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मैं जला हूँ दीप बन कर

रचयिता : रामनारायण सोनी

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मैं जला हूँ दीप बन कर

मैं तमिस्रा में जला हूँ दीप बन कर
तैल की इक बूँद भी ना शेष होगी
गंध बुझती बातियों की जब लगे
प्रिय तुम्हारी प्रीत ही अवशेष होगीअंक में ज्वाला समेटे उम्र भर से
जो तिरोहित हो रही नित रश्मियाँ
पन्थ में तेरे बिछी है आस बन कर
प्रस्तरों के भार सहती संधियाँ

सांझ से ही चिर प्रतीक्षा जागती है
हर निशा तो व्यंजना लेकर खड़ी है
भोर तक है साध में यह लौ अकंपित
भग्न अधरों पर पिपासा हर घड़ी है

प्राण में हर पल निरे निःश्वास ही है
जिन्दगी कण-कण तिमिर में घुल रही
बंधनाएँ वर्जनाएँ बस प्राण की है
थाम कर इन धड़कनों को चल रहीं

परिचय :- नाम – रामनारायण सोनी
निवासी :-  इन्दौर
शिक्षा :-  बीई इलेकिट्रकल
प्रकाशित पुस्तकें :- “जीवन संजीवनी” “पिंजर प्रेम प्रकासिया”, जिन्दगी के कैनवास
लेखन :- गद्य, पद्य
सेवानिवृत अधिकारी म प्र विद्युत मण्डल

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