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बदलेंगे हम तो बदलेगा समाज

केशी गुप्ता
(दिल्ली)

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सृष्टि की रचना में सब समान है मगर हम इंसानों ने अपने हिसाब से नियम कानून बनाकर समाज की स्थापना की है। किसी भी नियम कानून व्यवस्था को इसलिए बनाया जाता है की जीवन सुचारू रूप से चल सके मगर हम इंसान ही उन नियमों कानूनों का उल्लंघन कर और उनकी आड़ में समाज में कुरीतियां पैदा कर देते है। मगर यहां यह समझना जरूरी है की कोई भी नियम जो किसी भेद विशेष को लेकर  बनाया जाए वह इंसानियत के विरुद्ध है। जो समय के साथ साथ एक विकराल रूप ले लेता हैं। प्राचीन काल से ही मर्द औरत के बीच केवल मात्र लिंगभेद को लेकर बहुत से नियम कानून औरतों के लिए बनाए गए और उन्हें सामाजिक तौर पर सदैव दबाया गया जो इंसानियत के विरुद्ध है।
समय के बदलाव के साथ नारी जाति के उत्थान के लिए बहुत से शिक्षित लोग आगे आए जिन्होंने समाज द्वारा बनाई गई कुरीतियों का खंडन किया और उसे एक सामान्य जीवन जीने के लिए कई आंदोलन चलाए। मगर आज भी वह आंदोलन जारी है। कहने को आज आधुनिक समय में नारी मर्द के साथ कंधे से कंधा मिलाकर हर क्षेत्र में चल रही है मगर जमीनी हकीकत पर आज भी उसे लिंग भेद को लेकर बहुत सी दिक्कतें सहनी पढ़ती हैं। क्या सच में समाज आधुनिकता की ओर बढ़ गया है? सवाल यह उठता है कि क्या कभी नारी जाति का उत्थान एक  संकीर्ण सोच के रहते मुमकिन है?
आज भी भूण हत्या जैसा घिनौना अपराध प्रचलन में है। आज भी विधवाओं के अकेले रहने, औरतों के स्वतंत्र विचरण और विचारों पर सवाल किए जाते हैं। देश में जहां कहां आए दिन बलात्कार जैसे जघन्य अपराध सामने आते रहते है। इन सब को देखते हुए यह कैसे कहा जा सकता है की आधुनिक समय में समाज की विचारधारा बदल चुकी है? किसी भी घर में जहां बेटी बहू होती है वहां उन पर बहुत सी पाबंदियां सिर्फ इसलिए लगाई जाती है कि वह बाहरी लोगों से सुरक्षित रहें परंतु दूसरी तरफ अपने ही घरों में उन पर अत्याचार तथा शोषण होता हुआ नजर आता है।
समाज में बदलाव लाने के लिए और नारी उत्थान के लिए सबसे पहले हमें एक नई विचारधारा और मानसिकता को लाना होगा। यदि हम नारी को देवी का दर्जा ना देकर केवल इंसानियत और इंसान की नजर से देखें तो बराबरी लाने में आसानी होगी। जो बात एक औरत के लिए गलत है वही बात एक मर्द के लिए भी गलत ही होनी चाहिए। जो जरूरत एक मर्द की होती है वही जरूरत एक औरत की भी होती है हमें इस बात को समझना होगा। समाज को बदलने के लिए यह पहल हमें अपने अपने घरों से करनी होगी जिस दिन घरों और खुलेआम सड़कों पर बोले जाने वाली मां बहन की गालियों पर पूर्ण अंकुश लग जाएगा उस दिन हम सोच सकते हैं कि बदलाव आएगा।
इस बदलाव को लाने का दायित्व हर एक व्यक्ति पर है चाहे वह नर है या मादा है, क्योंकि सदैव  से चले आ रहे पुरुष प्रधान समाज में नारी जाति को भी यही सबक पढ़ाया गया है कि वह पुरुष की बराबरी में कभी नहीं आ सकती और बिना बाप, पति या बेटे के उनका कोई अस्तित्व नहीं, इसी मानसिकता के चलते हम पाते हैं कि नारी ही नारी की दुश्मन हो जाती है। हर व्यक्ति को अपने दायित्व को समझना होगा। इंसानियत को कायम रखने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति के मान सम्मान का बिना किसी भेदभाव के ध्यान रखना होगा।

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लेखक परिचय :- केशी गुप्ता लेखिका, समाज सेविका
निवास – द्बारका, दिल्ली


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