रचयिता : विनोद सिंह गुर्जर
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मैं करूँ तुझसे क्या गिला
मैं करूँ तुझसे क्या गिला, तौबा ।
तुझसा कोई नही मिला, तौबा ।।…
मैंने सोचा कि तू अब हां कर देगी,
ढा दिया तूने मुहब्बत
का किला तौबा ।।
तुझसा कोई नही मिला, तौबा।।…
मैंने सोचा पर तू नहीं आई,
किससे करूँ में गिला, तौबा ।।
तुझसा कोई नही मिला, तौबा।।…
पहले वो साईकिल से आते थे,
अब विमानों का काफिला तौबा ॥
तुझसा कोई नही मिला, तौबा।।…
ना दिन को चैन ना रात में सुकूँ,
तू ही दे कुछ मशविरा, तौवा।।
तुझसा कोई नही मिला, तौबा।।…
वो कहीं जाते है तो बताते हैं,
मेरी सल्तनत का ये जिला तौबा ।।…
तुझसा कोई नही मिला, तौबा।।…
परिचय :- विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यकारिणी सदस्य हैं एवं पत्र-पत्रिकाओं के अलावा इंदौर आकाशवाणी केन्द्र से कई बार प्रसारण, कवि सम्मेलन में भी सहभागिता रही है।
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