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अगर ख्वाब ना होते

कंचन प्रभा
दरभंगा (बिहार)

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अम्बर के तारों में टिमटिमाहट न होती
चंदा की चांदनी में चमचमाहट न होती
सूर्य की तपन में गरमाहट न होती
जगती हुई आँखो में अगर ख्वाब न होते

ठंडी सी बयार में इठलाहट न होती
मेघ की धड़कन में गड़गड़ाहट न होती
बारिश की बूंदों में झमझमाहट न होती
जगती हुई आँखो में अगर ख्वाब न होते

चिड़ियों की बोली में चहचहाहट न होती
पेड़ों के पत्तों में सरसराहट न होती
फूलों के कलियों में खिलखिलाहट न होती
जगती हुई आँखों में अगर ख्वाब न होते

भवरों की गुंजन में भनभनाहट न होती
बच्चों के चेहरे की मुस्कराहट न होती
राही के गीतों में गुनगुनगुनाहट न होती
जगती हुई आँखों में अगर ख्वाब न होते

दुल्हन के घूँघट में शरमाहट न होती
गाँव की गोरी में छमछ्माहट न होती
प्रणय हृदय में प्रेम की आहट न होती
जगती हुई आँखों में अगर ख्वाब न होते

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परिचय :- कंचन प्रभा
निवासी – लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार
सम्मान – हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित 

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