और अन्य जगह की कुछ पंचायतों के प्रेम के विरोध में जारी फतवों ने सारे देश में प्रसिद्धि पायी, पर समाज इन पर खामोश ही रहा I किसी ने भी इन पंचायतों को अपराध नहीं माना और नाही किसी भी सामाजिक संस्था ने विरोध स्वरूप केंडल मार्च निकाला I पटना के जूली और बटुकनाथ के अमरप्रेम का समाज में हल्का सा विरोध हुआ और वह जल्द ही शांत हो गया I आश्चर्यजनक यह कि बावजूद अपनी पत्नी का संसार उध्वस्त कर अपनी ही छात्रा से प्रेम करने वालों के प्रेम को मिडिया ने ही अमरप्रेम बना दिया I यहाँ प्रश्न यह निर्माण होता हैं कि सामाजिक द्रष्टि से अनैतिक माने जाने वाले प्रेम को हम अमरप्रेम कह सकते हैं क्या ? फिर अमरप्रेम किसके लिए ? समाज के लिए ? या प्रेमी-प्रेमिका के लिए ? बटुकनाथ ने अपनी पहली पत्नी के साथ २० वर्ष संसार किया तब उनकी जिन्दगी में जुली नहीं थी, फिर बटुकनाथ का अपनी पत्नी के साथ २० वर्ष प्रेम नहीं था क्या ? और बटुकनाथ की पत्नी का अपने पति के साथ का प्रेम अमर नहीं हो सकता ? अर्थात प्रेम समय के साथ बदलता रहता हैं क्या, और जो बदलता रहता हैं उस प्रेम को अमरप्रेम कैसे कह सकते हैं ?
अब मुस्लिम महिलाओं के तीन तलाक का मुद्दा चर्चा में हैं, और तलाक यह हर धर्म में होते हैं , पर मुस्लिम पति-पत्नी कम सहनशील होते हैं क्या ? प्रेम का कुछ भी महत्व नहीं होता क्या ?सच तो यह हैं कि यह एक सामाजिक मुद्दा हैं और इनके कारण ढूंढने होंगे , बहुपत्नी विवाह वाले समाज में अमरप्रेम की परिभाषा आप कैसे परिभाषित कर सकते हैं ?
इस अमरप्रेम में कभीकभार कोई तीसरा भी आजाता हैं I फिर एक से बढ़ कर एक त्रिकोणी प्रेम का साहित्य, फ़िल्में, धारावाहिक हमें पढने और देखने को मिलते हैं I इन प्रेम त्रिकोण के कारण हमारे सामने अमरप्रेम का एक अलग ही स्वरूप और महत्व सामने आता हैं I किसी एक के हिस्से अपमान, विरह और वेदना आती हैं, ‘चल सखी सौतन के घर चली हैं ! मान घटे तो क्या हुए बे, पी के दर्शन घडी हैं !’ और इसी त्याग के कारण प्रेम अमर कहलाता हैं I
अमरप्रेम स्थिर व टिकाऊ होता हैं क्या ? समयानुसार और उम्र के अनुसार वो बदलता रहता हैं I कच्ची उम्र का प्रेम बिना आगे पीछे का विचार किये हो जाता हैं, तो बड़ों का प्रेम व्यावहारिक होता हैं अत: दोनों ही उम्र के प्रेम को अमरप्रेम नहीं कहाँ जा सकता I प्रेम के शुरूआती दिनों में व्यक्ति को जो सुविधाएँ आसानी से उपलब्ध होती हैं वें सुविधाएँ ढलती उम्र में नसीब नहीं होती I एक शायर ने इसका बहुत सुन्दर वर्णन किया हैं,‘वो सरुर अव्वल अव्वल, वो गरूर अव्वल अव्वल ! वो करम भी लाजमी था, ये सितम भी जरुरी है!‘ स्मार्टफोन के मोबाइल युग में ‘व्हेलेंटाईन डे‘ उत्साह के साथ मनानें वाली आज की युवा पीढ़ी को अमरप्रेम की गहराई और उसकी गंभीरता समझ में आ सकती हैं क्या ? अमरप्रेम का महत्व और और उसका अर्थ समझ में आ सकता हैं क्या ? प्रेम का महत्व त्याग और समर्पण में होता हैं यह भावना यह पीढ़ी समझ सकती हैं क्या ? बड़ी आसानी से और सुविधानुसार सभी सामाजिक मान्यताओं को अंगूठा दिखाते हुए लिव इन रिलेशनशिप के दिनों में और व्हेलेंटाइन के महिमामंडन के दिनों में अगली पीढ़ी के लिए ‘अमरप्रेम‘ का महत्व इतिहास जमा हो जाएगा क्या ? अमरप्रेम सुविधाजनक व्यवहार और स्वार्थ में परिवर्तित हो गया हैं क्या ? सच तो यह हैं कि ‘प्रेम ‘ की सही परिभाषा करना बहुत ही कठिन हैं I मराठी फिल्मों के प्रसिद्द गीतकार/कवी मंगेश पाडगावकर के शब्दों में ‘ प्रेम ‘ की व्याख्या “प्रेम मतलब प्रेम मतलब प्रेम ही होता हैं, जैसे तुम्हारा होता हैं वैसे हमारा होता हैं I“

लेखक परिचय :-  विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर म.प्र.

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