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जान है तो जहान है

संजय वर्मा “दॄष्टि”
मनावर (धार)

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 वर्तमान फेसबुक, वाट्सअप, इंस्ट्राग्राम ने टीवी, वीडियो गेम्स, रेडियो आदि को लॉकडाउन में चाहने लगे। कहने का मतलब है की दिन औऱ रात इसमे ही लगे रहते है। यदि घर पर मेहमान आते और वो आपसे कुछ कह रहे। मगर लोगो का ध्यान बस फेसबुक, वाट्सअप पर जवाब देने में और उनकी समझाइश में ही बीत जाता। मेहमान भी रूखेपन से व्यवहार में जल्द उठने की सोचते है। घर के काम तो पिछड़ ही रहे।फेसबुक, वाट्सअप का चस्का ऐसा की यदि रोजाना सुबह शाम आपने राम-राम या गुड़ मोर्निंग नही की तो नाराजगी। इसका भ्रम हर एक को ऐसा महसूस होता कि-मैं ही ज्यादा होशियार हूँ। अत्याधिक ज्ञान हो जाने का भ्रम चाहे वो फेंक खबर हो। उसका प्रचार भले ही खाना समय पर ना खाएं किन्तु खबर एक दूसरे को पहुंचाना परम कर्तव्य समझते है। पड़ोसी औऱ रिश्तेदार अनजाने हो जाते। मगर क्या कहे भाई इन्हें तो बस दूर के ढोल सुहावने लगते।
यानि फेसबुक, वाट्सअप आभासी दुनिया की सैर करवाते। यदि फेसबुक, वाट्सअप वाले मित्र घर पर लॉकडाउन के पहले घर पर भूल से तलाश कर रुबरु मिलने आ जाते थे तो पहचान करने में परिचय देना ही होता है। क्योंकि फेसबुक, वाट्सएप आदि चलने वालो में दोस्तो की संख्या हजारो में पहुँच जाती है। याददाश्त की बात करें तो आजकल असली घी काफी महंगा ऒर शुद्द नही मिलता। जनरल नॉलेज भी आउट ऑफ कोर्स। बेरोजगार रोजगार की तलाश में पहले ही परेशान। सब अब क्या करे? ये प्रश्न वर्तमान में सब पर हावी है। और इन्होंने अन्य मनोरंजन के साधनों को पीछे छोड़ दिया है। जिसके जितने ज्यादा मित्र वो उतना ही सीनियर। कई तो इस कला में इतने माहिर हो गए कि रचनाएं चुराकर अपने कवि होने की पुष्टि तक कर लेते। बेचारा ओरिजनल कवि अन्य लोगो को चोरी घटना का दुखड़ा फेसबुक, वाट्सअप पर बाटता रहता है। सब विषयोंका ज्ञान का इनके पास भंडार होता है की ये सीधे किसी की रचना, लेख आदि हूबहू चुरा कर चुराई हुई सामग्री निचे संकलन कर्ता, साभार जैसे शब्दों को भी खा जाते है। ये चुराईटर ये समझते है की उन्हें कोई नहीं देख रहा। ये घटना उसी तरह की होती है जैसे “बिल्ली आँख बंद कर दूध पीती वो समझती कोई उसे नहीं देख रहा” मगर उसे ही देखते है और कई तो फ़िल्म के स्टार के फोटो लगाते ताकि लोग समझे की फ़िल्म स्टार में अपनी पहचान है। मगर वो फोटो वाला-वाली निकलता कुछ और ही है।
पहले के जमाने मे हाथों में जप की माला होती और लोग अपने आराध्य का स्मरण करते थे। किंतु आजकल माला की जगह मोबाइल आगया।गांवों में वृक्षों की संख्या से ज्यादा होने के लक्ष्य टॉवर प्राप्त कर रहे है। दुनिया मे विकास होना भी जरूरी है। लोग चाँद पर बसने की सोच रहे और हम चलनी से चाँद को निहार रहे। हर सदस्य के पास मोबाईल औऱ घरों में चार्जर ऐसे लटकते है। मानों पेड़ों पर चमगादड़ लटक रही हो।मोबाइल की फिक्र यदि घर मे कही भूल से रख दिया तो उसकी खोज की चिंता। ये तो हर घरों में रोज ही तमाशा बना होता है। आप औऱ हम क्या कर सकते। इसके चलन में साथ तो चलना ही होगा। अब चौबीस घंटे मे से इसकी रियाज में पंद्रह घंटे लोगबाग दे ही रहे है। औऱ दूसरे लोगों को इनके रिकार्ड तोड़ने की लगी है। नींद इनकी आँखों से गायब औऱ नीद से बनने वाले सपने हो गए घूम। सपनों में आने वाली प्रेयसी ना आने से मजनू का दिमाग भिन्ना भोट हो रिया है। भिया। लो अब सुबह होने को है। एक संदेश आपके मोबाइल, फेसबुक पर आ धमका और अग्रिम त्योहारों के कार्यक्रमो की अग्रिम शुभ कामनाएं देने को उतावला आ खड़ा हुआ हमारे सुखद जीवन की कामना लिए। कितनी फिक्र रहती ये तो मानना पड़ेगा। औऱ तो औऱ संदेश में मिठाइयों, सुबह की चाय के फोटो भी संलग्न। खाने के लिये हाथ बढ़ाया तो पीछे खड़ी श्रीमती ने आखिर टोक ही दिया। क्या ज्यादा ही भूख लगी है। साथ ही इन समस्या के अतिरिक्त ये भी सोचने लगी कि लॉक डाउन कब खुलेगा? मुझको तो बड़ी फिक्र हो रही है। लेकिन कर भी क्या सकते अपने स्वास्थ्य की फिक्र तो करनी ही पड़ेगी। जान है तो जहान है। घर के अंदर रहकर कम से कम जान तो बच ही जाएगी। मोबाइल टीवी भी अब रिश्तेदार बन गए है उनके बिना एक पल रहा भी तो नहीं जाता।

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परिचय :- संजय वर्मा “दॄष्टि”
पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा
जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन)

शिक्षा :- आय टी आय
व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग)
प्रकाशन :- देश – विदेश की विभिन्न पत्र – पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति “दरवाजे पर दस्तक”, खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा -अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के ६५ रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता भारत की और से सम्मान – २०१५, अनेक साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित
संस्थाओं से सम्बद्धता :- शब्दप्रवाह उज्जैन, यशधारा – धार, मगसम दिल्ली,
काव्य पाठ :- काव्य मंच/आकाशवाणी/ पर काव्य पाठ, शगुन काव्य मंच


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