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कल्पना

ओमप्रकाश सिंह
चंपारण (बिहार)

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विरह की अगन बनकर तूम भी
बहुत पल जल चुकी हो।
अब प्यार की पावस बनकर
जरा बरस कर देखो।
गीत बनकर पुष्प बन हार बनकर
पा चुकी महिमा बहुत सृंगार बनकर।
बोलो अब मौन ब्रत तोड़ो
मेरे शुष्क हृदय में उतरकर।
अपने अधरों में छुपे हास को विखरो
कल्पना जन्म जन्मान्तरों के बंधनों से।
उन्मुक्त होकर फिर ये
अनन्त नाद फिर से भर दो।
तुम कालचक्र हो केशव का
माया बंधन को छिन्न भिन्न कर दो।
पल भर में दिव्य चेतना की
अमृत रस ह्रदय पटल में भर दो।
शंकर की डमरू बन कर
तुमअनन्त नाद भर दो।
माँ सरस्वती की विणा बन कर तुम
कल्पना अनन्त स्वर भर दो।
कल्पना तुम ही तो
कवियों की सवामिनी हो।
अनन्त राग रागनी हो
प्यास और नदिया तुम्ही हो।
तुम्ही पाप और पुण्य हो

परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा)
ग्राम – गंगापीपर
जिला – पूर्वी चंपारण (बिहार)
सम्मान – राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान
घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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