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मैं इंसान होना चाहती हूँ

डाॅ. अहिल्या तिवारी
रायपुर (छत्तीसगढ़)

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मैं इंसान होना चाहती हूँ
न हिन्दू न मुसलमान,
दुनिया के दिलों की
मैं ईमान होना चाहती हूँ।

दुनिया मेरी दौलत नहीं
हक़ नहीं टुकड़ों पर,
चार दिनों की दुनिया में
मैं मेहमान होना चाहती हूँ।

मिट गए जो अमन पर
हो कर परे जग से,
हर जन्म में दिल का
मैं अरमान होना चाहती हूँ।

दे सके जो दान
जीवन को जीवन का,
ऐसे धरा के लाल पर
मैं कुर्बान होना चाहती हूँ।

जाने कैसे सीख जाते
कुछ लोग आग का खेल,
जलाते घर भाई का, यहाँ
मैं नादान होना चाहती हूँ।

जगह नहीं फूलों के लिए
दिलों में एकत्र हो गए पत्ते,
स्वार्थ के सूखे पत्ते उड़ाने
मैं तूफान होना चाहती हूँ।

बिकती ज़िन्दगी पलों की
मौत दुआएँ देता है,
हर साँस होती दर्द भरी
मैं बेजान होना चाहती हूँ।

दे दस्तक धरती तले
थाम सीने में गगन,
प्यार बो कर यहाँ
मैं आसमान होना चाहती हूँ।

क्यों बने कहानी मेरी
हँसने हँसाने के लिए,
सीख दे सके इक नई
मैं पहचान होना चाहती हूँ।

मेरे नाम के आगे
न लगाओ धर्म की मुहर
पहचानो नहीं मुझे जाति से
मैं अन्जान होना चाहती हूँ।
मैं सिर्फ इंसान होना चाहती हूँ।

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परिचय :-  डाॅ. अहिल्या तिवारी
जन्म : २१ अक्टूबर
निवास : रायपुर, छत्तीसगढ़
शिक्षा : एम. ए. (हिन्दी, समाजशास्त्र), पी. एच. डी.
प्रकाशन : दो पुस्तक प्रकाशित, २० शोध पत्र प्रकाशित
संप्रति : पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुरे के अध्यापक शिक्षा संस्थान में सहायक प्राध्यापक

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