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गर हमारी हिम्मत तुमसे नजरे मिलाने की होती

मनमोहन पालीवाल
कांकरोली, (राजस्थान)

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गर हमारी हिम्मत तुमसे नजरे मिलाने की होती
हकीकत-ए-जिंदगी की कहानी दिखाने की होती

बाते करते है अक्सर लोग घर दुब्बकर बैठै क्यूं
नशे मन कुछ बाते राज़ की छुपाने की होती

उनसे राब्ता तो रहा है थोड़ी दूर फ़ासले का
हसरते मानो साथ उनके जमाने की होती

अदब करते रहे है हम रूतबे नही जानते क्या है
यही मासूमियत तो उनमे पहचानने की। होती

तुम अभी वाकिफ़ नही शायद मेरी दीवानगी से
खुदा के दर कद्र भी इश्क के परवाने की होती

यही इल्म तो ज़मी के बंदो को समझाए कौन
फरिश्ता नही नुमाइदा हूं हिम्मत झुटानै की होती

परिचय :- मनमोहन पालीवाल
पिता : नारायण लालजी
जन्म : २७ मई १९६५
निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान
सम्प्रति : प्राध्यापक
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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