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मैं सुगन्ध हूँ

महेश चंद जैन ‘ज्योति’
महोली ‌रोड़, मथुरा
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मैं सुगन्ध के झोंके जैसा,
महक रहा हूँ गुलशन में।
बसा हुआ हूँ मैं पुष्पों में,
खिलती कलियों के मन में।।

कैसे आया मैं फूलों में
इसका मुझको ज्ञान नहीं,
महकाता केवल दुनियाँ को
और न जाता ध्यान कहीं,
मैं बचपन के भीतर चहकूँ
दहकूँ उफने यौवन में।….

भोर हुए नवजीवन पाता
साँझ ढले मुरझाता हूँ,
झरता है जब पुष्प डाल से
कहाँ किधर खो जाता हूँ,
रंगों से क्या लेना मुझको
देना सीखा जीवन में।…..

मेरे रूप हजारों महकें
विदुर गुणी इन्सानों में,
नहीं भूलकर रह पाता हूँ
हैवानों शैतानों में,
पाँखुरियों में घर है मेरा
नहीं मिलूंगा कंचन में।….

मुझसे प्यार करो तो आओ
अपना मुझे बना लेना,
थोड़ी देकर जगह मुझे तुम
अपने हृदय बसा देना,
महका दूंगा अंतर्मन को
गंध उठे ज्यों चन्दन में।…

परिचय :महेश चंद जैन ‘ज्योति’
निवासी : महोली ‌रोड़, मथुरा
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।

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