वो लम्हें
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रचयिता : कुमुद के.सी.दुबे
राजू से पहले कई कुल्फी वाले घर के सामने से निकलते हैं पर सतीश के पूरे परिवार को रोज स्वादिष्ट क़ुल्फ़ी के लिये राजू कुल्फी वाले का ही इंतजार रहता है। आज राजू को आने में देरी हो गयी थी। आर्यन सतीश से कह रहा था, पापा कुल्फी वाले अंकल अभी तक नहीं आये। इतने में दूर से घंटी सुनाई दी। सतीश कुल्फी वाले को देखने घर से बाहर आया, उसके पीछे दौडकर आर्यन भी आ गया।
राजू बिना कहीं रूके, तेज-तेज ठेला लेकर सतीश के घर की ओर आता दिखाई दिया। आते ही राजू ने एक कुल्फी तैयार की और आर्यन के हाथ में पकड़ा दी। सतीश कुछ कहता, इससे पहले ही वह बोला – साहब आज एक ही कुल्फी है, हम यह आर्यन बाबा के लिये बचाकर लाये हैं। इस पर सतीश तुनक कर बोला क्यों खत्म हो गई कुल्फी? हम तो तुम्हारे रोज के ग्राहक हैं।
जी साहब ! पर आज के लिये क्षमा करियेगा। आपकी काॅलोनी से लगी गरीबों की बस्ती है ना- वहां बच्चों को हम रोज कुल्फी बांटते हैं। आज ज्यादा बच्चे इक्ट्ठे हो गये थे, तो सब कुल्फी खतम हो गयी साहब।
यह सुनते ही सतीश एक पल के लिये सोच में पड़ गया। राजू से किये दो टूक व्यवहार पर उसे शर्मिन्दगी महसूस होने लगी। सतीश ने राजू से कहा – अरे राजू भाई, इसमें माफी की क्या बात,ये तो तुम बहुत नेक काम कर रहे हो। राजू बोला,साहब कमाई का एक हिस्सा तो नेकी पर खर्च करना ही चाहिये ना! तो बस हम यही……..
सतीश को लगा कुल्फी बेचकर कितना कमा लेता होगा ये, जो रोज फ्री में बाॅटता भी है। मुझे इसकी कुछ मदद करना चाहिये।
सतीश ने राजू के सामने बात रखी – राजू भाई, मैं तुम्हारी कुछ मदद करुं? राजू थोडा मुस्कुराते हुये बोला – साहब हम यह सब अपनी खुशी से करते हैं ।आप चाहें तो उनकी दूसरी जरुरतों को पूरा कर सकते हैं। बातों-बातों में समय का पता ही नहीं चला। बेटा आर्यन कुल्फी खत्म कर चुका था। सतीश ने आर्यन के हाथ से खाली डंडी लेकर फेंकी और भीतर जाकर आने वाले रविवार को झुग्गी बस्ती में जाने के लिये प्लान बनाने लगा।
राजू बिना कहीं रूके, तेज-तेज ठेला लेकर सतीश के घर की ओर आता दिखाई दिया। आते ही राजू ने एक कुल्फी तैयार की और आर्यन के हाथ में पकड़ा दी। सतीश कुछ कहता, इससे पहले ही वह बोला – साहब आज एक ही कुल्फी है, हम यह आर्यन बाबा के लिये बचाकर लाये हैं। इस पर सतीश तुनक कर बोला क्यों खत्म हो गई कुल्फी? हम तो तुम्हारे रोज के ग्राहक हैं।
जी साहब ! पर आज के लिये क्षमा करियेगा। आपकी काॅलोनी से लगी गरीबों की बस्ती है ना- वहां बच्चों को हम रोज कुल्फी बांटते हैं। आज ज्यादा बच्चे इक्ट्ठे हो गये थे, तो सब कुल्फी खतम हो गयी साहब।
यह सुनते ही सतीश एक पल के लिये सोच में पड़ गया। राजू से किये दो टूक व्यवहार पर उसे शर्मिन्दगी महसूस होने लगी। सतीश ने राजू से कहा – अरे राजू भाई, इसमें माफी की क्या बात,ये तो तुम बहुत नेक काम कर रहे हो। राजू बोला,साहब कमाई का एक हिस्सा तो नेकी पर खर्च करना ही चाहिये ना! तो बस हम यही……..
सतीश को लगा कुल्फी बेचकर कितना कमा लेता होगा ये, जो रोज फ्री में बाॅटता भी है। मुझे इसकी कुछ मदद करना चाहिये।
सतीश ने राजू के सामने बात रखी – राजू भाई, मैं तुम्हारी कुछ मदद करुं? राजू थोडा मुस्कुराते हुये बोला – साहब हम यह सब अपनी खुशी से करते हैं ।आप चाहें तो उनकी दूसरी जरुरतों को पूरा कर सकते हैं। बातों-बातों में समय का पता ही नहीं चला। बेटा आर्यन कुल्फी खत्म कर चुका था। सतीश ने आर्यन के हाथ से खाली डंडी लेकर फेंकी और भीतर जाकर आने वाले रविवार को झुग्गी बस्ती में जाने के लिये प्लान बनाने लगा।
लेखिका परिचय :- कुमुद के.सी.दुबे
जन्म- ९ अगस्त १९५८ – जबलपुर
शिक्षा- स्नातक
सम्प्रति एवं परिचय- वाणिज्यिककर विभाग से ३१ अगस्त २०१८ को स्वैच्छिक सेवानिवृत। विभिन्न सामाजिक पत्र पत्रिकाओं में लेख, कविता एवं लघुकथा का प्रकाशन। कहानी लेखन मे भी रुची।
इन्दौर से प्रकाशित श्री श्रीगौड नवचेतना संवाद पत्रिका में पाकशास्त्र (रेसिपी) के स्थायी कालम की लेखिका।
विदेश प्रवास- अमेरिका, इंग्लैण्ड एवं फ्रांस (सन् २०१० से अभी तक)।
जन्म- ९ अगस्त १९५८ – जबलपुर
शिक्षा- स्नातक
सम्प्रति एवं परिचय- वाणिज्यिककर विभाग से ३१ अगस्त २०१८ को स्वैच्छिक सेवानिवृत। विभिन्न सामाजिक पत्र पत्रिकाओं में लेख, कविता एवं लघुकथा का प्रकाशन। कहानी लेखन मे भी रुची।
इन्दौर से प्रकाशित श्री श्रीगौड नवचेतना संवाद पत्रिका में पाकशास्त्र (रेसिपी) के स्थायी कालम की लेखिका।
विदेश प्रवास- अमेरिका, इंग्लैण्ड एवं फ्रांस (सन् २०१० से अभी तक)।
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