कार्तिक शर्मा
मुरडावा, पाली (राजस्थान)
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माँ मुझको किताब मंगा दो, मैं भी पढ़ने जाऊंगा।
सीख सीख कर सारी बातें, तुमको भी बतलाऊंगा।
माँ मुझको किताब मंगा दो, मैं भी पढ़ने जाऊंगा।
पांच जन्मदिन बीत गए हैं, अब स्कूल जाना है।
पढ़ लिखकर बनूँगा अफसर, ऐसा मैंने ठाना है।।
बैठके ऊंची कुर्सी पर, मैं भी हुकुम चलाऊंगा।
माँ मुझको किताब मंगा दो, मैं भी पढ़ने जाऊंगा।।
गणवेश का कपडा लाना, अच्छे दर्जी से सिलवाना।
जूते मोज़े और स्वेटर, अपने हाथों से पहनाना।।
पहनकर कोट सबसे ऊपर, मैं भी टाई लगाऊंगा।
माँ मुझको किताब मंगा दो, मैं भी पढ़ने जाऊंगा।।
बस्ता लाओ अच्छा सुंदर, छपा हो जिसपे भालू बंदर।
रबर पेन्सिल और किताबें, मम्मी रखना उसके अंदर।।
जेब में रखकर दस का नोट, मैं भी चिज्जी खाऊंगा।
माँ मुझको किताब मंगा दो, मैं भी पढ़ने जाऊंगा।।
पढ़ लिखकर हम बने महान, पूरा हो सर्व शिक्षा अभियान।
माता पिता और गुरुजन का, बढ़ जाये देश का मान।।
पढ़े भारत बढे भारत, मैं ये बीड़ा उठाऊंगा।
माँ मुझको किताब मंगा दो, मैं भी पढ़ने जाऊंगा।।
परिचय : कार्तिक शर्मा
पिता : शुक्राचार्य शर्मा
शिक्षा : बी.एड, एम.ए.
निवासी : मुरडावा पाली राजस्थान
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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